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चुनाव हारने पर भी बौखलाते नहीं थे पहले के बड़े नेता लेकिन अब बदल गई राजनीति

लोहिया फुलपुर में चुनाव हार गए लेकिन अपनी हार को कोई अनाप -शनाप बात नहीं कही थी

MoneyControl Newsअपडेटेड Nov 15, 2021 पर 7:10 AM
चुनाव हारने पर भी बौखलाते नहीं थे पहले के बड़े नेता लेकिन अब बदल गई राजनीति
Dr Ram Manohar Lohia

सुरेंद्र किशोर

पहले के बड़े-बड़े नेता चुनाव हार जाने के बावजूद आम तौर पर बौखलाते नहीं थे। उनमें से अधिकतर नेता उसे जनादेश मानकर स्वीकार कर लेते थे। किंतु आज शायद ही कोई नेता अपनी पराजय दिल से स्वीकार करता है। जनादेश स्वीकारने की जगह आज अधिकतर नेता अपनी हार पर तरह -तरह के आरोप लगाने लगते हैं। कोई कहता है कि प्रचार माध्यमों ने मतदाताओं को गुमराह कर दिया।

कोई अन्य आरोप लगाता है कि मेरे विरोधियों ने मुझे हराने के लिए अपार धन खर्च किया। मतदान कर्मचारियों को खरीद लिया गया। मतगणना गलत की गई। किसी नेता का आरोप होता है कि धार्मिक और जातीय भावनाएं भड़काकर मुझे हराया गया। यानी, पराजित नेता यह दिखाना चाहता है कि उसकी हार में उसकी अपनी कोई गलती या कमजोरी नहीं थी। या तो वोटिंग मशीन को जिम्मेदार ठहराया जाता है या प्रतिद्वंद्वी दल की धांधली को। या, कुछ और कह कर अपनी कमी छिपाने की कोशिश की जाती है।

आजादी के बाद के विभिन्न चुनावों में जो प्रमुख नेता समय -समय पर हारे ,उनमें मोरारजी देसाई,डा.राम मनोहर लोहिया,इंदिरा गांधी ,जार्ज फर्नांडिस,दीनदयाल उपाध्याय,अटल बिहारी वाजपेयी,डा.भीम राव आम्बेडकर और वी.के.कृष्ण मेनन प्रमुख थे। हारने वालों में आचार्य नरेंद्र देव,वी.पी.सिंह और कांसी राम भी शामिल थे। मुख्यमंत्री रहते हुए तो अनेक नेता चुनाव हारे।

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