Pitru Paksha 2025: हिंदू धर्म में पितृ पक्ष ऐसा समय होता है, जब हम अपने पूर्वजों को याद करते हैं। हमारे जो परिजन अब हमारे बीच नहीं हैं, उनकी आत्मा की शांति के लिए तर्पण, पिंडदान और पूजा करते हैं। यह 15-16 दिनों की अवधि धार्मिक मान्यओं के अनुसार बहुत खास होती है। माना जाता है कि इस दौरान हमारे पितृ अपने वंशजों को देखने के लिए धरती पर आते हैं और उनके सत्कर्मों से खुश होकर आशीर्वाद देते हैं। पितृ पक्ष हर साल भाद्रपद मास की पूर्णिमा के दिन के श्राद्ध से शुरू होता है और सर्वपितृ अमावस्या के दिन समाप्त होता है। इस बार पितृ पक्ष की प्रतिपदा तिथि को शिववास योग के अलावा बालव, कौलव और तैतिल करण के योग बन रहे हैं।
7 सितंबर से शुरू हो रहा है श्राद्ध पक्ष
इस साल पितृ पक्ष की शुरुआत 7 सितंबर से हो रही है और ये 21 सितंबर को सर्व पितृ अमावस्या के साथ समाप्त होगा। बता दें इस बार पितृ पक्ष की अवधि में दो दिनों का नुकसान हो रहा है, इस वजह से पंचमी व षष्ठी का श्राद्ध 12 सितंबर को होगा। इस कारण से इस बार पितृ पक्ष मात्र 14 दिनों का ही रह जाएगा।
इस दिन से शुरू हो रहे श्राद्ध
भाद्रपद पूर्णिमा की तिथि से पितृ पक्ष शुरू होता है, जो छह सितंबर को आधी रात के बाद 12.57 बजे से लगेगी। यह सात सितंबर की रात 11.47 बजे तक रहेगी। उदया तिथि 7 तारीख को मिल रही है, इसलिए पूर्णिमा का श्राद्ध सात सितंबर को किया जाएगा। इसी रात को चंद्रग्रहण भी है जो भारत में दिखाई देगा। चंद्रग्रहण रात में 9.52 बजे से शुरू होकर 1.27 बजे तक रहेगा। चंद्रग्रहण का मोक्ष होते ही आश्विन कृष्ण प्रतिपदा तिथि लग जाएगी। अत: प्रतिपदा का श्राद्ध आठ सितंबर को होगा।
वैदिक पंचांग के अनुसार, अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि 08 सितंबर को रात 09 बजकर 11 मिनट तक है। इसके बाद द्वितीया तिथि शुरू होगी।
पितृ पक्ष प्रतिपदा के दिन आठ सितंबर को रात 09 बजकर 11 मिनट तक शिववास योग का संयोग है। इस दौरान महादेव कैलाश पर मां पार्वती के साथ विराजमान रहेंगे। माना जाता है कि शिववास योग में पितरों का तर्पण करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है और पितरों की कृपा प्राप्त होती है।
पितृ पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर बालव, कौलव और तैतिल करण के योग हैं। बालव और कौलव योग में पितरों का तर्पण किया जाएगा। साथ ही पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र और उत्तराभाद्रपद नक्षत्र का संयोग है। इन शुभ योग में पितरों का तर्पण करने से साधक के सुख, सौभाग्य और वंश में वृद्धि होगी।