Gold monetization : सरकार ने 10 साल पहले शुरू हुई गोल्ड मॉनेटाइजेशन स्कीम (Gold monetization scheme) को बंद कर दिया है। हालांकि, बैंक अपने हिसाब से छोटी अवधि के लिए इसे जारी रख सकते हैं। सरकार इस स्कीम को देश में डिजिटल गोल्ड को बढ़ावा देने और सोने के इंपोर्ट को कम करने के उद्धेश्य से लेकर आई थी। तो ऐसा क्या हुआ जो स्कीम को बंद करने की नौबत आ गई और सबसे बड़ा सवाल ये है कि गोल्ड मोनेटाइजेशन स्कीम में जिन लोगों ने पैसे लगा रखे हैं उन्हें उनका सोना कब, कैसे और किस रूप में मिलेगा। आइए जानते हैं।
सरकार ने गोल्ड मोनेटाइजेशन स्कीम (GM) बंद कर दी है। बाजार के बदलते हालात को देखते हुए ये फैसला लिया गया है। स्कीम के प्रदर्शन को देखते हुए ये फैसला लिया गया है। बैंक छोटी अवधि के लिए स्कीम जारी रख सकते हैं। बैंक कमर्शियल फायदे के मुताबिक स्कीम जारी रख सकते हैं। नवंबर 2015 में इस स्कीम की शुरुआत हुई थी। सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड के साथ ही इसकी शुरुआत हुई थी। भारतीय घरों में करीब 30000 टन सोना मौजूद है।
हमारे देश में सोने से लोगों का भावनात्मक जुड़ाव है। इस अलावा इसकी प्रक्रिया भी कठिन है। डिसक्लोजर और टैक्स का डर लोगों को इस स्कीम से दूर रखता है। साथ ही लोगों में जागरूकता भी कम है। भारत में लोगों का सोने से भावनात्मक जुड़ाव होता है। सोने को विरासत में भी देने की एक प्रथा है। स्कीम में गहनों को पिघलाया जाता था। ज्यादातर लोग सोने को पिघलाने के पक्ष में नहीं हैं। इसकी जांच और जमा की प्रक्रिया लंबी और कठिन थी। सोने की जांच के लिए सेंटर्स भी बहुत कम थे। जमा करने वाले को होल्डिंग घोषित करनी पड़ती थी। लोगों को सोने पर ब्याज औरटैक्स भी देना पड़ता था। लोगों में स्कीम को लेकर जागरुकता की भी कमी थी।
क्या कहते हैं GMS के आंकड़े?
गोल्ड मोनेटाइजेशन स्कीम (GM) के तहत कुल 5693 लोगों ने गोल्ड जमा किया। स्कीम के तहत कुल जमा सोने की मात्रा 31164 किलो रही। लंबी अवधि के लिए 13926 किलो और मध्यम अवधि के लिए 9728 किलो सोना जमा किया गया। जबकि छोटी अवधि के लिए 7509 किलो सोना जमा किया गया।