Budget 2024-25: इंडिया की इकोनॉमी आज जिस रफ्तार से बढ़ रही है उसका बड़ा श्रेय पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को जाता है। वह पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की सरकार में वित्तमंत्री थे। उन्होंने 1991 में आर्थिक रिफॉर्म्स की शुरुआत की थी। तब ऐसे कई नियम और कानून थे, जो इकोनॉमिक ग्रोथ के रास्ते में बड़ी बाधा थे। तब लाइसेंस राज सिस्टम था। व्यापार करना आसान नहीं था। विदेशी निवेश न के बराबर था। फैक्ट्री लगाने के लिए इतनी औपचारिकताएं पूरी करनी पड़ती थी कि हिम्मत जवाब दे जाता था। मनमोहन सिंह ने रिफॉर्म्स के जरिए हालात बदलने की कोशिश शुरू की। वह 1991 से 1996 तक वित्तमंत्री रहे। इस दौरान उन्होंने इकोनॉमी की दिशा बदल दी। आज इकोनॉमी की जिस रास्ते पर चल रही है, उसकी बुनियाद मनमोहन सिंह ने रखी थी।
24 जुलाई, 1991 को पेश किया था बजट
मनमोहन सिंह ने 24 जुलाई, 1991 को यूनियन बजट पेश किया था। यह वित्त वर्ष 1991-92 का पूर्ण बजट था। इसमें उन्होंने उन इकोनॉमिक रिफॉर्म्स की प्रकिया आगे बढ़ाई थी, जिसका ऐलान उन्होंने पिछले कुछ हफ्तों में किया गया था। उन्होंने फर्टिलाइजर्स की कीमतें बढ़ाई थी। कुकिंग गैस और पेट्रोल की कीमतों में भी इजाफा किया था। चीनी पर सब्सिडी खत्म करने का ऐलान किया था। उन्होंने SEBI के अधिकार को बढ़ाने का ऐलान किया था। सेबी को कैपिटल मार्केट्स को रेगुलेट करने की जिम्मेदारी दी गई थी। मनमोहन सिंह ने म्यूचुअल फंड के दरवाजे प्राइवेट कंपनियों के लिए खोल दिया।
इकोनॉमी के रास्ते की बाधायों को हटाया था
1991 में मनमोहन सिंह ने काले धन बाहर निकालने के लिए एक स्पेशल स्कीम का ऐलान किया था। इसमें कहा गया था कि जो लोग अपनी अघोषित कमाई की जानकारी देंगे उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई नहीं की जाएगी। उन्हें पेनाल्टी और इंटरेस्ट चुकाने से भी छूट दी जाएगी। उन्होंने बैंक डिपॉजिट और कमीशन से होने वाली इनकम पर TDS की शुरुआत की थी। UTI स्कीम की यूनिट्स में ऑफशोर फंड्स को मिलने वाले डिविडेंट पर टैक्स छूट का ऐलान किया गया था। इसका मतलब विदेशी निवेश आकर्षित करना था। सेवाओं के एक्सपोर्ट पर टैक्स इनसेंटिव का ऐलान किया था। कॉर्पोरेट टैक्स रेट को 45 फीसदी से घटाकर 40 फीसदी कर दिया गया था।
आर्थिक रिफॉर्म्स का बड़ा असर दिखा
आर्थिक रिफॉर्म्स के ऐलान का फायदा जल्द दिखना शुरू हो गया। लाइसेंस राज खत्म होने से व्यापार तेजी से बढ़ने लगा। नई कंपनियां बनने लगीं। इससे रोजगार के मौके बड़ी संख्या में पैदा हुए। म्यूचुअल फंड, बीमा सहित कई क्षेत्रों में प्राइवेट कंपनियों के आने से बाजार में प्रतियोगिता बढ़ने लगीं। इससे ग्राहकों को प्रतिस्पर्धी कीमतों पर उत्पादन मिलने शुरू हो गए। विदेशी निवेशकों ने इंडिया में निवेश करने में दिलचस्पी दिखानी शुरू कर दी। इससे व्यापार घाटा कम होना शुरू हो गया। इकोनॉमी की सेहत बेहतर हुई।