भारत में फार्महाउस खरीदना अब केवल वीकेंड रिट्रीट के लिए नहीं रह गया है, बल्कि यह अमीरों के लिए टैक्स बचाने का एक कारगर रास्ता बन चुका है। एक्सपर्ट्स के अनुसार, अमीर लोग खेती की जमीन और फार्महाउस का इस्तेमाल भारत के आयकर कानून का फायदा उठाने के लिए कर रहे हैं, जिससे वे अपनी टैक्स देनदारी को काफी कम कर पाते हैं।
खेती से होने वाली आय पर भारत में कोई इनकम टैक्स नहीं लगता। फसलों या पशुपालन से जो भी आमदनी होती है, वह पूरी तरह टैक्स-फ्री होती है, जिससे धनाढ्य वर्ग खेती को अपनी आय छुपाने और टैक्स बचाने का माध्यम बनाता है। इसके अलावा, कृषि उत्पादों पर GST भी केवल 0 से 5% के बीच रहता है, जिससे उनका टैक्स बोझ और भी कम हो जाता है। यह फायदा अमीरों को लगभग 40% तक की टैक्स बचत का मौका देता है।
इसके अलावा, आयकर अधिनियम की धारा 54B के तहत खेती की जमीन बेचने पर मिलने वाले पूंजीगत लाभ (कैपिटल गेन्स) पर भी टैक्स छूट मिलती है, बशर्ते इस राशि को फिर से किसी कृषि भूमि में निवेश किया जाए। कई राज्यों में खेती की जमीन पर स्टांप ड्यूटी भी कम लगती है, जिससे खरीदारों को अतिरिक्त फायदा होता है।
एक्सपर्ट्स ने यह भी बताया कि अमीर लोग अपनी संपत्ति को सीधे अपने नाम पर खरीदने के बजाय कंपनियों, ट्रस्ट या लिमिटेड लायबिलिटी कंपनी (एलएलसी) के नाम से खरीदते हैं। इससे वे कई टैक्स लाभ तो हासिल करते ही हैं, साथ ही संपत्ति को कानूनी विवादों और तलाक जैसी स्थितियों में सुरक्षित भी रख पाते हैं। इस रणनीति से वे अपनी संपत्ति की सुरक्षा के साथ-साथ टैक्स देनदारी से बचाव भी करते हैं।
फार्महाउस मूल रूप से खेत या बड़ी जमीन पर बने मकान होते हैं, जिनमें खेती के अलावा मनोरंजन और आराम के लिए भी सुविधाएं होती हैं। अमीर वर्ग उन्हें न केवल प्राकृतिक वातावरण का आनंद लेने के लिए खरीदता है, बल्कि टैक्स बचत के लिए भी इसका इस्तेमाल करता है।
इस प्रकार, फार्महाउस खरीदना अमीर भारतीयों के लिए सिर्फ आराम का स्थान नहीं बल्कि कर बचत की स्मार्ट योजना भी बन चुका है, जो उनकी संपत्ति को बढ़ाने और टैक्स में छूट पाने का जरिया बनता जा रहा है। यही वजह है कि नोएडा, गुड़गांव, हैदराबाद और मुंबई के आसपास के इलाकों में फार्महाउस की मांग लगातार बढ़ती जा रही है, जहां खेती की जमीन पर निवेश कर अमीर लोग अपनी टैक्स देनदारी को प्रभावी ढंग से कम कर रहे हैं।
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