बजट 2023 : बजट जहां अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति के बारे में बताता है और उस दिशा बताता है जहां सरकार अर्थव्यवस्था को ले जाना चाहती है। पिछले दो बजट पर कोविड महामारी का असर दिखा और वित्तमंत्री को देश की तात्कालिक जरूरतों को पूरा करने के लिए राजकोषीय प्रावधान करने पड़े थे। हालांकि, महंगाई और महामारी के बाद टैक्स रेवेन्यू में सुधार के साथ अनुमान है कि इस वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा 6.4 फीसदी के लक्ष्य के भीतर रहेगा। पिछले बजट में, वित्तमंत्री ने 2025 तक राजकोषीय घाटा 3.5 तक सीमित करने के अनुमान के साथ राजकोषीय मजबूती की राह अपनाई थी। यह क्रम इस साल भी जारी रहेगा।
महंगाई कम हुई तो कम हो सकता है कर राजस्व
अगले वित्त वर्ष में विशेषकर अगर महंगाई में कमी आती है और घरेलू मांग में कमी आती है तो कर राजस्व (tax revenues) में यह तेजी बनी रहने का अनुमान नहीं है। लेकिन राजस्व में कमी की भरपाई सरकारी खर्च में कमी से नहीं की जा सकती। भले ही भारतीय अर्थव्यवस्था ग्रोथ की राह पर लौट आई हो, लेकिन महामारी के वर्षों के कारण जीडीपी या अर्थव्यवस्था की आय में गिरावट आई है। इसके अलावा, कोविड वर्षों में जीडीपी डेटा में प्रत्येक संशोधन के साथ वास्तविक जीडीपी को नो-कोविड जीडीपी ट्रेंड से दूर किया जाता है, जो महामारी से होने वाले नुकसान की सीमा को दर्शाता है। इसे उलटने में अधिक समय लग सकता है।
सरकारी खर्च की क्वालिटी से पड़ेगा फर्क
जैसे बीते वर्षों में चर्चा की गई है, राजकोषीय घाटा अहम नहीं होगा बल्कि सरकारी खर्च की क्वालिटी से खासा फर्क पड़ेगा। अर्थव्यवस्था में इनकम बढ़ाने के लिए सरकारी निवेश खर्च की गति और समय अहम होगा। वैश्विक मंदी की स्थिति में एक्सपोर्ट घट सकता है और ऐसे में सरकार को बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स से पहले प्राइवेट सेक्टर को प्रोत्साहन देना पड़ सकता है। भले ही कई इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स की प्रगति अभी तक अच्छी रही है, लेकिन हाईवे नेटवर्क्स ने अभी तक गति नहीं पकड़ी है और पावर और एनर्जी में प्रगति सुस्त रही है। आगे टियर 1 शहरों से इतर वित्तीय समावेशन और टेक्नोलॉजी कनेक्टिविटी में सुधार पर जोर होना चाहिए।
क्या है जीडीपी ग्रोथ का अनुमान
Deloitte के अनुमान के मुताबिक, वित्त वर्ष 2022-23 में जीडीपी ग्रोथ रेट 6.5 फीसदी और 6.9 फीसदी के बीच रहने का अनुमान है। NSO के हालिया अनुमान के मुताबिक, जीडीपी ग्रोथ रेट 7 फीसदी से कुछ ज्यादा होगी। हालांकि, महंगाई आरबीआई के कम्फर्ड लेवल के बराबर या ज्यादा हो सकती है। हालांकि, 2024 की दूसरी छमाही में इसमें नरमी आने की उम्मीद है।
सरकार के पास राजस्व के सीमित स्रोत हैं। मौजूदा माहौल में, कर की दरें बढ़ाने या नए करों को लागू करने निजी उपभोग हतोत्साहित हो सकता है। करों के अलावा, अन्य प्रमुख स्रोत जिन पर आम तौर पर बहस होती रही है, वह एसेट मोनेटाइजेशन और डिसइनवेस्टमेंट है। सरकार चालू वित्त वर्ष के लिए एसेट मोनेटाइजेशन के लक्ष्य से चूक सकती है। इससे राजस्व बढ़ाने के लिए, भारत सरकार को उन नीतियों पर विचार करने की आवश्यकता हो सकती है जो निजी कंपनियों को विशेष रूप से चुनिंदा क्षेत्रों में ला सकती हैं।
SME सेगमेंट को समर्थन देकर विशेषकर रेगुलेटर कंप्लायंस से जुड़ी जटिलता और कॉस्ट में कमी लाने से जुड़े रिफॉर्म्स को प्राथमिकता देना चाहिए। कुल मिलाकर, ऐसा अनुमान है कि वित्त मंत्री आगामी बजट को छोटे कारोबारियों और जॉब ग्रोथ को बढ़ावा देने के लिए रिफॉर्म का एजेंडा तैयार करने के लिए इस्तेमाल करेंगे।
(यह लेख Deloitte India में पार्टनर रिचा गुप्ता और इकोनॉमिस्ट Rumki Majumdar ने लिखा है। ये विचार उनके व्यक्तिगत हैं।)