उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में मौजूद दुधवा टाइगर रिजर्व अपनी खूबसूरती और रहस्यमयी जंगलों के लिए देश-विदेश में खास पहचान रखता है। हर साल यहां हजारों सैलानी सिर्फ रोमांच और प्राकृतिक नजारों का आनंद लेने पहुंचते हैं। आमतौर पर दुधवा का नाम आते ही लोगों के जहन में बाघों की तस्वीर उभर आती है, लेकिन हकीकत इससे कहीं ज्यादा दिलचस्प है। दुधवा के घने जंगलों में ऐसे कई जीव रहते हैं, जिनका दीदार किस्मत वालों को ही नसीब होता है।
यहां की हरियाली, जलाशय और खुला आसमान मिलकर इस जंगल को और भी खास बना देते हैं। यही वजह है कि दुधवा सिर्फ एक नेशनल पार्क नहीं, बल्कि प्रकृति से जुड़ने का एक अनोखा अनुभव बन चुका है, जो हर सैलानी के दिल में अपनी अलग जगह बना लेता है।
जंगल में दिखा इंद्रधनुषी सांप
हाल ही में दुधवा टाइगर रिजर्व के बफर क्षेत्र में एक बेहद दुर्लभ प्रजाति का सांप दिखाई दिया, जिसे रेनबो वाटर स्नेक कहा जाता है। वन विभाग की टीम जब जंगल में नियमित गश्त पर निकली थी, तभी उनकी नजर इस अनोखे सांप पर पड़ी। बताया जा रहा है कि इस सांप की लंबाई करीब 35 सेंटीमीटर है और इसका रंग सामान्य सांपों से बिल्कुल अलग है।
क्यों कहा जाता है इसे ‘रेनबो वाटर स्नेक’?
दुधवा के फील्ड डायरेक्टर के अनुसार, इस सांप का रंग हरा और बेहद चमकीला होता है। इसकी चमक जब रोशनी पड़ने पर इंद्रधनुष जैसी झलक देती है, तभी से इसे रेनबो वाटर स्नेक कहा जाने लगा। ये आमतौर पर नालों, तालाबों और पानी से जुड़े इलाकों में पाया जाता है। इसकी गिनती बेहद दुर्लभ जलीय सांपों में होती है।
जहरीला नहीं, लेकिन बेहद रहस्यमयी
रेनबो वाटर स्नेक भले ही दिखने में आकर्षक हो, लेकिन राहत की बात ये है कि ये जहरीला नहीं होता है। इसकी सबसे बड़ी खासियत ये है कि ये रात में ही ज्यादा सक्रिय रहता है और दिन में पानी या घनी झाड़ियों में छिपा रहता है। ये अपना अधिकांश जीवन पानी के आसपास ही बिताता है।
भोजन और प्रजनन की अनोखी आदतें
ये सांप मेंढक, कीचड़ में रहने वाले छोटे जीवों और जलीय कीट-पतंगों का शिकार करता है। विशेषज्ञों के अनुसार, इसकी मादा प्रजाति मिट्टी या रेत में 10 से 52 तक अंडे देती है। खास बात ये है कि अंडों से बच्चे निकलने तक मादा सांप उनकी पूरी सुरक्षा करती है, जो इसे और भी खास बनाता है।
भारत में दुर्लभ, अमेरिका में ज्यादा पाया जाता है
हालांकि रेनबो वाटर स्नेक भारत में बेहद कम देखने को मिलता है, लेकिन अमेरिका के दक्षिण-पूर्वी राज्यों में इसकी संख्या अधिक है। इसकी दुर्लभता का सबसे बड़ा कारण इसका छिपकर रहने वाला स्वभाव और रात में सक्रिय होना माना जाता है, जिससे आम लोगों की नजर इस पर बहुत कम पड़ती है।