Get App

हार के रिकॉर्ड बना रही कांग्रेस को चाहिए एक ‘आडवाणी’ जो बदल दे पार्टी की किस्मत

दस सालों में बड़ी संख्या में दिग्गज नेताओं ने कांग्रेस को छोड़ा और हर बार लीडरशिप के विजन पर सवाल उठाए गए। तो आखिर कांग्रेस ऐसा क्या करे कि वह अपना पुराना गौरव वापस ला सके? शायद इसका जवाब भी किसी दिग्गज बीजेपी नेता की रणनीति और वर्किंग स्टाइल में छुपा हुआ है

Arun Tiwariअपडेटेड Dec 11, 2024 पर 1:51 PM
हार के रिकॉर्ड बना रही कांग्रेस को चाहिए एक ‘आडवाणी’ जो बदल दे पार्टी की किस्मत
हार के रिकॉर्ड बना रही कांग्रेस को चाहिए एक ‘आडवाणी’ जो बदल दे पार्टी की किस्मत

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हुई दुर्गति के बाद फिर पार्टी की रणनीति में खामियों पर चर्चा होने लगी है। राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी की हारों की संख्या 89 तक पहुंच गई है। 10 सालों में हुए 62 चुनावों में कांग्रेस को अब तक 47 में हार मिली है। इन चुनावों में बीते तीनों लोकसभा चुनाव भी शामिल हैं। राहुल गांधी समेत कांग्रेस की टॉप लीडरशिप पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। दस सालों में बड़ी संख्या में दिग्गज नेताओं ने कांग्रेस को छोड़ा और हर बार लीडरशिप के विजन पर सवाल उठाए गए। तो आखिर कांग्रेस ऐसा क्या करे कि वह अपना पुराना गौरव वापस ला सके? शायद इसका जवाब भी किसी दिग्गज बीजेपी नेता की रणनीति और वर्किंग स्टाइल में छुपा हुआ है।

केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को विपक्षी नेता कई बार 1984 के लोकसभा चुनाव की याद दिलाते हैं। उस चुनाव में बीजेपी को केवल 2 सीटें मिली थीं। 1980 में बनी बीजेपी उस लोकसभा चुनाव में औंधे मुंह गिर गई थी और लगभग सभी बड़े नेता अपना चुनाव हार गए थे। यह पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनाव की स्थिति थी। तब कांग्रेस की तरफ से बीजेपी का ‘हम दो हमारे दो’ कहकर मजाक भी उड़ाया करते थे। आज की कांग्रेस की स्थिति उस वक्त की बीजेपी से कई गुना बेहतर है। उस वक्त बीजेपी की कमान एक ऐसे नेता ने संभाली जिसकी वजह से पार्टी आज जैसी दिखती है, वैसी बन पाई। नाम बताने की जरूरत नहीं है कि वह नेता लालकृष्ण आडवाणी थे।

'हम दो, हमारे दो' से आगे बीजेपी

दरअसल यह चर्चा तो अक्सर होती है कि बीजेपी की हालत 1984 में बहुत खराब हो गई थी, लेकिन उस स्थिति से उबरने के लिए पार्टी ने क्या-क्या किया, इसकी चर्चा कम होती है। दरअसल यहीं से बीजेपी ने अपनी विचारधारा में पूरी तरह परिवर्तन कर दिया था। जिस गांधीवादी समाजवाद के साथ 1980 में बीजेपी की स्थापना हुई थी, उसे 1984 के बाद बदला गया। बीजेपी के टॉप लीडर अटल बिहारी वाजपेयी अगले करीब एक दशक नेपथ्य में चले गए थे।

सब समाचार

+ और भी पढ़ें