Retail Inflation: भारत की खुदरा महंगाई (Retail Inflation) अक्टूबर 2025 में तेजी से घटकर 0.25% पर आ गई। यह 2012 में शुरू हुई मौजूदा सीरीज का सबसे निचला स्तर है। सितंबर में यह दर 1.44% थी। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के 12 नवंबर को जारी आंकड़ों के मुताबिक, यह गिरावट मुख्य रूप से खाने-पीने की चीजों के दामों में लगातार कमी की वजह से आई है।
खाने-पीने की चीजों में बड़ी राहत
खाद्य वस्तुओं का सूचकांक (Food Index) अक्टूबर में -5.02% पर रहा, जो सितंबर के -2.3% से और नीचे आया है। इसका मतलब है कि अनाज, दाल, सब्जियों और अन्य जरूरी खाद्य वस्तुओं के दामों में गिरावट जारी रही। मासिक आधार पर देखें तो अक्टूबर में खाद्य कीमतें 0.25% घटीं, जबकि कुल मूल्य सूचकांक में 0.15% की हल्की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
अनाज, दाल और सब्जियों के दाम घटे
अक्टूबर में अनाज की महंगाई -0.92% रही, जो पिछले चार सालों में सबसे कम है। वहीं, दाल और सब्जियों के दाम लगातार नौवें महीने गिरे, जिससे उपभोक्ताओं को राहत मिली है। यह दिखाता है कि खाद्य आपूर्ति स्थिर रही और कीमतें नियंत्रित स्तर पर हैं।
तेल ही एकमात्र श्रेणी जहां दाम बढ़े
खाद्य श्रेणी में केवल तेल (Oil) ऐसी कैटेगरी रहा, जिसमें दोहरे अंक की महंगाई देखी गई। हालांकि, पिछले महीने की तुलना में इसमें थोड़ी नरमी रही। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, नारियल तेल (Coconut Oil) में करीब 93% की भारी बढ़ोतरी दर्ज की गई, जो अक्टूबर में सबसे ज्यादा महंगाई वाला आइटम रहा।
सोना, चांदी और पर्सनल केयर में बढ़े दाम
कोर महंगाई (Core Inflation) के तहत Miscellaneous कैटेगरी में 31 महीने का सबसे ऊंचा स्तर देखा गया। इसमें जिसमें सोना और चांदी शामिल हैं। यहां महंगाई 5.35% से बढ़कर 5.71% हो गई। इसके अलावा Personal Care और Effects की महंगाई भी 19.4% से बढ़कर 23.9% पहुंच गई, जिससे लोगों के रोजमर्रा के खर्च में बढ़ोतरी हुई है।
RBI के लक्ष्य से काफी नीचे रही महंगाई
वित्त वर्ष 2025-26 की पहली छमाही में औसत महंगाई दर 2.22% रही, जो भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के 4% के लक्ष्य से काफी नीचे है। इसमें राहत की वजह वैश्विक कमोडिटी कीमतों में गिरावट और पिछले साल का हाई बेस इफेक्ट रहा है, जिसकी वजह से महंगाई पर दबाव घटा है।
RBI ने घटाया FY26 के लिए अनुमान
महंगाई में आई इस नरमी को देखते हुए RBI ने FY26 के लिए मुद्रास्फीति अनुमान 3.1% से घटाकर 2.6% कर दिया है। हालांकि, आरबीआई का मानना है कि वैश्विक ऊर्जा और खाद्य बाजारों की अनिश्चितता के कारण आने वाले महीनों में सतर्क रहना जरूरी रहेगा।