वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के बजट भाषण खत्म करने के ठीक बाद कई एनालिस्ट्स और प्रोफेशनल्स ने बजट 2023 का स्वागत किया। लेकिन, इस बजट के बाद इनवेस्टर्स को मिलने वाले कई फायदे खत्म हो जाएंगे। सरकार इनवेस्टर्स को टैक्स के मामले में मिलने वाले कई फायदों को बंद करने जा रही है। इससे इनवेस्टर्स की दिक्कत बढ़ने जा रही है।
1. डीमैट अकाउंट में रखे लिस्टेड डिबेंचर्स (कंपनी फिक्स्ड डिपॉजिट्स) पर टीडीएस लागू होगा
कई इनवेस्टर्स कंपनियों की तरफ से जारी लिस्टेड डिबेंचर्स (कंपनी फिक्स्ड डिपॉजिट्स) में इनवेस्ट करना पसंद करते हैं। इसकी वजह यह है कि आम तौर पर इन पर बैंक के फिक्स्ड डिपॉजिट के मुकाबले ज्यादा इंटरेस्ट मिलता है। इनवेस्टर्स के पास इनमें फिजिकल मोड में इनवेस्ट करने का ऑप्शन होता है या वे अपने डीमैट अकाउंट में भी डिबेंचर्स मंगा सकते हैं। टैक्स के लिहाज से डीमैट अकाउंट में डिबेंचर्स रखने का एक फायदा यह है कि कंपनी की तरफ से इनवेस्टर्स को इंटरेस्ट के पेमेंट पर कोई TDS नहीं लगता है। हालांकि, इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने यह पाया है कि कई इनवेस्टर्स इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करते वक्त ऐसे डिबेंचर्स पर मिलने वाले इंटरेस्ट के बारे में नहीं बता रहे हैं। इसे ट्रैक करने के लिए 1 अप्रैल, 2023 से अगर फिक्स्ड डिपॉजिट फिजिकल मोड या डीमैट अकाउंट में रखा जाता है तो कंपनियों को उस पर TDS काटना होगा।
2. मार्केट लिंक्ड डिबेंचर्स (MLD) पर टैक्स का ज्यादा रेट लागू होगा
कई HNIs ने मार्केट लिंक्ड डिबेंचर्स में इनवेस्ट किया है। इसकी वजह यह है कि दूसरे फिक्स्ड इनकम इंस्ट्रूमेंट्स के मुकाबले इस पर पर टैक्स का कम रेट लागू होता है। इसमें कैपिटल प्रोटेक्क्शन का फीचर भी होता है। एमएलडी स्टॉक एक्सचेंजों पर लिस्टेड होते हैं। ये सेबी के रेगुलेशन के तहत आते हैं। ये फिक्स्ड इनकम इंस्ट्रूमेंट्स और डेरिवेटिव का कंबिनेशन होते हैं। उनका रिटर्न आम तौर पर NSE जैसे इंडेक्स के परफॉर्मेंस से लिंक्ड होता है। बजट 2023 में एमएलडी से होने वाले गेंस को शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस मानते हुए टैक्स लगाने का प्रावधान शामिल है। इसके लिए सेक्शन 50AA शामिल किया गया है। इसमें होल्डिंग पीरियड के बारे में कुछ नहीं कहा गया है। इसका मतलब है कि MLDs से होने वाले प्रॉफिट को इनवेस्टर्स के इनकम में जोड़ दिया जाएगा और उसके स्लैब रेट के हिसाब से टैक्स लगेगा। ऐसे इनवेस्टर्स जिनके पोर्टफोलियो में MLDs हैं वे कुछ टैक्स बचाने के लिए 31 मार्च, 2023 से पहले इसे रिडीम कर सकते हैं।
3. रियल एस्टेट इनवेस्टमेंट ट्रस्ट (REIT) और इंफ्रास्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट ट्रस्ट (InVit) में टैक्स प्लानिंग का फायदा नहीं
