बजट 2023 : फाइनेंस मिनिस्टर निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ऐसा यूनियन बजट (Union Budget 2023) पेश करने की कोशिश करेंगी जो मार्केट को पसंद आएगा और उसमें राजनीतिक संदेश भी होगा। इसके लिए सरकार पूंजीगत खर्च बढ़ा सकती है। साथ ही फिस्कल कंसॉलिडेशन पर फोकस कर सकती हैं। इसके लिए अगले फाइनेंशियल ईयर में सब्सिडी पर खर्च घटाया जा सकता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो यूनियन बजट 2023 में सरकार पूंजीगत खर्च पर फोकस करने के साथ राजनीतिक उद्देश्यों का भी ध्यान रख सकती है। यूनियन बजट 2023 से उम्मीदों के बारे में लगातार चर्चा हो रही है। मार्केट यह भी जानना चाहता है कि इस फाइनेंशियल ईयर के बजट में तय टारगेट के लिहाज से सरकार की प्रगति कैसी रही है। सरकार के लिए अच्छी खबर यह है कि इस फाइनेंशियल ईयर में केंद्र सरकार की वित्तीय स्थिति काफी अच्छी रही है।
सरकार का फिस्कल डेफिसिट फाइनेंशियल ईयर 2020-21 के 9.2 फीसदी के स्तर से काफी नीचे आ चुका है। तब कोरोना की महामारी की वजह से सरकार को खर्च बहुत ज्यादा बढ़ाना पड़ा था। इससे फिस्कल डेफिसिट बहुत बढ़ गया था। हालांकि, अब यह हाई लेवल से काफी कम हो गया है। लेकिन, अब भी बहुत कम नहीं है। सरकार ने फाइनेंशियल ईयर 2025-26 तक फिस्कल डेफिसिट को जीडीपी के 4.5 फीसदी पर लाने का टारगेट तय किया है।
इस फाइनेंशियल ईयर में नवंबर तक साल दर साल आधार पर सरकार का ग्रॉस टैक्स रेवेन्यू 15.5 फीसदी ज्यादा रहा है। यह बजट में 9.6 फीसदी की ग्रोथ के अनुमान से काफी ज्यादा है। इसमें डायरेक्ट टैक्स कलेक्शंस में उछाल का बड़ा हाथ है। इस फाइनेंशियल ईयर में ग्रॉस टैक्स रेवेन्यू के 2 से 3 लाख करोड़ रुपये के अनुमान से ज्यादा रहने की उम्मीद है।
इस फाइनेंशियल ईयर के शुरुआती 8 महीनों में सरकार का नॉन-टैक्स रेवेन्यू 11 फीसदी घटकर 1.98 लाख करोड़ रुपये रहा है। पिछले फाइनेंशियल ईयर की इसी अवधि में यह 2.23 लाख करोड़ रुपये था। नॉन-टैक्स रेवेन्यू में सरकार को बतौर डिविडेंड और प्रॉफिट 74,000 करोड़ रुपये मिलने का अनुमान है। इसमें RBI से सरप्लस का ट्रांसफर CPSEs से डिविडेंड शामिल है। नॉन-टैक्स रेवेन्यू में इस फाइनेंशियल ईयर में 65,000 करोड़ रुपये का डिसइनवेस्टमेंट टारगेट भी शामिल है।
इस फाइनेंशियल ईयर में सरकार का कुल खर्च बजट अनुमान को पार कर जाने की उम्मीद है। सरकार ने इस फाइनेंशियल ईयर में कुल खर्च 39.4 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान जतया था। इसके मुकाबले वास्तविक खर्च 3-4 लाख करोड़ रुपये ज्यादा रह सकता है। सरकार को कोरोना की महामारी की वजह से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध कराना पड़ा था। इससे फूड सब्सिडी पर सरकार का खर्च बहुत बढ़ गया।
अगले फाइनेंशियल ईयर में फूड और फर्टिलाइजर सब्सिडी कम रहने की उम्मीद है। दिसंबर 2022 में सरकार ने फ्री फूड स्कीम को बंद करने का फैसला लिया। इसकी जगह सरकार ने पब्लिक डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम के तहत फ्री अनाज उपलब्ध कराने की योजना को जारी रखने का फैसला किया है। इसके अलावा पिछले साल फरवरी में यूक्रेन पर रूस के हमलों के बाद कमोडिटी की बढ़ी कीमतों में फिर से नरमी आने लगी है।