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Tulsi Vivah 2025 Katha: तुलसी विवाह में जरूर सुनी जाती है ये कथा, जानिए वृंदा और जांलधर की कथा और विष्णु भगवान को क्यों मिला श्राप

Tulsi Vivah 2025 Katha: हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन तुलसी विवाह का अनुष्ठान किया जाता है। इस दिन तुलसी की पौराणिक कथा जरूर सुनी जाती है, जिसमें वृंदा, जालंधर और भगवान विष्णु को मिले श्राप के बारे में विस्तार से जानने को मिलता है।

MoneyControl Newsअपडेटेड Oct 29, 2025 पर 8:00 AM
Tulsi Vivah 2025 Katha: तुलसी विवाह में जरूर सुनी जाती है ये कथा, जानिए वृंदा और जांलधर की कथा और विष्णु भगवान को क्यों मिला श्राप
तुलसी विवाह हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन मनाया जाता है।

Tulsi Vivah 2025 Katha: हिंदू धर्म में तुलसी विवाह का बहुत महत्व है। यह अनुष्ठान भगवान विष्णु के चतुर्मास से जागने के अगले दिन किया जाता है। इस दिन तुलसी के पौधे की भगवान शालिग्राम के साथ विधि-विधान से विवाह किया जाता है। हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे को बहुत पवित्र और पूजनीय माना जाता है। कहते हैं जहां तुलसी का वास होता है, वहां यमराज के दूत भी प्रवेश नहीं करते। तुलसी की पूजा को गंगा स्नान के समान पुण्यकारी माना गया है और इसे घर में रखने से सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।

तुलसी के पौधे जितना ही पवित्र होता है तुलसी विवाह का अनुष्ठान। यह हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन मनाया जाता है। इस साल यह आयोजन 2 नवंबर के दिन किया जाएगा। इस दिन माता स्वरूप तुलसी के पौधे का दुल्हन की तरह श्रृंगार करते हैं और उनकी पूजा, कथा और आरती कर प्रसाद वितरित करते हैं। इस दिन तुलसी की पौराणिक कथा जरूर सुनी जाती है, जिसमें वृंदा, जालंधर और भगवान विष्णु को मिले श्राप के बारे में विस्तार से जानने को मिलता है। आइए जानें क्या है ये कथा

राक्षसराज जलंधर और तुलसी कथा

श्रीमद् देवीभागवत पुराण के अनुसार, एक समय भगवान शिव ने अपना अंश समुद्र में प्रवाहित किया। इस तेज से एक बालक का जन्म हुआ, जो बड़ा होकर जलंधर नामक महाबली और पराक्रमी दैत्यराज बना। आगे चलकर जलंधर आसुरी कर्म करने लगा और उसके अत्याचार से समस्त जीव परेशान हो गए। उसने सत्ता के गर्व में चूर होकर पहले माता लक्ष्मी को पाने की इच्छा से युद्ध किया और फिर देवी पार्वती को पाने की लालसा से कैलाश पर्वत पर आ गया। लेकिन देवी पार्वती ने योगबल से तुरंत उसे पहचान लिया और अंतर्ध्यान हो गई। क्रुद्ध पार्वती ने इस घटना की जानकारी भगवान विष्णु को दी।

जलंधर अत्यंत पराक्रमी था और उसकी शक्ति का स्रोत उसकी पत्नी वृंदा थी। वृंदा एक धर्मनिष्ठ और पतिव्रता स्त्री थी। उसका सतीत्व ही जलंधर के अपराजेय होने का सबसे बड़ा कारण था। इसलिए देवताओं और सृष्टि के लिए इसे मारना असंभव था। इसलिए सृष्टि को जलंधर के आतंक से मुक्त करने के लिए भगवान विष्णु ने एक ऋषि का रूप धारण किया और वृंदा के पास पहुंच गए।

ऋषि रूपी विष्णु से वृंदा ने युद्ध में जलंधर के हाल पूछे। उन्होंने अपनी माया से दो वानरों का रूप दिखाया, जिनके हाथों में जलंधर का सिर और धड़ था। यह देखकर वृंदा मूर्छित हो गई। होश में आने पर भगवान विष्णु अपनी माया से जालंधर के रूप में उसके सामने आ गए। वृंदा ने भगवान विष्णु को जलंधर समझकर पति के रूप में सेवा की, जिससे उसका सतीत्व भंग हो गया। सतीत्व भंग होते ही जलंधर की शक्ति क्षीण हो गई और देवताओं ने उसे मार डाला।

जब वृंदा को भगवान विष्णु के छल का पता चला, तो वह क्रोधित हो उठी। उसने दुखी होकर भगवान विष्णु को पत्थर बनने का श्राप दे दिया और स्वयं आत्मदाह कर लिया। जहां वृंदा ने आत्मदाह किया, वहां तुलसी का पौधा उग आया। भगवान विष्णु ने शालिग्राम रूप में वृंदा को वरदान दिया कि वह अब तुलसी के रूप में सदा उनके साथ रहेगी। तब भगवान विष्णु ने वृंदा के तुलसी रूप के साथ विवाह करने और सदैव साथ रहने का वचन दिया। तब से हर वर्ष तुलसी विवाह भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप से आयोजित किया जाता है।

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