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उच्च जाति आयोग: एक गुरु के दो शिष्य, कर्पूरी फॉर्मूले को नीतीश ने याद रखा, लालू भूल गए

कर्पूरी ठाकुर आजाद भारत की राजनीति के पहले नेता थे जिन्होंने संवैधानिक आरक्षण की मूल भावना से एक कदम आगे जाकर गरीब पिछड़ों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया था। नई उम्र के लोगों को यह सोचकर भी हैरानी होगी कि कर्पूरी ठाकुर ने 1978 में गरीब सवर्णों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया था

Arun Tiwariअपडेटेड Jun 06, 2025 पर 8:30 AM
उच्च जाति आयोग: एक गुरु के दो शिष्य, कर्पूरी फॉर्मूले को नीतीश ने याद रखा, लालू भूल गए
उच्च जाति आयोग: एक गुरु के दो शिष्य, कर्पूरी फॉर्मूले को नीतीश ने याद रखा, लालू भूल गए

बिहार की वर्तमान राजनीति के दो बड़े ध्रुव एक ही 'शिक्षक' की क्लास से निकले दो साथी हैं। शिक्षक हैं कर्पूरी ठाकुर और दो ध्रुव हैं लालू यादव और नीतीश कुमार। दोनों ही नेता गाहे-बगाहे कर्पूरी ठाकुर का नाम लेते रहते हैं और उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने पर जोर देते रहे हैं। कर्पूरी ठाकुर की राजनीति की सबसे बड़ी उपलब्धि सामाजिक न्याय की लड़ाई रही है। इस लड़ाई को नीतीश और लालू ने अपने ढंग से आगे बढ़ाया। लेकिन एक मामला ऐसा है जहां लालू यादव अपने प्रतिद्वंद्वी नीतीश कुमार से से पीछे दिखते हैं। या कह सकते हैं कि वो अपने गुरु कर्पूरी ठाकुर का एक सबक भूल गए।

गरीब सवर्णों के बारे में सोचने वाले पहले नेता कर्पूरी

दरअसल कर्पूरी ठाकुर आजाद भारत की राजनीति के पहले नेता थे जिन्होंने संवैधानिक आरक्षण की मूल भावना से एक कदम आगे जाकर गरीब पिछड़ों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया था। नई उम्र के लोगों को यह सोचकर भी हैरानी होगी कि कर्पूरी ठाकुर ने 1978 में गरीब सवर्णों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया था। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस मामले में कर्पूरी ठाकुर के सामाजिक न्याय के सिद्धांत के साथ खड़े दिखते हैं। जबकि लालू यादव अपनी सामाजिक न्याय की लड़ाई में सवर्णों को शामिल करने के खिलाफ रहे हैं।

सामाजिक न्याय की लड़ाई में लालू का अलग स्टैंड

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