Maharashtra Election Results: वे हीरो, जो चुपचाप करते रहे काम और महायुति की प्रचंड जीत कर दी तय

Maharashtra Assembly Election Results: हर चुनाव में कई गुमनाम नायक होते हैं। इस बार महाराष्ट्र में स्थानीय मुद्दों पर फोकस करते हुए लो प्रोफाइल वाले कैंपेन ने सुनिश्चित किया कि महायुति के पक्ष में लहर चल पड़े। भाजपा ने अपनी पिछली गलतियों से सीख लेते हुए सुधार किया और ऐतिहासिक जीत हासिल की

अपडेटेड Nov 23, 2024 पर 9:38 PM
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महाराष्ट्र में भाजपा के पास पूरे एमवीए गठबंधन से ज्यादा सीटें आई हैं।

महाराष्ट्र में 20 नवंबर को जब वोटिंग खत्म हुई तो भाजपा के टॉप स्ट्रैटेजिस्ट में से एक ने कहा कि महायुति लगभग 215 सीटें जीतने जा रही है। लेकिन वह इसे किसी और को बताने को तैयार नहीं थे। अब वोट काउंटिंग के दिन नतीजे साबित करते हैं कि उन्होंने लोगों और जमीनी स्तर पर काम कर रहे भाजपा कार्यकर्ताओं के मूड को सही ढंग से समझा। रुझान साबित करते हैं कि भाजपा नेतृत्व ने जमीनी स्तर पर काम करीब-करीब परफेक्शन के साथ किया था। उन्होंने न केवल MVA के मुस्लिम-दलित-मराठा संयुक्त वोट बैंक में सेंध लगाई, बल्कि पूरा महाराष्ट्र भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति के पीछे एकजुट दिखाई दिया।

महाराष्ट्र में भाजपा के पास पूरे एमवीए गठबंधन से ज्यादा सीटें आई हैं। शरद पवार के राजनीतिक जीवन में यह अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन है, जिसमें उनका स्ट्राइक रेट केवल 11.6% रहा। भाजपा ने केवल 145 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन बढ़त के आधार पर उनका स्ट्राइक रेट 84% रहा, जबकि उनके सहयोगी दल शिवसेना का 71% और एनसीपी का 62% रहा।

एनालिस्ट इसे सांप्रदायिक मुद्दों और “बंटोगे तो कटोगे” और “एक हैं तो सुरक्षित हैं” जैसे नारों या “लाडकी बहीन योजना” जैसी मुफ्त योजनाओं की जीत कह सकते हैं। लेकिन नतीजे साबित करते हैं कि यह कोई एक मुद्दा नहीं था, जिसने महाराष्ट्र के सभी हिस्सों में महायुति के पक्ष में रुख मोड़ दिया। मुद्दे अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग थे, लेकिन राज्य के विभिन्न हिस्सों में हाईकमान द्वारा नियुक्त किए गए नेता चुपचाप यह सुनिश्चित करते रहे कि कार्यकर्ता एकजुट रहें और स्थानीय स्तर पर असंतुष्ट नेता पार्टी लाइन में आ जाएं। सूत्रों ने कहा कि प्रत्येक बूथ पर तैनात कार्यकर्ताओं की संख्या 2024 के लोकसभा चुनावों की तुलना में 4 गुना से अधिक बढ़ा दी गई थी। वे नेतृत्व के साथ लगातार संपर्क में थे।


अमित शाह

शाह के संगठनात्मक कौशल के बारे में पहले ही बहुत कुछ कहा जा चुका है। लोकसभा चुनाव में उन्हें करारा झटका लगा है। लेकिन 4 महीने पहले पुणे में स्टेट एग्जीक्यूटिव मीटिंग में अमित शाह ने ही पार्टी का एजेंडा तय किया था। उन्होंने भ्रष्टाचार को लेकर शरद पवार पर निशाना साधा और उद्धव ठाकरे की तुलना मुगल बादशाह औरंगजेब से की। उन्होंने महाराष्ट्र के सभी क्षेत्रों में नेताओं को तैनात किया, ताकि हालात नियंत्रण में रहें। अजित पवार को लेकर कार्यकर्ताओं में भ्रम की स्थिति दूर हुई और मतदाताओं के बीच चीजें सहज हुईं। पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की रैलियों की जगह एकनाथ शिंदे, देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार की रैलियों को वरीयता दी गई। उन्होंने रोजाना रैलियां कीं, लेकिन उनका फोकस बूथों को मजबूत करने पर ज्यादा रहा।

भूपेंद्र यादव

इनका चुपचाप काम करने का तरीका अब भाजपा संगठन में एक बेंचमार्क बन गया है। यादव को सबसे कठिन काम सौंपा गया और उन्होंने सकारात्मक तरीके से जवाब दिया। लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में करारी हार के तुरंत बाद भाजपा हाईकमान ने केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव और अश्विनी वैष्णव को राज्य चुनाव प्रभारी यानि स्टेट इलेक्शन इंचार्ज नियुक्त किया। यादव ने अपना सामान बांधा और मुंबई में डटे रहे। अपने को-इंचार्ज अश्विनी वैष्णव के साथ उन्होंने एक टास्क सेट किया। उनके कामों में सभी बूथों को मजबूत करना, निराश पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाना, जमीनी स्तर पर संघ और भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच कोऑर्डिनेशन सुनिश्चित करना शामिल था। टिकट बंटने के बाद नाराज नेताओं को शांत करने में भी यादव ने अहम भूमिका निभाई।

