भारत के हर कोने में सरसों का नाम आते ही मन में देसी खाने की याद ताजी हो जाती है। चाहे गांव की मिट्टी में पका सरसों का साग हो या शहर की रसोई में तड़के की आवाज सरसों हर जगह अपनी मौजूदगी दर्ज कराती है। ये छोटा-सा बीज सिर्फ मसाला नहीं, बल्कि भारतीय खानपान, परंपरा और देसी औषधियों का मेल है। सरसों का तेल हो या इसके दाने दोनों ही रसोई के स्वाद और सेहत के साथी माने जाते हैं। दिलचस्प बात ये है कि सरसों एक नहीं, बल्कि दो रूपों में मिलती है पीली और काली। दोनों ही हमारे खाने में अलग-अलग रंग और स्वाद जोड़ती हैं।
