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बलराज साहनी क्यों अंतिम यात्रा में अपने साथ लाल झंडा और लेनिन की किताबें चाहते थे

बलराज साहनी ने पंजाबी के अलावा हिंदी और अंग्रेजी में भी अनेक कहानियां और लेख लिखे। यह कम ही लोग जानते हैं कि सन 1937 से सन 1939 तक बलराज साहनी शांति निकेतन में प्राध्यापक भी थे

Surendra Kishoreअपडेटेड Oct 26, 2022 पर 7:38 AM
बलराज साहनी क्यों अंतिम यात्रा में अपने साथ लाल झंडा और लेनिन की किताबें चाहते थे

फिल्म अभिनेता बलराज साहनी ने मुंबई के नानावती अस्पताल में आखिरी सांसें ले रहे थे। उन्होंने अपने बेटे अजय साहनी को बुलाकर कहा कि मेरी मौत के बाद मेरी शय्या पर लाल पताका और लेनिन की किताबें रख देना। अंतिम घड़ी में उनसे मिलने आए लोगों से उन्होंने कहा था कि मेरे देशवासियों से मेरा स्नेह संदेश कह देना। मैंने एक सुखी जीवन जिया है। मुझे कोई पाश्चाताप नहीं है। मेरी मौत के बाद धार्मिक अनुष्ठानों का निर्वाह नहीं किया जाए। उनकी आखिरी इच्छा पूरी की गई थी।

इस देश के सुशिक्षित फिल्म अभिनेता बलराज साहनी का करीब सिर्फ 60 साल की उम्र में ही 1973 में निधन हो गया था। उन्हें 13 अप्रैल को उस समय दिल का दौरा पड़ा जब वे शूटिंग में जाने की तैयारी कर रहे थे। उन्हें मुंबई के नानावती अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां उन्हें दुबारा दौरा पड़ा और उनका इंतकाल हो गया। शांति निकेतन में प्रोफेसर रहे बलराज साहनी का एक मई, 1913 को रावलपिंडी में जन्म हुआ था।

बलराज साहनी के बारे में किसी ने सोचा भी नहीं था कि उनकी ऐसी असामयिक मौत होगी। दिवंगत साहनी ने अभिनय के क्षेत्र में अपनी अमिट छाप छोड़ी थी। रात में उनका पार्थिव शरीर जुहू स्थित उनके निवास स्थान पर ले जाया गया। अंतिम दर्शन के लिए बड़ी संख्या में लोग एकत्र हुए। सबसे पहले आने वालों में ख्वाजा अहमद अब्बास, राज कपूर, नर्गिस, वहीदा रहमान, नंदा और राहुल देव बर्मन थे।

दूसरे दिन उनकी शव यात्रा प्रारंभ हुई। विले पार्ले की श्मशान भूमि में दिवंगत अभिनेता का दाह संस्कार किया गया। शव यात्रा में विभिन्न क्षेत्रों की अनेक बड़ी हस्तियों ने भाग लिया। तब यह कहा गया कि मोती लाल के बाद उनकी मृत्यु भारतीय फिल्म इंडस्ट्री की दूसरी बड़ी क्षति थी। बलराज साहनी ने अनेक फिल्मों में पहले मुख्य भूमिकाएं निभाई।उसके बाद उन्होंने चरित्र अभिनेता की भूमिकाएं स्वीकार कीं। उनका आकर्षण अंत तक बरकरार रहा।

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