Budget 2023: क्या भारत के ‘अमीर’ किसानों पर टैक्स लगाने का आ गया समय?
Budget 2023 : खास तौर पर बजट से पहले कृषि आय पर टैक्स लगाने का मुद्दा उठता रहता है। इसकी मुख्य वजह यह है कि अमीर और कॉर्पोरेट्स भी कर से बचने के लिए अपनी इनकम को कृषि आय के रूप में दिखाते रहे हैं। कई नर्सरियों, सीड कंपनियों और कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कंपनियों से जुड़े इनकम पर टैक्स छूट के दावे भी सामने आए हैं
असम, तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र, ओडिशा, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में कृषि आय कर लागू है, हालांकि यह केवल कुछ फसलों और गतिविधियों के लिए है
Budget 2023 : कृषि आय पर टैक्स लगाने का मुद्दा अक्सर उठता रहता है। इसकी मुख्य वजह यह है कि अमीर और कॉर्पोरेट्स भी कर से बचने के लिए अपनी इनकम को कृषि आय के रूप में दिखाते रहे हैं। साथ ही नर्सरियों, सीड कंपनियों और कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कंपनियों के द्वारा ऐसी गतिविधियों से हुई इनकम पर छूट के दावे करने के मामले भी सामने आए हैं। कृषि आय (agricultural income) पर टैक्स लगाने के पीछे तर्क अमीरों पर टैक्स लगाने जैसा ही है कि यह टैक्स प्रगतिशील है और इससे ग्रामीण असमानता को कम करने में मदद मिल सकती है।
उदाहरण के लिए, 45 फीसदी भूमि अभी भी गैर-छोटे किसानों के पास है जो कुल किसान परिवारों का केवल 15 फीसदी हैं। पंजाब में, छोटे और सीमांत किसान रिवर्स टेनेंसी के कारण कुल कृषि भूमि के 10 फीसदी से भी कम पर काम करते हैं। छोटे और सीमांत किसान कुल कृषि परिवारों के एक-तिहाई से थोड़े कम हैं। ऐसे कर से समानता को बढ़ावा मिल सकता है।
लैंडहोल्डिंग का मानक
अक्सर तर्क दिया जाता है कि ज्यादातर किसान छोटे और कमजोर हैं। फिलहाल 2.5 लाख रुपये तक की आय कर मुक्त है, इसलिए ज्यादातर किसान कर के दायरे में नहीं आते हैं। यह अलग बात है कि भूमि जोत पर आयकर का आधार सही नहीं है, क्योंकि भूमि का आकार आवश्यक रूप से कृषि आय के अनुरूप नहीं होता है। कृषि गतिविधियों के अलग-अलग संदर्भ हैं, जैसे कि सिंचित और शुष्क भूमि और लैंड सीलिंग अधिनियमों के तहत राज्यों में स्वामित्व वाली भूमि की अलग-अलग सीमाएं होती हैं।
इसके अलावा, पूरे भारत में कृषि आय कम है, किसान कर्ज से डूबे हैं और कुछ इलाकों में सुसाइड तक हुए हैं। केंद्र और राज्य सरकारें डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर दे रही हैं तो कृषि आय पर टैक्स की बात करना फिजूल है। हालांकि, पीएम किसान (PM Kisan) जैसी नीतियों का समानता से कोई मतलब नहीं है। इसलिए इसका कोई औचित्य नहीं बनता है।
टैक्स नहीं लगने की एक वजह राजनीति
ऐसा भी लगता है कि कृषि क्षेत्र से जुड़ी राजनीति के चलते भी किसानों पर इनकम टैक्स नहीं लगा। एक कारण ताकतवर बड़े और मझोले किसानों की लॉबी भी एक वजह रही है। यह देखना दुखद है कि बड़े-बड़े खेतों के मालिक और भारी उपज के बावजूद सब्सिडी और सरकारी खरीद का फायदा उठाने वाले किसान भी इनकम टैक्स नहीं देते हैं।
कृषि आय कर लगाने का औचित्य भारतीय कृषि के स्ट्रक्चर और संगठन में बदलाव के साथ-साथ कृषि उत्पादन से भी उपजा है, जो खाद्यान्न से गैर-खाद्यान्न और बागवानी-पशुपालन जैसी ऊंची कीमत वाली फसलों में स्थानांतरित हो गया है। इसके अलावा, ज्ञान, कौशल और संसाधनों के साथ कृषि उद्यमियों का एक नया समूह भी सामने आया है, जो खेती को एक लाभदायक गतिविधि के रूप में लेते हैं और इससे आकर्षक लाभ कमाते हैं।
हालांकि, इनकम टैक्स का डेटा कुछ अलग कहानी कहता है। सीएजी (Comptroller and Auditor General) के 2019 के रिव्यू में सामने आया कि कुछ ऐसेसीज ने 50 लाख रुपये तक कृषि आय होने का दावा किया। CAG ने 2015 और 2017 के बीच 22,195 में से 6,778 मामलों की समीक्षा की, जिन्होंने 5 लाख रुपये से ज्यादा कृषि आय का क्लेम किया था। पाया गया कि कुल 3,656 करोड़ रुपये की एग्रीकल्चर इनकम का दावा किया गया था। दिलचस्प बात यह है कि कुल दावों में से 57 फीसदी में कॉर्पोरेट एंटिटीज की हिस्सेदारी थी। ऐसे में सवाल उठता है कि सीड कंपनियां कैसे कर छूट का दावा कर सकती हैं, जबकि उनके पास कोई खेत भी नहीं है।
कई राज्यों में लागू है टैक्स
यह ध्यान देने की बात है कि कई राज्यों में किसान कुछ आयकर का भुगतान करते हैं। असम, तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र, ओडिशा, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में कृषि आय कर लागू है, हालांकि यह केवल कुछ फसलों और गतिविधियों के लिए है। किसी भी राज्य सरकार ने इस तरह के कर को शुरू करने पर कोई प्रतिबंध नहीं है, हालांकि इससे देश भर में असमान व्यवहार का मामला सामने आता है।
टैक्स चोरी को रोकना
सिद्धांत रूप में, कृषि आय सहित किसी भी आय पर कर लगना चाहिए। भले ही अधिकांश किसान आयकर के दायरे से बाहर रहें, लेकिन बजट में इसकी घोषणा करने से गैर-कृषि एंटिटीज पर एग्रीकल्चर कैटेगरी के तहत अपनी आय दर्ज करने और कर-मुक्त होने पर रोक लगने का लाभकारी प्रभाव पड़ेगा। इससे असमानता में कमी आएगी। इस मुश्किल से उबरने का एक तरीका इनकम टैक्स एक्ट के तहत ‘इनकम’ की परिभाषा में बदलाव है। इसके अलावा कृषि आय का खुलासा करने वाले प्रोफेशनल्स या पब्लिक सर्वेंट्स को किसी अन्य सामान्य नागरिक की तरह टैक्स के दायरे में लाना चाहिए।
(Sukhpal Singh आईआईएम, अहमदाबाद में प्रोफेसर हैं। ये उनके व्यक्तिगत विचार हैं और इस पब्लिकेशन के रुख को प्रस्तुत नहीं करते हैं।)