भूपेंद्र यादव ने अश्विनी वैष्णव के साथ मिलकर इस साल की शुरुआत में हुए लोकसभा चुनाव में उन्हें नुकसान पहुंचाने वाली कहानी से अलग एक कहानी भी गढ़ने की कोशिश की। यादव का आरएसएस कनेक्शन भी काम आया। कथित तौर पर लोकसभा चुनाव में दूर रहने वाले संघ ने महाराष्ट्र में जमीनी स्तर पर पूरी ताकत झोंक दी। हरियाणा में भी आरएसएस की भागीदारी गेम चेंजर साबित हुई। महाराष्ट्र में संघ ने भाजपा हाईकमान को साफ कर दिया कि वे उन सीटों पर भी जीत सुनिश्चित करेंगे, जहां वे कभी नहीं जीते या जो हमेशा भाजपा के लिए मुश्किल रही हैं। सूत्रों का कहना है कि संघ ने यहां तक ​​कहा कि वे 60 से अधिक सीटों पर जीत सुनिश्चित करेंगे। यहां भी भूपेंद्र यादव चुपचाप अपना काम करते रहे।

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अश्विनी वैष्णव

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव अग्निपरीक्षा थी क्योंकि वैष्णव को पहली बार इलेक्शन को-इंचार्ज नियुक्त किया गया था। उन्होंने अपना सामान बांधा और भोपाल चले गए। संगठनात्मक स्तर पर कड़ी मेहनत की। नतीजे ऐतिहासिक रहे। केंद्रीय कैबिनेट मंत्री के रूप में अश्विनी वैष्णव ने पहले ही अपनी क्षमता साबित कर दी थी। मध्य प्रदेश में जीत के बाद पार्टी के प्रति उनकी प्रतिबद्धता, संगठनात्मक कौशल और एक रणनीतिकार के रूप में कौशल साबित हुए। लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद उन्हें भूपेंद्र यादव के साथ महाराष्ट्र इलेक्शन को-इंचार्ज नियुक्त किया गया।

संगठन में कमियों को दूर करना उनका काम था। एमवीए और मतदाताओं को भ्रमित करने की रणनीति सफल रही और अजित पवार ने महायुति के अपने सहयोगियों से अलग राह पकड़ी। मुस्लिम-दलित-मराठा गठबंधन टूट गया। अजित पवार के 'बटेंगे तो कटेंगे' के रुख ने अल्पसंख्यकों को उनकी एनसीपी (अजित) के प्रति नरम कर दिया, मराठा वोट भी उनके पक्ष में बंट गए। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री के तौर पर वैष्णव राज्य में हो रही घटनाओं से वाकिफ थे। उन्होंने प्याज, सोयाबीन किसानों के पक्ष में कदम उठाकर यह सुनिश्चित किया कि उनके बारे में सकारात्मक बातें ही हों। इस बार कार्यकर्ताओं को यह विश्वास हो गया कि भ्रष्टाचार की जड़ शरद पवार हैं, न कि अजित पवार जो शरद पवार के हाथों का मोहरा मात्र हैं। इस बार कार्यकर्ताओं का गुस्सा गायब हो गया।

राज्य के नेतृत्व पर नजर डालें तो विदर्भ में प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने अहम भूमिका निभाई। विदर्भ हमेशा से कांग्रेस का गढ़ रहा है। लेकिन कांग्रेस ने शिवसेना उद्धव और एनसीपी शरद पवार को 20 से ज्यादा सीटें दे दीं। वे कोई प्रभाव डालने में विफल रहे और नतीजा यह हुआ कि उनके द्वारा लड़ी गईं अधिकांश सीटें भाजपा ने जीत लीं। दलित-मुस्लिम और कुनबी गठबंधन कहीं नहीं दिखा।

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उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, जो हमेशा सुर्खियों में रहते हैं, पूरे राज्य में स्टार प्रचारक थे। लेकिन उन्हें मराठवाड़ा और विदर्भ में जीत सुनिश्चित करने की विशेष जिम्मेदारी भी दी गई थी। उन्होंने भी शानदार प्रदर्शन किया।

अश्विनी वैष्णव और भूपेंद्र यादव ने स्थानीय नेतृत्व की क्षमताओं पर अधिक भरोसा किया। महायुति के सभी शीर्ष नेताओं ने पीएम और अमित शाह से कहीं ज्यादा रैलियां कीं। यहां तक ​​कि नितिन गडकरी भी कैंपेन में व्यापक रूप से शामिल थे। इसका मतदाताओं और पार्टी कार्यकर्ताओं पर जादुई असर हुआ।

Amitabh Sinha

Amitabh Sinha

First Published: Nov 23, 2024 9:19 PM

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