12 सितंबर को सरकार जारी आंकड़ों के मुताबिक भारत की रिटेल महंगाई दर जुलाई के 6.71 फीसदी के 5 महीने के लो से बढ़कर अगस्त में 7 फीसदी पर फिर वापस आ गई है। लगातार 3 महीने तक 7 फीसदी के ऊपर रहने के बाद जुलाई में रिटेल महंगाई (CPI) 6.71 पर आई थी। लेकिन अगस्त में ये फिर से 7 फीसदी पर पहुंच गई है। अगस्त में रिटेल महंगाई की दर अनुमान से भी ज्यादा रही है। बता दें कि मनीकंट्रोल के पोल में अगस्त में खुदरा महंगाई दर के 6.9 फीसदी पर रहने का अनुमान किया गया था।
रिटेल महंगाई के आंकड़े लगातार 35 महीने से आरबीआई के 4 फीसदी के मीडियम टर्म टारगेट से ऊपर बने हुए हैं। वहीं, ये आंकड़े लगातार 8 महीने से आरबीआई के 2-6 रे टालरेंस लिमिट से ऊपर कायम हैं। ऐसे में आरबीआई अब अपने इंफ्लेशन मैंडेट (महंगाई रोकने के प्रयास) को पूरा करने में विफल होने के कगार पर है।
आरबीआई को अपने इस प्रयास में तब विफल माना जाता है जब औसत मंहगाई लगातार तीन तिमाहियों तक 2-6 फीसदी की सहनशीलता सीमा (टॉलरेंस लिमिट) से ज्यादा होती है। जनवरी-मार्च में औसतन 6.3 फीसदी और अप्रैल-जून में 7.3 प्रतिशत रहने के बाद महंगाई सितंबर में कम से कम 4.1 फीसदी तक गिरनी चाहिए ताकि जुलाई-सितंबर के अवधि की औसत महंगाई 6 फीसदी से कम हो। आरबीआई तभी अपने इस प्रयास में विफलता से बच पाएगा जब ऐसा होगा। आरबीआई के ताजा पूर्वानुमान में कहा गया है कि जुलाई-सितंबर में महंगाई औसतन 7.1 फीसदी रहेगी। ऐसे में आरबीआई अब महंगाई रोकने के लिए मिली अपनी जिम्मेदारी में विफलता के कगार पर दिख रहा है।
विफलता रिपोर्ट (Failure report)
अगस्त के रिटेल महंगाई आंकड़े उम्मीद के मुताबिक ही रहे हैं। अगस्त सीपीआई पर मनीकंट्रोल की तरफ से कराए गए पोल में शामिल 19 अर्थशास्त्रियों में से करीब आधे का कहना था कि अगस्त का रिटेल महंगाई आंकड़ा 7 फीसदी या फिर उससे थोड़ा ज्यादा रह सकता है। ये भी बताते चलें कि सितंबर से रिटेल महंगाई आंकड़े 12 अक्टूबर को आएंगे।
अब सवाल ये है अगर 12 अक्टूबर को आने वाले सितंबर के रिटेल महंगाई आंकड़ों से आरबीआई के महंगाई रोकने के प्रयास के विफल हो जाने की पुष्टि हो जाती है तो क्या होगा? ऐसी स्थिति में आरबीआई को केंद्र सरकार को अपनी विफलता रिपोर्ट देनी होगी। इस रिपोर्ट में उसको ये बताना होगा कि उसके ये प्रयास विफल क्यों हुए। महंगाई को रोकने के लिए अब क्या किया जाना चाहिए और कब तक महंगाई को टारगेट लिमिट में लाया जा सकेगा। इसमें से आखिरी प्वाइंट आगे की मौद्रिक नीति के निर्धारण में अहम भूमिका निभाएगा।
पिछले महीने के अंत में मनीकंट्रोल से हुई एक बातचीत में मॉनीटरी पॉलिसी कमेटी (एमपीसी) के तीन बाहरी सदस्यों में से एक, जयंत वर्मा ने कहा था कि मुद्रास्फीति को "जितनी जल्दी हो सके" 4 फीसदी तक लाया जाना चाहिए। अब इसमें सबसे बड़ा सवाल ये है कि महंगाई को कितनी जल्दी 4 फीसदी तक लाया जा सकता है क्योंकि इसकी कीमत अर्थव्यवस्था को भी चुकानी होगी। इसमें 6 महीने, 12 महीने, या फिर 18 महीने कितना समय लगेगा, इस पर हमें बातचीत करनी चाहिए। अब हम उस बिंदु पर पहुंच रहे हैं जहां हमें इस मुद्दे पर वितार करने की आवश्यकता है"।
गौरतलब है कि आरबीआई एमपीसी ने पिछले 4 महीनों में अपनी रेपो रेट 140 बेसिस प्वाइंट बढ़ा कर 5.4 फीसदी कर दी है। अधिकांश अर्थशास्त्रियों का मानना है कि 2022 के अंत तक आरबीआई की रेपो दर 6 फीसदी या उससे ज्यादा हो सकती है। इससे संकेत मिलता है इस साल के बचे हुए हिस्सों में आरबीआई अपनी रेपो रेट में दो बार बाढ़त कर सकता है। बता दें कि आरबीआई की मॉनीटरी पॉलिसी कमेटी की अगली बैठक 28-30 सितंबर 2022 को होनी है।
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