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Mahakumbh Mela 2025: 12 साल में ही क्यों लगता है महाकुंभ मेला? जानिए कुंभ और महाकुंभ मेले में अंतर

Prayagraj Mahakumbh 2025: साल 2025 में उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ लगने वाला है। यह महाकुंभ मेला हर 12 साल में लगता है। कहा जा रहा है कि देवताओं और राक्षसों के बीच अमृत के लिए 12 दिनों तक लड़ाई चली थी। इंसानों के लिए यह 12 दिन का समय 12 साल के बराबर होता है। यही वजह है कि हर 12 साल बाद महाकुंभ मेला लगता है

Jitendra Singhअपडेटेड Dec 02, 2024 पर 4:39 PM
Mahakumbh Mela 2025: 12 साल में ही क्यों लगता है महाकुंभ मेला? जानिए कुंभ और महाकुंभ मेले में अंतर
Prayagraj Mahakumbh 2025: महाकुंभ मेले का हिंदू धर्म में बहुत ज्यादा महत्व है। इस बार इसका आयोजन 13 जनवरी से प्रयागराज में हो रहा है।

महाकुंभ मेला भारत में सबसे बड़ा धार्मिक समागम है। इसमें देश विदेश से करोड़ों लोग शामिल होते हैं। साल 2025 में महाकुंभ मेला प्रयागराज में लगने वाला है। इस मेले को लेकर तैयारियां पूरे जोरों पर चल रही हैं। महाकुंभ मेला हर 12 साल में एक बार आयोजित किया जाता है। इस दौरान करोड़ों श्रद्धालु गंगा, यमुना और सरस्वती के पवित्र संगम तट पर स्नान करने के लिए आते हैं। कहा जाता है कि इसमें एक बार स्नान करने से भक्तों के सभी पापों का नाश हो जाता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। बहुत से लोगों की जिज्ञासा होगी कि आखिर यह 12 साल में ही महाकुंभ क्यों लगता है?

इस बार महाकुंभ मेले की शुरुआत 13 जनवरी 2025 से हो रही है। यह मेला 26 फरवरी 2025 महाशिवरात्रि व्रत तक चलेगा। इससे पहले साल 2013 में प्रयागराज में महाकुंभ मेला लगा था। इस बार कुंभ मेले में 10 करोड़ श्रद्धालुओं के आने का अनुमान लगाया जा रहा है और इसको लेकर सुरक्षा की पूरी व्यवस्था की गई है।

आखिर 12 साल बाद क्यों लगता है महाकुंभ मेला?

दरअसल, कहा जाता है कि है कि देवताओं और असुरों के बीच अमृत पाने को लेकर लगभग 12 दिनों तक लड़ाई चली थी। इसके साथ ही यह भी कहा जाता है कि देवताओं के 12 दिन मनुष्य के 12 सालों के बराबर होते हैं। यही वजह है कि 12 साल बाद महाकुंभ लगता है। इस लड़ाई के दौरान अमृत की कुछ बूंदें 12 स्थानों पर गिरी थीं। जिनमें से चार स्थान पृथ्वी पर स्थित हैं। इसमें प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक शामिल हैं। यही कारण है कि इन स्थानों पर कुंभ मेला आयोजित किया जाता है। शास्त्रों में प्रयागराज को तीर्थ राज या 'तीर्थ स्थलों का राजा' भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि पहला यज्ञ ब्रह्मा जी ने यहीं पर किया था। महाभारत समेत कई पुराणों में इसे धार्मिक प्रथाओं के लिए जाना जाने वाला एक पवित्र स्थल माना गया है।

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