विदेशी बाजारों में भारी गिरावट का असर गुरुवार को घरेलू तेल-तिलहन बाजार पर भी साफ दिखा। सरसों, मूंगफली और सोयाबीन तेल-तिलहन के साथ-साथ कच्चा पामतेल (सीपीओ), पामोलीन और बिनौला तेल के थोक दामों में गिरावट दर्ज की गई।

विदेशी बाजारों में भारी गिरावट का असर गुरुवार को घरेलू तेल-तिलहन बाजार पर भी साफ दिखा। सरसों, मूंगफली और सोयाबीन तेल-तिलहन के साथ-साथ कच्चा पामतेल (सीपीओ), पामोलीन और बिनौला तेल के थोक दामों में गिरावट दर्ज की गई।
बाजार सूत्रों के मुताबिक, शिकॉगो एक्सचेंज और मलेशिया एक्सचेंज में बीती रात से लगातार गिरावट दिखाई दे रही है, जिसका सीधा असर भारत में आयात होने वाले सोयाबीन और पाम-पामोलीन तेल की कीमतों पर पड़ा। विदेशी बाजारों में कमजोर कारोबारी धारणा की वजह से न केवल सोयाबीन बल्कि अन्य तेल-तिलहन की कीमतें भी दबाव में रहीं।
सरसों का दाम इस वक्त आयातित तेल के मुकाबले करीब 40 रुपये प्रति किलो ज्यादा है, जिसके चलते उपभोक्ता अपेक्षाकृत सस्ते सोयाबीन या पामोलीन तेल की ओर रुख कर रहे हैं। मांग में सुस्ती साफ देखने को मिल रही है।
वहीं, सरकार द्वारा बिकवाली बढ़ाए जाने के चलते मूंगफली तेल-तिलहन के दामों पर भी असर पड़ा है और वे न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे आ गए हैं। अधिक नमी वाली मूंगफली को किसान बाजार में जल्द निकाल रहे हैं, जिससे कीमतें और गिर गई हैं।
इस बीच, बेहद सुस्त कारोबार के कारण बिनौला तेल के दाम भी कमजोर रहे। मलेशिया एक्सचेंज की कमजोरी के चलते सीपीओ और पामोलीन तेल की कीमतों में भी गिरावट आई।
बाजार जानकारों का मानना है कि देशी तेल-तिलहनों को प्रोत्साहन देने और घरेलू बाजार को मजबूत बनाने के लिए सरकार को नई रणनीति पर ध्यान देना होगा।
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