Congress Crisis: पंजाब से कर्नाटक तक... कब-कब किस राज्य में कांग्रेस उठाना पड़ा आपसी कलह का नुकसान
Karnataka CM Crisis: ये कोई पहली बार नहीं है, जब कांग्रेस इस तरह की अंदरूनी कलह से जूझ रही है। इससे पहले पंजाब, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश में भी उसके शीर्ष नेताओं के बीच जबरदस्त टकराव हुआ और पार्टी को इसका नुकसान या तो अपनी मौजूदा सरकार गंवा कर उठाना पड़ा या फिर चुनावों में हार का मुंह देखना पड़ा
Congress Crisis: पंजाब से कर्नाटक तक... कब-कब किस राज्य में कांग्रेस उठाना पड़ा आपसी कलह का नुकसान
कांग्रेस के बार फिर उसी समस्या से जूझ रही है- दो बड़े नेताओं की आपसी लड़ाई, जो अब उसके लिए एक सिरदर्द बन चुका है। इस बार ये लड़ाई कर्नाटक में छिड़ी है, जहां डिप्टी CM डीके शिवकुमार सरकार के ढाई साल पूरे होने के बाद अब खुद मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं, जबकि मौजूदा मुख्यमंत्री सिद्धारमैया अपना पद छोड़ने को तैयार नहीं। हाईकमान ने आज दिल्ली में डीके और सिद्धारमैया दोनों को तलब किया है और पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि सभी के साथ विचार विमर्श कर के ही कोई फैसला लिया जाएगा।
ये कोई पहली बार नहीं है, जब कांग्रेस इस तरह की अंदरूनी कलह से जूझ रही है। इससे पहले पंजाब, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश में भी उसके शीर्ष नेताओं के बीच जबरदस्त टकराव हुआ और पार्टी को इसका नुकसान या तो अपनी मौजूदा सरकार गंवा कर उठाना पड़ा या फिर चुनावों में हार का मुंह देखना पड़ा।
मध्य प्रदेश में गिरी सरकार
मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार का पतन 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत से हुआ, जिसके चलते 15 महीने पुरानी कमल नाथ सरकार गिर गई। सिंधिया ने 22 विधायकों के साथ इस्तीफा देकर भाजपा ज्वाइन की, जिससे बहुमत चला गया और शिवराज सिंह चौहान फिर सीएम बने। यह घटना राज्या सभा चुनाव, गुटबाजी और केंद्रीय नेतृत्व की नाकामी का नतीजा थी।
सिंधिया की नाराजगी के कारण-
2018 चुनाव जीत के बाद कमल नाथ सीएम बने, सिंधिया को मंत्री पद नहीं मिला।
सिंधिया ने कर्जमाफी जैसे वादों पर नाराजगी जताई।
दिग्विजय सिंह गुट ने सिंधिया को किनारे कर दिया। राहुल गांधी के करीबी होने के बावजूद पद न मिलने से नाराजगी।
राज्या सभा टिकट विवाद ने आग लगाई; सिंधिया को नामांकन से रोका गया।
इससे कांग्रेस हाईकमान की विफलता उजागर हुई। मध्य प्रदेश सरकार गिरने का दिग्विजय-कमल नाथ ने एक-दूसरे पर दोष मढ़ा। 2025 में दिग्विजय ने कहा "मध्य प्रदेश की सरकार कमल नाथ-सिंधिया के मतभेद से गिरी"।
पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की बगावत
अभी कांग्रेस मध्य प्रदेश के झटके से उभर ही रही थी कि उधर पंजाब में भी उसकी सरकार में समस्याएं खड़ी हो गईं। पंजाब कांग्रेस संकट का मुख्य केंद्र खुद कैप्टन अमरिंदर सिंह थे, जिन्होंने सितंबर 2021 में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया गया। पार्टी के अंदर की खींचतान, खासकर नवजोत सिंह सिद्धू के साथ मतभेद, और पार्टी नेतृत्व की नाराजगी कैप्टन के इस्तीफे की बड़ी वजहें थीं। कांग्रेस को इसका खामियाजा 2022 के विधानसभा चुनाव हारकर चुकाना पड़ा।
