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बिजली संकट से निपटने की कवायद तेज,पावर और रिन्यूएबल एनर्जी मिनिस्टर आरके सिंह ने संबद्ध पक्षों के साथ की बैठक:सूत्र

रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते अंतराष्ट्रीय बाजार में कोयले के भाव आसमान छू रहे हैं। ऐसे में आयातित कोयले पर आधारित बिजली बनाने वाली यूनिटें या तो ठप्प हो गई है या बहुत कम क्षमता के साथ काम कर रही हैं

अपडेटेड May 07, 2022 पर 2:05 PM
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क तरफ मांग में जबरदस्त उछाल देखने को मिल रहा है वहीं दूसरी तरफ देश में कोयले के कम उत्पादन और रेल ट्रांसपोर्ट में दिक्कतों की वजह से बिजली का उत्पादन कम हुआ है

मनीकंट्रोल को सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के मुताबिक पावर और रिन्यूएबल एनर्जी मिनिस्टर आरके सिंह ने बिजली बनाने वाली और वितरण करने वाली कंपनियों और इनको कर्ज देने वाले वित्तीय संस्थाओं के साथ बैठक की है। इस बैठक में दूसरे संबंधित मंत्रालयों के वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल थे। यह बैठक 6 मई को हुई। इस बैठक में बिजली का उत्पादन बढ़ाने के लिए विद्युत वितरण कंपनियों के बकाए के भुगतान के मुद्दे पर विचार किया गया।

इस बैठक में वित्तीय संकट में चल रही बिजली बनाने वाली कंपनियों पर खास फोकस था। बताते चलें कि देश इस समय चिलचिलाती गर्मी के बीच अभूतपूर्व बिजली संकट के दौर से गुजर रहा है। बिजली वितरण करने वाली कंपनियों ने तमाम बिजली बनाने वाली कंपनियों के बकाए पैसे का भुगतान नहीं किया है। ऐसे में बिजली बनाने वाली कंपनियों के लिए कोयले की खरीद में मुश्किल हो रही है।

इसके अलावा अंतराष्ट्रीय बाजार में कोयले के भाव आसमान छू रहे हैं जिसका असर देश के ऊर्जा उत्पादन पर देखने को मिल रहा है। इस समस्या के समाधान के लिए ऊर्जा मंत्रालय ने कल यह बैठक की है।


पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों ने पावर जनरेशन कंपनियों के 1.1 लाख करोड़ रुपये का भुगतान अभी तक नहीं किया है। जिससे पावर बनाने वाली कंपनियों के कैश फ्लो पर नेगेटिव असर पड़ा है और वह कोयला नहीं खरीद पा रही हैं। इसके पहले पावर कंपनियों ने कहा था कि वे समय पर पैसा ना मिलने की वजह से वित्तीय संकट से गुजर रही हैं।

इस बैठक में शामिल एक वरिष्ठ अधिकारी ने मनीकंट्रोल को बताया कि पावर और रिन्यूएबल मिनिस्ट्री ने बिजली बनाने और वितरण करने वाली कंपनियों और इनको कर्ज देने वाले वित्तीय संस्थाओं से कहा है कि वे भुगतान से जुड़े इस मुद्दे को सुलझाने पर काम करें। इस मुद्दे के समाधान के लिए एक त्रिपक्षीय करार का भी प्रस्ताव रखा गया है। जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि बिजली वितरण करने वाली कंपनियां बिजली बनाने वाली कंपनियों को समय पर भुगतान कर सकें और बिजली बनाने वाले कंपनियों को बैंकों और संस्थाओं से वर्किंग कैपिटल और दूसरे तरीके के कर्ज आसानी से मिल सके जिससे की वह अपनी यूनिटों को फिर से चालू कर सकें।

बता दें कि 29 अप्रैल को भारत में पावर डिमांड 207.1 GW के ऑल टाइम हाई पर पहुंच गई। भीषण गर्मी मे घरों में बिजली की खपत बढ़ने के साथ ही कोविड -19 के बाद के अनलॉक के चलते इंडस्ट्रियल डिमांड में भी जोरदार बढ़त देखने को मिली है। एक तरफ मांग में जबरदस्त उछाल देखने को मिल रहा है वहीं दूसरी तरफ देश में कोयले के कम उत्पादन और रेल ट्रांसपोर्ट में दिक्कतों की वजह से बिजली का उत्पादन कम हुआ है।

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इसके अलावा रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते अंतराष्ट्रीय बाजार में कोयले के भाव आसमान छू रहे हैं। ऐसे में आयातित कोयले पर आधारित बिजली बनाने वाली यूनिटें या तो ठप्प हो गई है या बहुत कम क्षमता के साथ काम कर रही हैं। ऐसे में सरकार विद्युत उत्पादन बढ़ाने के लिए आपातकालीन कानूनों को लागू करने का विकल्प भी अपना रही है।

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