दिल्ली के पीतमपुरा का जैन परिवार अपने अनोखे दान की वजह से समाज के लिए मिसाल बन गया। यहां के आशीष और वंदना जैन को एक रूटीन चेकअप के बाद पता चला कि गर्भ में पल रहे पांच महीने के भ्रूण में धड़कन नहीं है। जाहिर है यह खबर परिवार को अंदर तक हिला देने वाली थी। उस मां की स्थिति का अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता कि जिसे ये पता चले कि उसके कान जिसकी किलकारी सुनने का इंतजार कर रहे थे, उसका दिल धड़क ही नहीं रहा। पहले से चार साल के बेटे के माता-पिता आशीष और वंदना भी इस खबर से पूरी तरह टूट गए।
मगर अपनी जिंदगी के इस सबसे मुश्किल हालात में उन्होंने समाज के कल्याण और मानवता के प्रति अपने फर्ज से मुंह नहीं मोड़ा। उन्होंने अपने अजन्मे पांच महीने के भ्रूण को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में दान करने का दिल छलनी करने वाला फैसला लिया। अपने फैसले पर उन्होंने कहा कि उनके दुख को इस निर्णय ने मकसद दे दिया। उन्होंने कहा कि हो सकता है कि हमारे बच्चे की बहुत छोटी जिंदगी किसी के जीवन में बदलाव ला सकती है।
पिता से मिला फैसला लेने का हौसला
आशीष के पिता सुरेश जैन ने उन्हें इस फैसले को लेने में मदद की। आशीष ने कहा, ‘यह हमारे लिए बहुत मुश्किल समय था, लेकिन मेरे पिता ने इस फैसले पर पहुंचने में मदद की। वह खुद भी एक देह दान समिति से जुड़े हैं और उन्होंने दधिचि देह दान समिति से हमारा संपर्क कराया।’ सुरेश अगम श्री फाउंडेशन के संस्थापक हैं और लंबे समय से देह दान और अंग दान के लिए लोगों को प्रेरित और जागरूक करते रहे हैं। दधिचि देह दान समिति के नॉर्थ हेड जीपी तायल ने एम्स से संपर्क कर भ्रूण दान की प्रक्रिया में मदद की। इसके बाद वॉलंटियर्स और एम्स अधिकारियों ने रोहिणी स्थित नर्सिंग होम में एंबुलेंस भेजकर भ्रूण प्राप्त किया।
दधिचि देह दान समिति के उपाध्यक्ष सुधीर गुप्ता ने बताया कि समिति के 28 साल इतिहास में पहली बार भ्रूण दान हुआ है। यहां अब तक 1732 नेत्र दान हुए हैं, 550 देह दान, 42 त्वचा दान हुए हैं, लेकिन कभी भ्रूण दान नहीं हुआ। हालांकि जैन समुदाय से अब तक समिति के माध्यम से 100 लोगों से अंगदान और देहदान किया है, लेकिन ये मिसाल है।
मानव जीवन पर डॉक्टरों की समझ को बढ़ाएगा ये दान
एम्स में एनाटॉमी विभाग के प्रमुख प्रोफेसर सुब्रत बसु रॉय ने कहा, ‘इस तरह के दान भविष्य के डॉक्टरों को सीखने और मानव जीवन के बारे में उनकी समझ बढ़ाने में मदद करते हैं।’ आशीष ने कहा, ‘हमने कभी नहीं सोचा था कि ऐसा होगा। लेकिन अगर हमारा बच्चा भविष्य में डॉक्टरों और शोधकर्ताओं की मदद कर सकता है, तो कम से कम उसका जीवन सार्थक रहा है।’