एक बार भगवान शिव के निवास कैलाश पर वह मां पार्वती और अपने सभी गणों के साथ बैठे थे। तब मां पार्वती ने अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए भोलेनाथ से प्रश्न किया था, जिसके उत्तर में उन्होंने इस व्रत का पूरा वर्णन किया था। मां पार्वती ने कहा, ‘प्रभु, मैं बहुत सौभाग्यशाली हूं कि मुझे आप पति रूप में मिले हैं। क्या मैं जान सकती हूं कि मैंने ऐसा कौन सा पुण्य किया था, जो आप मुझे पति रूप में प्राप्त हुए ?’ उनकी बात सुनकर भगवान शिव ने कहा, ‘पार्वती तुमने बहुत उत्तम, पुण्य का संग्रह किया था, जिससे तुमने मुझे पति रूप में प्राप्त किया है। ये गुप्त व्रत है, लेकिन मैं तुम्हें बताता हूं।’ उन्होंने आगे बताया, ‘यह व्रत भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की तीज के नाम से जाना जाता है। इस व्रत का पुण्य तब और भी बढ़ जाता है, जब ये हस्त नक्ष्त्र में किया जाता है। तुमने भी यही व्रत किया था।’ ये सुनकर मां पार्वती को यकीन नहीं हुआ और उन्होंने इसे विस्तार से सुनने की इच्छा जताई। तब महादेव ने उन्हें बताया, ‘राजा हिमवान और रानी मैना की बेटी पार्वती ने मुझे पति रूप में पाने के लिए व्रत और तपस्या शुरू की। अपनी बेटी की ये हालत राजा हिमवान और रानी मैना से देखी नहीं जा रही थी। एक बार वो अपनी बेटी के विवाह के लिए बहुत चिंतित थे, तभी नारद जी उनके पास श्रीहरि विष्णु से विवाह का प्रस्ताव लेकर पहुंचे। राजा हिमवान ने उनका ये प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। लेकिन ये बात जब तुम्हें पता चली तो तुम बहुत दुखी हो गई और तुमने इसकी चर्चा अपनी सहेली से की। तुम्हारी सहेली ने तब तुम्हें कहा कि मैं तुम्हें ऐसी गुफा में ले जाउंगी जहां तुम आराम से अपनी तपस्या जारी रख सकोगी और तुम्हारे पिता राजा हिमवान भी तुम्हें नहीं खोज पाएंगे। और तुम अपनी सखी के साथ उस गुफा में चली गई और अपनी तपस्या आरंभ करने के लिए नदी की बालू से लिंग बनाकर पूजा शुरू की। तुमने इस दौरान अन्न-जल त्याग कर मेरी प्रार्थना की तब हस्त नक्षत्र था। इसके बाद ही मैंने तुम्हारे समक्ष प्रकट होकर तुम्हें दर्शन दिए और मनोकामना पूर्ति का अशीर्वाद दिया।’