अमरिंदर के इस्तीफे से पहले कई महीने कांग्रेस के अंदर चली आ रही गुटबाजी ने पार्टी को कमजोर किया। कई विधायक और मंत्री सिद्धू के समर्थन में आ गए थे, जबकि अमरिंदर का खेमा खूब सक्रिय था। उनके आलोचकों ने उन्हें "अप्रभावी" और "अलग-थलग" बताया।
अमरिंदर ने पार्टी से निकल कर पंजाब लोक कांग्रेस बनायी, जो 2022 विधानसभा चुनाव में कोई सीट नहीं जीत पाई। बाद में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (BJP) में शामिल होने का रास्ता चुना। उनके साथ कई पुराने समर्थक कांग्रेस छोड़कर BJP में शामिल हुए।
राजस्थान में गहलोत vs पायलट
राजस्थान कांग्रेस में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच लंबे समय से टकराव चला आ रहा था। 2018 विधानसभा चुनाव में जीत के बाद मुख्यमंत्री पद और संगठनात्मक नियंत्रण को लेकर भड़का, जो 2020 में बगावत, 2022 में सामूहिक इस्तीफे और 2023 में विधानसभा चुनाव हार तक पहुंचा। इस गुटबाजी ने पार्टी को कमजोर किया, जहां गहलोत का पुराना ग्रामीण-जाट आधार पायलट के युवा-गुज्जर समर्थन से टकराया।
2018 चुनाव जीत के बाद गहलोत को सीएम बनाया गया, जबकि पायलट को डिप्टी सीएम और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष। पायलट को लगा कि वे मुख्य योगदानकर्ता थे, लेकिन गहलोत ने ज्यादा विभाग रखे।
2020 में राज्या सभा चुनाव और मंत्रिमंडल फेरबदल पर विवाद बढ़ा। पायलट ने 18-19 विधायकों के साथ बगावत की और दिल्ली-मानेसर गए। गहलोत ने उन पर बीजेपी से सांठगांठ का आरोप लगाया।
हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में कानूनी लड़ाई चली। पायलट गुट के विधायकों को अयोग्य घोषित करने की कोशिश हुई। आखिरकार राहुल गांधी के हस्तक्षेप से सुलह हुई, पायलट को डिप्टी सीएम पद वापस मिला।
सितंबर 2022 में गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुने गए, लेकिन 'वन मैन वन पोस्ट' नियम के कारण सीएम पद छोड़ना पड़ा। उनके समर्थक विधायकों ने सामूहिक इस्तीफा देकर पायलट को सीएम बनाने की कोशिश रोकी।
महाराष्ट्र कांग्रेस में आपसी कलह
यह विवाद 2023 की शुरुआत में MLC चुनाव और संगठनात्मक शैली को लेकर उभरा और खुली बगावत की स्थिति तक पहुंच गया। यह टकराव न सिर्फ नेताओं के व्यक्तिगत रिश्तों का मामला था, बल्कि प्रदेश कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी, टिकट बंटवारे और नेतृत्व पर भरोसे के संकट को भी दिखाता है।
फरवरी 2023 में बालासाहेब थोरात ने महाराष्ट्र कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता पद से इस्तीफा दे दिया।
थोरात ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को भेजे पत्र में लिखा कि वे प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले के साथ काम नहीं कर सकते और उन्हें लगातार नजरअंदाज किया जा रहा है। इस्तीफा उस समय सामने आया, जब मीडिया में उनकी चिट्ठी के अंश लीक हुए और पार्टी में खुली नाराजगी की चर्चा तेज हुई।
विवाद की मूल वजह नाशिक ग्रेजुएट/टीचर्स/ग्रेजुएट-MLC चुनाव के दौरान सत्यजीत तमबे (थोरात के भांजे) और उनके पिता सुधीर तमबे का मामला था।
पार्टी ने आधिकारिक उम्मीदवार के रूप में सुधीर तमबे को टिकट दिया, जबकि परिवार पहले ही संकेत दे चुका था कि चुनाव लड़ने की इच्छा सत्यजीत तमबे की है।
नामांकन के समय सुधीर तमबे ने पर्चा नहीं भरा, सत्यजीत ने निर्दलीय के रूप से मैदान में उतरकर चुनाव जीत लिया, जिससे कांग्रेस को बड़ी फजीहत झेलनी पड़ी।
