बिहार की शान और पहचान ठेकुआ से दो युवाओं ने खड़ा किया एक करोड़ रुपये का कारोबार, जानिए इनकी प्रेरणादायी कहानी

ठेकुआ अब लोकल नहीं रह गया है, उसने ग्लोबल होने की तरफ अपने कदम बढ़ा दिए हैं। बिहार का पारंपरिक मिष्ठान ठेकुआ, जो घर के हर मांगलिक कार्य की पहचान माना जाता है अब करोड़ों कमाने वाले कारोबार में बदल गया है। ये कारनामा बिहार के ही दो युवाओं ने किया है। जानिए इनकी कहानी

अपडेटेड Oct 31, 2025 पर 9:42 PM
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उन्होंने पारंपरिक भारतीय स्नैक्स को स्वच्छ और सुरक्षित तरीके से बनाने के आइडिया पर काम शुरू किया।

बिहार की छठ पूजा में खासतौर से बनने वाला ठेकुआ लोकल से ग्लोबल बनने के लिए कदम बढ़ा रहा है। राज्य विशेष पहचान के तौर पर मान्यता प्राप्त ये घरेलू मिष्ठान ठेकुआ भी अब लिट्टी-चोखा की राह पर चल पड़ा है। एक गांव की छोटी सी टूटी-फूटी रसोई से शुरू हुआ ये कारोबार इस साल छठ महापर्व पर एक करोड़ रुपये का टर्नओवर पार गया। इस कारोबार की शुरुआत सोची-समझी नहीं थी, बल्कि एक कड़वा अनुभव था जिसने इसकी नींव रखी।

आसान नहीं थी शुरुआत

ठेकुआ के पारंपरिक स्वाद को देश के कोने-कोने में पहुंचाने का सपना बिहार के दो नाबालिग भाइयों जयंत और कैलाश ने देखा। इन दोनों ने अपने घर की छोटी सी रसोई में मात्र 10000 रुपये के निवेश से शुद्ध स्वाद नाम से पारंपरिक बिहारी स्नैक्स का ब्रांड शुरू किया। रास्ता आसान नहीं था। शुरुआत में दोनों रोजाना लगभग 10 घंटे की मेहनत कर ठेकुआ आदि चीजें बनाते थे और आसपास की लोकल मार्केट में बेचते थे। लेकिन धीरे-धीरे इनकी प्रसिद्धि बढ़ी और एक साल में उनका कारोबार एक करोड़ का टर्नओवर पार कर गया।

2 महीने तक कोई ऑर्डर नहीं

कैलाश और जयंत ने अपने ब्रांड को बेहतर बनाने के लिए काफी मेहनत की। शुरुआत के 2 महीने तक तो दोनों को एक भी ऑर्डर नहीं मिला और लोग उन्‍हें तरह-तरह के ताने भी देने लगे। इसके बावजूद दोनों ने हार नहीं मानी और लगातार सोशल मीडिया प्‍लेटफॉर्म के साथ लोकल मार्केट में अपनी ब्रांडिंग करते रहे। धीरे-धीरे उनकी मेहनत रंग लाई और अब उनके पास करीब 3 लाख कस्‍टमर हैं, जबकि बिजनेस बढ़कर 1 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है।

एक कड़वे अनुभव ने रखी शुद्ध स्वाद की नींव


जयंत ने एक बार एक सड़क के किनारे से ठेकुआ खरीदा था, जिसके बाद वह बीमार पड़ गए। इस अनुभव ने उन्हें पारंपरिक भारतीय स्नैक्स को स्वच्छ और सुरक्षित तरीके से बनाने का विचार दिया। उन्होंने महसूस किया कि पारंपरिक स्नैक्स का भावनात्मक और सांस्कृतिक महत्व है, लेकिन वे अक्सर अस्वच्छ और महंगे होते हैं। जयंत ने अपने दोस्त कैलाश के साथ अपने विचार को साझा किया, जिन्होंने इसे एक सार्थक प्रयास माना। स्कूल की पढ़ाई छोड़ चुके कैलाश परिवार की मदद के लिए रेलवे स्टेशन पर पानी की बोतलें बेचते थे। उन्हें जयंत के आइडिया में कुछ करने की गुंजाइश दिखी। दोनों ने घर पर ही प्रयोग करना शुरू किया और पारंपरिक स्नैक्स के लिए नए व्यंजन बनाने में जुट गए।

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