पिछले हफ्ते रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के गवर्नर शक्तिकांत दास (Shaktikanta Das) ने मौद्रिक नीतियों का ऐलान किया। इसके बाद उन्होंने एक खास प्रकार के लोन को लेकर बड़ी चिंता जताई। उन्होंने अनसिक्योर्ड रिटेल लोन को से जुड़े खतरों के बारे में बताया। हालांकि उन्होंने यह आश्वासन दिया कि फिलहाल चिंता का कोई तत्काल कारण नहीं है लेकिन ऐसे क्रेडिट में खतरे को महसूस किया है। RBI इस बात के लिए परेशान है कि उन कर्जों में तेज उछाल है जिन्हे पारंपरिक तौर पर बहुत रिस्क वाला माना जाता है। इसमें तेज बढ़ोतरी इसलिए हो रही है क्योंकि बैंक अपने पर्सनल लोनबुक को बढ़ाने के लिए काफी आक्रामक हैं।
केंद्रीय बैंक आरबीआई के डिप्टी गवर्नर जे स्वामीनाथन ने खुलासा किया कि पिछले दो वर्षों में सिस्टम में क्रेडिट ग्रोथ 12-14 फीसदी रही जबकि इस दौरान रिटेल क्रेडिट 23 फीसदी की दर से बढ़ा। इस वित्त वर्ष में अप्रैल-अगस्त 2023 तक रिटेल क्रेडिट 30.8 फीसदी की दर से बढ़ा जबकि पिछले साल समान अवधि में यह आंकड़ा 19.4 फीसदी पर था। सबसे अधिक तेजी क्रेडिट कार्ड लोन में आई और अप्रैल-अगस्त 2023 में इसकी ग्रोथ सालाना आधार पर 26.8 फीसदी से बढ़कर 30 फीसदी से ऊपर पहुंच गई तो एडुकेशन लोन भी 11 फीसदी से उछलकर 20.2 फीसदी पर पहुंच गया।
आखिर चिंता की बात क्या है?
अब सवाल ये उठता है कि पर्सनल लोन में आखिर दिक्कत क्या है तो इसका जवाब है कि ये पूरी तरह से असुरक्षित होते हैं क्योंकि इनमें कोई गारंटी नहीं जमा होती है। इससे आर्थिक सुस्ती या माहौल बिगड़ने पर बैंकों के लिए डिफॉल्ट का रिस्क बढ़ जाता है क्योंकि इनकी वित्तीय क्षमता बड़े कॉरपोरेट की तुलना में काफी कम होती है। RBI गवर्नर ने अभी इसे लेकर कोई दिक्कत तो नहीं जताया है लेकिन इसे लेकर सावधान कर दिया है। अभी तक RBI किसी खास सेगमेंट को लेकर ऐसे सावधान तब तक नहीं करता था, जब तक कि कोई दिक्कत वाला रुझान न दिखे तो ऐसे में यह समझा जा सकता है कि केंद्रीय बैंक अनसिक्योर्ड लोन की हाई ग्रोथ को लेकर सहज नहीं है।
कॉरपोरेट की तुलना में रिटेल लोन में तेज ग्रोथ
इससे पहले के बैड लोन साइकिल में आर्थिक सुस्ती के दौरान अनसिक्योर्ड लोन में तब तेज उछाल दिखी थी जब लोगों की नौकरियां जा रही थी और कमाई गिर रही थी। 28 जून को जारी फाइनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट में RBI ने खुलासा किया कि ग्रॉस एडवांसेज में बड़े कर्जदारों का हिस्सा पिछले तीन साल में गिर रहा है क्योंकि कॉरपोरेट की तुलना में खुदरा कर्ज तेजी से बढ़ा है। बड़े कर्जदारों का हिस्सा मार्च 2020 में 51.1 फीसदी से घटकर मार्च 2023 में 46.4 फीसदी पर आ गया।