नाना पटोले की अगुवाई में कांग्रेस ने सुधीर और सत्यजीत दोनों को निलंबित कर दिया, जिस पर थोरात खेमे को लगा कि परिवार को निशाना बनाया जा रहा है और पूरा दोष उनके सिर मढ़ा जा रहा है।
थोरात का कहना था कि नाना पटोले को उनके और उनके परिवार के प्रति “नफरत” है और वे जानबूझकर उनकी छवि खराब कर रहे हैं। उन्होंने शिकायत की कि प्रदेश नेतृत्व महत्वपूर्ण फैसलों में उनसे सलाह-मशविरा नहीं करता, जबकि वे वरिष्ठ नेता और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष हैं। थोरात ने यह भी आरोप लगाया कि अंदरूनी राजनीति में अफवाहें फैलाई गईं कि वे और उनका परिवार भाजपा के संपर्क में हैं या वहां टिकट ले सकते हैं।
वहीं नाना पटोले ने आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि उन्होंने “गंदी राजनीति” नहीं की और तमबे प्रकरण में जो भी कदम उठाए गए, वे पार्टी अनुशासन के आधार पर थे।
उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा कि उन्हें थोरात के इस्तीफे वाले पत्र की जानकारी नहीं है या आधिकारिक रूप से पत्र प्राप्त नहीं हुआ।
पटोले समर्थक दावा करते रहे कि अगर किसी ने पार्टी की आधिकारिक लाइन से हटकर चुनाव लड़ा और पार्टी को शर्मिंदा किया, तो कार्रवाई स्वाभाविक थी, चाहे वह किसी वरिष्ठ नेता का रिश्तेदार ही क्यों न हो।
हाईकमान की भूमिका और बाद की स्थिति
घटना के बाद कांग्रेस हाईकमान ने मामले को शांत करने के लिए मध्यस्थों को महाराष्ट्र भेजा और थोरात-पटोले दोनों से बातचीत की। रिपोर्ट्स के मुताबिक, आलाकमान ने थोरात का इस्तीफा तुरंत स्वीकार नहीं किया और संकेत दिया कि मतभेद बातचीत से सुलझाए जाएंगे।
कुछ बैठकों के बाद दोनों नेताओं ने सार्वजनिक मंचों पर “सब ठीक है” जैसा संदेश देने की कोशिश की, लेकिन विश्लेषकों के अनुसार, विश्वास का संकट और गुटबाजी कायम रही और यह 2024 के लोकसभा/विधानसभा की तैयारी पर भी असर डाल सकता था।
हिमाचल में सुक्खू और वीरभद्र परिवार आमने-सामने
हिमाचल प्रदेश कांग्रेस में संकट मुख्य रूप से वीरभद्र सिंह परिवार (प्रतिभा सिंह, विक्रमादित्य सिंह) और सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू के बीच गुटबाजी से उपजा, जो 2024 में 6 विधायकों के बगावत, मंत्री के इस्तीफे और लोकसभा हार के बाद चरम पर पहुंचा। 2022 चुनाव वीरभद्र सिंह की विरासत पर लड़ा गया, लेकिन हाईकमान ने सुक्खू को सीएम बनाकर 'वंशवाद' के आरोप से बचने की कोशिश की, जिससे पुराना खेमा नाराज हो गया।
फरवरी 2024 में 6 असंतुष्ट विधायक (3 निर्दलीय समेत) BJP में शामिल हो गए और सुक्खू सरकार पर संकट आ गया। विक्रमादित्य सिंह ने सुक्खू पर विधायकों की अनदेखी का आरोप लगाकर मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। कांग्रेस हाईकमान ने बीच-बचाव करना पड़ा।
इसके बाद लोकसभा चुनाव में कांग्रेस राज्य की सभी 4 सीटें हार गई। फिर नवंबर 2024 में हाईकमान ने राज्य कांग्रेस समिति भंग की (प्रतिभा सिंह को छोड़कर), गुटबाजी और निष्क्रिय कार्यकर्ताओं को जिम्मेदार ठहराया। 'समोसा विवाद' ने आंतरिक तनाव उजागर किया।
दरअसल ऐसा बताया जाता है कि वीरभद्र सिंह (6 बार सीएम) की पत्नी प्रतिभा सिंह सीएम पद न मिलने से नाराज थीं। उन्होंने सुक्खू पर 'विधायकों का अपमान' करने का आरोप लगाया।