दुनिया का सबसे चर्चित हीरा कोहिनूर हमेशा सुर्खियों में रहा है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसी कोहिनूर की एक ‘बहन’ भी है, जिसकी कहानी उतनी ही रहस्यमयी है? इसे कहते हैं दरिया-ए-नूर। यह सिर्फ एक हीरा नहीं, बल्कि इतिहास की परतों में छिपा एक ऐसा खजाना है, जिसके चारों ओर रहस्य, साजिश और किंवदंतियों का जाल बिछा हुआ है। सदियों पहले का ये हीरा कभी महाराजा रणजीत सिंह की शान था और कहा जाता है कि उन्होंने इसे गर्व से अपने हाथों में धारण किया था।
दिलचस्प बात ये है कि इस बेशकीमती हीरे की असली तस्वीर आज तक किसी ने नहीं देखी। लोगों के बीच बस इसके किस्से, दावे और विरोधाभास ही हैं। यही कारण है कि दरिया-ए-नूर को जानना, इतिहास के उस भूले हुए पन्ने को पलटने जैसा है, जहां हर बार एक नया रहस्य सामने आ जाता है।
बांग्लादेश की तिजोरी में कैद
रिपोर्ट्स के मुताबिक, ये कीमती हीरा फिलहाल बांग्लादेश के सोनाली बैंक की तिजोरी में बंद है। खास बात ये है कि 1985 के बाद से ये तिजोरी आधिकारिक रूप से खोली ही नहीं गई। छह साल पहले इसके गायब होने की खबरें जरूर आई थीं, लेकिन सरकार और बैंक अधिकारियों ने हमेशा यही दावा किया कि ये अब भी वहीं सुरक्षित है।
क्यों कहा जाता है कोहिनूर की बहन
दरिया-ए-नूर की बनावट और इतिहास दोनों ही इसे कोहिनूर से जोड़ते हैं। माना जाता है कि दोनों हीरे दक्षिण भारत की एक ही खान से निकले थे। रणजीत सिंह ने इन्हें अपने दोनों हाथों के बाजूबंद में जड़ा था। यही वजह है कि इतिहासकार इस हीरे को कोहिनूर की ‘बहन’ मानते हैं।
इस हीरे का सफर भी कोहिनूर की तरह उतार-चढ़ाव से भरा है। कभी ये नवाबों के पास रहा, फिर अंग्रेजों के हाथों से होकर बांग्लादेश पहुंचा। 1852 में इसे ढाका के नवाब अलीमुल्लाह ने खरीदा था। बाद में आर्थिक संकट की वजह से नवाबों ने इसे गिरवी रख दिया और फिर ये अलग-अलग बैंकों के जरिए सोनाली बैंक तक पहुंच गया।
कभी सामने नहीं आई असली तस्वीर
दरिया-ए-नूर को लेकर सबसे बड़ा रहस्य है कि इसकी असली तस्वीर कभी सामने नहीं आई। जो भी स्केच या पेंटिंग उपलब्ध हैं, वे ब्रिटिश काल के समय की हैं। कुछ इतिहासकारों का दावा है कि दरिया-ए-नूर नाम का हीरा ईरान के केंद्रीय बैंक में भी मौजूद है। रणजीत सिंह का असली हीरा वही था, जिसे अब दरिया-ए-नूर कहा जाता है।
बांग्लादेश के राष्ट्रीय संग्रहालय ने कई बार इस हीरे को प्रदर्शनी में शामिल करने की कोशिश की, लेकिन सुरक्षा कारणों से अनुमति नहीं मिली। अधिकारियों का कहना है कि इतने कीमती रत्न को बाहर लाना जोखिम भरा हो सकता है। यही वजह है कि दशकों से ये हीरा सिर्फ तिजोरी में कैद रहकर रहस्य बना हुआ है।
कोहिनूर की तरह दरिया-ए-नूर भी सिर्फ अपनी कीमत और सुंदरता की वजह से नहीं, बल्कि रहस्यों से भरी अपनी कहानी के कारण लोगों को आकर्षित करता है। आज भी सवाल वही है – क्या ये हीरा वाकई बांग्लादेश की तिजोरी में है या इतिहास की गलियों में कहीं गुम हो चुका है?