Char Dham Yatra 2025: हर साल हजारों श्रद्धालु उत्तराखंड में स्थित प्रसिद्ध चार धाम की यात्रा करते हैं। लेकिन इस बार चारधाम यात्रा श्रद्धालुओं की आस्था भारी पड़ती नजर आ रही है। अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस साल यात्रा शुरू होने के बाद से अब तक 80 से अधिक श्रद्धालुओं की मौत हो चुकी है। 80 में से 71 तीर्थयात्रियों की मौत स्वास्थ्य संबंधी कारणों के चलते हुई है। इनमें से अधिकांश लोगों की मौत ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी, हार्ट अटैक और सांस लेने में तकलीफ के कारण हुई है। मरने वालों में कई बुजुर्ग और पहले से बीमार यात्री भी थे जिनकी पुरानी मेडिकल हिस्ट्री रही है।
ABP न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक, चार धाम यात्रा के शुरू होने के 36 दिनों में लगभग 80 यात्रियों की मौत हुई है। चारधाम यात्रा में शामिल चारों प्रमुख तीर्थ केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री मंदिर समुद्र तल से 3,000 से 3,500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हैं। पहाड़ों पर जैसे-जैसे ऊंचाई बढ़ती है, हवा में ऑक्सीजन का लेवल कम होता जाता है। इन कठिनाइयों के बावजूद हर साल लाखों की संख्या में लोग चारधाम यात्रा करने जाते हैं। लेकिन इस साल श्रद्धालुओं की मौत के आंकड़े डराने वाले हैं।
लोगों की क्यों हो रही मौत?
एक्सपर्ट की मानें तो इन मौतों एक बड़ा कारण Altitude Sickness (ऊंचाई से बीमारी) माना जा रहा है। इस बीमारी को ऊंचाई पर होने वाली बीमारी भी कहा जाता है। इसके बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी होती है। Altitude Sickness बीमारी में अधिक ऊंचाई पर जाने से शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है। जैसे-जैसे भक्त ऊंचे स्थान पर चढ़ते हैं, हवा का दबाव और उसमें मौजूद ऑक्सीजन की मात्रा घटती जाती है। इससे आपके शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती।
साथ ही सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। यह बीमारी उन लोगों को अधिक अटैक करती है जो मैदानी इलाकों में रहते हैं। ऊंचाई पर रहना उनके शरीर के लिए नया अनुभव होता है। मौत के आंकड़ों पर नजर डालें तो सबसे ज्यादा प्रभावित बुजुर्ग और पहले से बीमार लोग हैं। डॉक्टरों का कहना है कि बिना तैयारी के ऊंचाई पर चढ़ने से 'एक्यूट माउंटेन सिकनेस' (AMS) का खतरा बढ़ जाता है।
'एक्यूट माउंटेन सिकनेस' (AMS) के लक्षणों में सिरदर्द, चक्कर आना, उल्टी और सांस फूलना शामिल हैं। समुद्र तल पर हवा में ऑक्सीजन की मात्रा 21 फीसदी होती है, लेकिन 3,000 मीटर की ऊंचाई पर यह लेवल काफी कम हो जाता है। इसे मेडिकल भाषा में 'हाइपोक्सिया' कहते हैं। मैदानी इलाकों से सीधे पहाड़ों पर चढ़ने वाले लोगों के लिए यह स्थिति जानलेवा साबित हो सकती है।
उत्तराखंड सरकार ने यात्रा मार्गों पर मेडिकल कैंप, ऑक्सीजन सिलेंडर, एंबुलेंस और अन्य इमरजेंसी सुविधाओं की व्यवस्था की है। हालांकि, भारी संख्या में पहुंच रहे श्रद्धालुओं की तुलना में ये व्यवस्थाएं नाकाफी साबित हो रही है। स्थानीय प्रशासन को इस चुनौती से निपटने में खासी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। एक्सपर्ट का कहना है कि कई श्रद्धालु बिना किसी मेडिकल जांच या शारीरिक तैयारी के यात्रा पर निकल पड़ते हैं। इससे उनकी जान जोखिम में पड़ जाती है। बुजुर्गों और पहले से बीमार भक्तों में सबसे ज्यादा मौतें दर्ज की गई हैं।