CBI in Action: केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई (CBI) ने ब्रिटिश एयरोस्पेस और डिफेंस कंपनी रोल्स रॉयस पीएलसी (Rolls Royce PLC) के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया है। इस केस में रोल्स रॉयस के अलावा इसकी भारतीय इकाई के टॉप एग्जेक्यूटिव्स और आर्म्स डीलर्स भी नामजद हैं। यह मामला इंडियन एयरफोर्स और नेवी के लिए हॉक 115 एडवांस्ड जेट ट्रेनर (Hawk 115 Advanced Jet Trainer) विमान की खरीदारी में रिश्वत से जुड़ा हुआ है। न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक सीबीआई ने रोल्स रॉयस, रोल्स रॉयस इंडिया के निदेशक टिम जोन्स और ब्रिटिश एयरोस्पेस सिस्टम्स के साथ-साथ बिचौलिए सुधीर चौधरी और उनके बेटे भानु चौधरी के खिलाफ केस दर्ज किया है।
यह केस आईपीसी के सेक्शन 120-बी (आपराधिक षड्यंत्र) और सेक्शन 420 (धोखा) के साथ-साथ प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट के प्रावधानों के तहत दर्ज है। इस मामले में सीबीआई ने दिसंबर 2016 में जांच शुरू की थी।
क्या है विमान सौदा जिसमें हुई गड़बड़ी
3 सितंबर 2003 को कैबिनट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) ने 66 हॉक 115 एडवांस जेट ट्रेनर की खरीदारी को मंजूरी दी। इसके तहत 73.42 करोड़ पौंड (77 रुपये प्रति पौंड के हिसाब से 5653.44 करोड़ रुपये) के 24 बीएई हॉक 115वाई एडवांस जेट ट्रेनर्स को उड़ान की स्थिति में और बाकी 42 विमानों को 30.82 करोड़ पौंड (1944 करोड़ रुपये) में एचएएल (हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड) को बनाना था। इसके अलावा कमेटी ने रोल्स रॉयस को 75 लाख पौंड के मैनुफैक्चरर्स लाइसेंस फीस के लिए भी मंजूरी दी।
इसके तहत रोल्स रॉयस के साथ एक कांट्रैक्ट भी किया गया जिसमें एक इंटिग्रिटी क्लॉज था कि सौदे में कोई बिचौलिया शामिल नहीं होगा और कमीशन नहीं दिया जाएगा। इस इंटिग्रिटी क्लॉज के उल्लंघन पर पेनाल्टी के साथ अगले पांच साल तक भारत सरकार के किसी भी काम के लिए कंपनी को प्रतिबंधित किए जाने का प्रावधान किया गया। एचएएल ने भारतीय वायुसेना को अगस्त 2008 से मई 2012 के बीच 42 विमान डिलीवर कर दिए।
जनवरी 2008 में एचएएल ने 9502 करोड़ रुपये में 57 अतिरिक्त हॉक विमानों को बनाने के लाइसेंस के लिए डिफेंस मिनिस्ट्री से मंजूरी मांगी जिनमें से 40 वायु सेना के लिए और 17 नौसेना के लिए थे। 30 अगस्त 2010 को एचएएल और बीएई के बीच एक कांट्रैक्ट हुआ जिसमें अनुचित प्रभाव के उपयोग और कमीशन पर रोक का प्रावधान रखा गया। एचएएल ने मार्च 2013 और जुलाई 2016 के बीच इनकी डिलीवरी कर दी।
सौदों के लिए जो कांट्रैक्ट हुआ था, उसमें यह प्रावधान था कि इसमें बिचौलिए नहीं शामिल होंगे, कमीशन नहीं लिया जाएगा लेकिन इन प्रावधानों का उल्लंघन हुआ। आरोप है कि 2003-2012 के बीच सभी आरोपियों ने कुछ सरकारी अधिकारियों के साथ मिलकर एक कांस्पिरेसी की। इन सरकारी अधिकारियों को इसके लिए भारी-भरकम घूस और कमीशन मिला। रॉल्स रॉयस ने एयरक्रॉफ्ट की खरीदारी के लिए इस घूस और कमीशन का पेमेंट किया।
सीबीआई के एफआईआर के मुताबिक कंपनी ने बिचौलियों को पैसे दिए जबकि सौदे की शर्तों के मुताबिक इस प्रकार के पेमेंट्स पर रोक थी। ब्रिटिश कोर्ट ने 2017 में जो आदेश दिया है, उसमें भी खुलासा हुआ है कि इस सौदे के लिए कंपनी ने कमीशन दिया और इसमें बिचौलिए शामिल हुए।
2012 में मीडिया रिपोर्ट्स में रोल्स रॉयस के कारोबार में गड़बड़ियों का आरोप लगाया गया। इसके बाद लंदन के सीरियस फ्रॉड ऑफिस ने जांच शुरू की। तब रोल्स रॉयस ने इंडोनेशिया, थाईलैंड, चीन, मलेशिया और भारत जैसे देशों में लेनदेन से जुड़े गलत तरीकों से पेमेंट्स के बार में बयान जारी किया था। इसे लेकर रोल्स रॉयस और एसएफओ के बीच तब एक समझौता हुआ था। उस समझौते पर क्राउन कोर्ट ने 17 जुलाई 2017 जो फैसला दिया, उसमें सारी गड़बड़ियों का खुलासा हुआ। इसमें खुलासा हुआ कि रोल्स रॉयस ने लाइसेंस फीस को 40 लाख पौंड से बढ़ाकर 75 लाख पौंड करने के लिए कंपनी ने एक बिचौलिए को 10 लाख पौंड दिए।
इसके अलावा यह भी खुलासा हुआ कि इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने 9 जनवरी 2006 को जो सर्वे कर बिचौलिए की जानकारी हासिल की थी, उसे वापस हासिल करने के लिए एक बिचौलिए को 18.5 करोड़ पौंड की घूस दी गई। यह घूस इसलिए दी गई ताकि डिफेंस मिनिस्ट्री के पास तक यह लिस्ट न पहुंच सके और अगर ऐसा होता तो कांट्रैक्ट खत्म हो जाता और सीबीआई की जांच शुरू हो जाती।
सीबीआई का यह भी आरोप है कि सुधीर चौधरी से जुड़ी कंपनी पोर्ट्समाउथ के स्विस खाते में रुस की हथियार कंपनियों ने एमआईजी एयरक्राफ्ट के सौदे के लिए 10 करोड़ पौंड जमा किए थे। ये पैसे अक्टूबर 2007-अक्टूबर 2008 के बीच डिपॉजिट हुए थे। सीबीआई के मुताबिक सुधीर चौधरी और भानु चौधरी ने रोल्स रॉयस और बीएईएस के लिए भारतीय एजेंट्स और बिचौलिए के तौर पर काम किया।