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बस्तर में अब तक जहां थे सिर्फ नक्सल, वहां जल्दी ही पहुंचेगी रेल

कोठागुडेम (तेलंगाना) से किरंदुल (छत्तीसगढ़) तक प्रस्तावित 160 किलोमीटर लंबी रेल लाइन का फाइनल लोकेशन सर्वे अब अंतिम चरण में है। इस रेल योजना के तहत सुकमा, दंतेवाड़ा और बीजापुर जैसे नक्सल प्रभावित जिलों को पहली बार रेल नेटवर्क से जोड़ा जा रहा है, जहां अब तक रेल की कोई सुविधा नहीं थी। यह पूरा काम भारत सरकार के गृह मंत्रालय की निगरानी में किया जा रहा है

Amitabh Sinhaअपडेटेड Jun 27, 2025 पर 3:38 PM
बस्तर में अब तक जहां थे सिर्फ नक्सल, वहां जल्दी ही पहुंचेगी रेल
बस्तर में अब तक जहां थे सिर्फ नक्सल, वहां जल्दी ही पहुंचेगी रेल

बस्तर में पहली बार रेल लाइन बिछाने का सपना अब साकार होने को है। बस्तर के नक्सल इलाकों- सुकमा, दंतेवाड़ा और बीजापुर में लिडार तकनीक से गृह मंत्रालय की निगरानी में रेल मंत्रालय का सर्वे शुरू हो चुका है। यह ऐसी मशीन होती है, जो आसमान से ड्रोन या हेलिकॉप्टर की मदद से जमीन को स्कैन करती है और बताती है कि कहां-कहां पहाड़ हैं, नदियां हैं या पेड़ हैं। इससे सटीक और जल्दी रास्ता तय किया जा सकता है। जब ये सर्वे पूरा हो जाएगा, तब रेलवे पूरा प्लान DPR यानी डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनाएगा। उसके बाद रेललाइन का निर्माण शुरू होगा।

कोठागुडेम (तेलंगाना) से किरंदुल (छत्तीसगढ़) तक प्रस्तावित 160 किलोमीटर लंबी रेल लाइन का फाइनल लोकेशन सर्वे अब अंतिम चरण में है। इस रेल योजना के तहत सुकमा, दंतेवाड़ा और बीजापुर जैसे नक्सल प्रभावित जिलों को पहली बार रेल नेटवर्क से जोड़ा जा रहा है, जहां अब तक रेल की कोई सुविधा नहीं थी। यह पूरा काम भारत सरकार के गृह मंत्रालय की निगरानी में किया जा रहा है, क्योंकि यह परियोजना सुरक्षा और विकास—दोनों के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है। राज्य सरकार के सहयोग से यह कार्य फिर से तेजी पकड़ चुका है। यह रेल लाइन बस्तर के लोगों के लिए शिक्षा, इलाज, व्यापार और आत्मनिर्भरता की नई राह खोलने जा रही है।

रेलवे लाईन बनेगी छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों के लिए जीवनरेखा

यह रेल लाइन तीन राज्यों– तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ से होकर गुजरेगी, लेकिन इसका सबसे बड़ा हिस्सा यानी 138 किलोमीटर से ज्यादा छत्तीसगढ़ के अंदर है, जो अब तक रेल सुविधा से वंचित रहा है। यह इलाका विकास की दृष्टि से पिछड़ा माना जाता है और नक्सल गतिविधियों से प्रभावित रहा है। हाल के सालों तक इन इलाकों में प्रशासन नाम की कोई चीज नजर तक नहीं आती थी। यहां तक की सुरक्षा बलों को भी इन इलाकों में अपनी गतिविधि चलाना आसान नहीं हो पाता था। छत्तीसगढ़ सरकार के सहयोग से यह काम फिर से तेजी पकड़ चुका है।

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