REIT और InVit को बिजनेस ट्रस्ट्स कहा जाता है। REIT कमर्शियल रियल एस्टेट में इनवेस्ट करते हैं। InVit इंफ्रास्ट्रक्चर एसेट्स जैसे हाईवे, ब्रिज और डैम आदि में इनवेस्ट करते हैं। इंटरेस्ट, डिविडेंड और रेंट के रूप में होने वाली इनकम पर इनवेस्टर्स को टैक्स चुकाना पड़ता है। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने यह पाया है कि REIT और InVit debt के रिपेमेंट के रूप में भी इनकम ट्रांसफर करते हैं, जिस पर टैक्स नहीं लगता है। इस कमी को दूर करने के लिए बजट 2023 में REIT और InVit की तरफ से होने वाले रिपेमेंट पर टैक्स लगाने का प्रस्ताव शामिल है। रिडेमप्शन की स्थिति में इनवेस्टर्स अपने इनवेस्टमेंट अमाउंट (कॉस्ट ऑफ एक्विजिशन) को REIT/InVit से मिलने वाले अमाउंट में से घटा सकेगा।
4. LIC अब टैक्स के दायरे में
इंडिया में लाइफ इंश्योरेंस की लोकप्रियता की एक बड़ी वजह यह रही है कि पॉलिसी की मैच्योरिटी पर मिलने वाला अमाउंट टैक्स-फ्री होता है। बजट 2023 में इस बेनेफिट को खत्म करने का प्रस्ताव है। इसमें कहा गया है कि अगर सालाना इंश्योरेंस प्रीमियम 5 लाख रुपये से ज्यादा रहता है तो पॉलिसी की मैच्योरिटी पर मिलने वाले अमाउंट पर टैक्स लगेगा। सिर्फ पॉलिसीहोल्डर की मौत की स्थिति में मिलने वाले अमाउंट पर टैक्स नहीं लगेगा। यह नियम 1 अप्रैल, 2023 को या उसके बाद जारी होने वाली इंश्योरेंस पॉलिसी (ULIP को छोड़) पर लागू होगा। इस बारे में विस्तार से जानने के लिए आप इस लिंक पर क्लिक कर सकते हैं:
5. प्रॉपर्टी बेचने पर 10 करोड़ से ज्यादा कैपिटल गेंस पर लगेगा टैक्स
रेजिडेंशियल हाउस प्रॉपर्टी में निवेश करने पर इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 54 और 54F के तहत टैक्स बेनेफिट मिलता है। अब तक इस एग्जेम्प्शन को क्लेम करने के लिए कोई ऊपरी सीमा नहीं थी। बजट 2023 में यह प्रस्ताव है कि सेक्शन 54 और 54F के तहत एग्जेम्प्शन का दावा सिर्फ 10 करोड़ रुपये तक के अमाउंट पर किया जा सकेगा। इस बारे में मैंने इस आर्टिकल में विस्तार से बताया है। इसे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:
अब तक इंश्योरेंस और रियल एस्टेट जैसी इंडस्ट्रीज की ग्रोथ में इनवेस्टमेंट पर मिलने वाले टैक्स एग्जेम्प्शन का बड़ा हाथ रहा है। इनवेस्टर्स ऐसी जगह इनवेस्ट करना चाहते हैं जहां टैक्स का रेट कम होता है। इससे उनके कैपिटल में अच्छा इजाफा होता है। टैक्स इनवेस्टमेंट के रिटर्न पर आने वाली कॉस्ट है। कुछ इनवेस्टमेंट्स पर टैक्स बढ़ जाने से कई इनवेस्टर्स ऐसी जगह इनवेस्ट करना चाहेंगे जहां टैक्स कम है।
(अभिषेक अनेजा सीए हैं। वह इनकम टैक्स और पर्सनल फाइनेंस से जुड़े मामलों के एक्सपर्ट हैं)