एक पिता ने पूर्वजों से मिली पारिवारिक जमीन को बेच दिया। उसके बच्चों ने जमीन बेचने का विरोध किया। करीब 31 साल चले इस मामने पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला पिता के फेवर में दिया। यह मामला एक संयुक्त हिंदू परिवार की पैतृक जमीन को लेकर था, जो बेंगलुरु के पास स्थित थी। तीन भाइयों में से एक भाई ने अपने पिता की जमीन का एक हिस्सा बेच दिया, जिस पर उसके चार बच्चों ने आपत्ति जताई। बच्चों का कहना था कि चूंकि यह जमीन उनके दादा की थी, इसलिए वे ‘कॉपार्सनर’ यानी जन्म से इस संपत्ति में हकदार हैं और बिना उनकी मंजूरी के यह संपत्ति बेची नहीं जा सकती। लेकिन पिता का कहना था कि उन्होंने यह जमीन अपने भाई से खरीदी थी, और यह उनका स्वयं अर्जित (self-acquired) हिस्सा था। इस तर्क के आधार पर उन्होंने इसे बेचने का पूरा हक होने की बात कही। सुप्रीम कोर्ट ने 22 अप्रैल 2025 को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिससे हजारों पारिवारिक संपत्ति विवादों में दिशा मिल सकती है।
यह मामला 1994 में शुरू हुआ और 2025 तक अदालतों में चला। ट्रायल कोर्ट ने बच्चों के पक्ष में फैसला सुनाया, जबकि पहले अपीलीय न्यायालय ने पिता के पक्ष में। फिर हाई कोर्ट ने बच्चों के पक्ष में फैसला पलट दिया। लेकिन आखिरकार, सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट का फैसला पलट दिया और साफ कहा कि बंटवारे के बाद मिली जमीन पर्सनल संपत्ति हो जाती है, जिसे कोई भी सदस्य अपनी मर्जी से बेच सकता है।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिंदू कानून के अनुसार, यदि पैतृक संपत्ति का सही तरीके से बंटवारा हो चुका हो, तो हर व्यक्ति का हिस्सा उसकी स्वयं अर्जित संपत्ति माना जाएगा। फिर वह उस हिस्से को बेचने, गिफ्ट करने या वसीयत करने के लिए स्वतंत्र है।
इस केस में 1986 में तीनों भाइयों ने एक रजिस्टर बंटवारा किया था। पिता (C) ने अपने भाई (A) से उसका हिस्सा 1989 में खरीदा और 1993 में बेच दिया। बच्चों ने दावा किया कि पिता ने जमीन खरीदने के लिए दादी द्वारा दी गया अमाउंट और पारिवारिक आमदनी का इस्तेमाल किया था, इसलिए यह संपत्ति भी पारिवारिक मानी जाएगी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह दलील खारिज कर दी, यह मानते हुए कि पिता ने पर्सनल तौर लोन लेकर यह संपत्ति खरीदी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई भी स्वयं अर्जित संपत्ति तब तक संयुक्त परिवार की संपत्ति नहीं बनती जब तक मालिक इसे साफ तौर पर पारिवारिक खजाने में मिलाने का इरादा न जताए। इस केस में ऐसी कोई मंशा या सबूत नहीं पाया गया।
सिर्फ संयुक्त परिवार का हिस्सा होने से किसी संपत्ति में जन्मसिद्ध अधिकार नहीं बनता। जब बंटवारा हो चुका होता है, तो वह जमीन प्राइवेट संपत्ति हो जाती है। इसीलिए पिता को अपनी मर्जी से संपत्ति बेचने का पूरा अधिकार था।
क्यों अहम है सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बहुत से ऐसे मामलों में मिसाल बनेगा, जहां बच्चों या अन्य परिवार के सदस्यों के पूर्वजों की संपत्ति को लेकर विवाद किया जाता है। यह स्पष्ट कर दिया गया है कि बंटवारे के बाद व्यक्ति अपने हिस्से का पूर्ण मालिक होता है और उसमें दूसरों का कोई दावा नहीं बनता।