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टाटा परिवार का क्या है कुदरती कनेक्शन! पढ़िए कुछ ऐसे दिलचस्प किस्से जो आप नहीं जानते होंगे

ईरान से भारत आए पारसियों को आश्रय की जरूरत थी, और इसके लिए वे जगह-जगह घूमते थे। वे संजान पर आ गए, जहां का हिंदू राजा जयदेव था। जिसका नाम अपभ्रंश होकर जदी राणा हो गया। राजा ने देखा कि पारसी का कद 6 फीट ऊंचा होता है। जब वे राजा के पास गए और आश्रय की मांग की, तो राजा ने कहा कि वह सोचकर बताएंगे। उन्होंने एक प्याला पूरा दूध से भरा हाई प्रीस्ट (बड़ा पुजारी) के पास भेजा। प्रीस्ट ने समझ लिया कि राजा क्या कहना चाहते हैं। फिर पुजारी ने उसमें चीनी डाल दी। अगर दूध से भरे प्याले में आप कुछ भी डालेंगे तो वह छलक जाएगा, लेकिन चीनी डालेंगे, तो वह अदंर चला जाएगा। इससे राजा को यह समझ में आया कि जैसे चीनी दूध में घुल गई, वैसे ही वे भी यहां मिल जाएंगे

MoneyControl Newsअपडेटेड Oct 13, 2024 पर 2:56 PM
टाटा परिवार का क्या है कुदरती कनेक्शन! पढ़िए कुछ ऐसे दिलचस्प किस्से जो आप नहीं जानते होंगे

रतन टाटा अब इस दुनिया में नहीं रहें। 9 अक्टूबर को उनका निधन हो गया। इस मौके पर पारसी समुदाय और उनकी लगातार घटती आबादी, उनके धर्म, उनके समाज को समझने की कोशिश की गई। इस कोशिश के तहत मनीकंट्रोल के पॉडकास्ट 'संवाद' में इस बार अल्पसंख्यक आयोग के वाइस चेयरमैन केरसी कैखुशरू देबू आए। जिन्होंने खुलकर नेटवर्क 18 ग्रुप के एडिटर (कंवर्जेंस) ब्रजेश कुमार सिंह के साथ बातचीत की। यहां हम आपको वीडियो का पूरा टेक्सट दे रहे हैं, ताकि आप आसानी से पढ़ सकें। आप वीडियो भी देखें जिसका लिंक इस खबर के अंत में दिया गया है। इसे पढ़कर और देखकर आपको पता चलेगा कि कहां से टाटा नाम आया? क्यों लगातार पारसी समुदाय की आबादी घट रही है? क्यों रतन टाटा का अंतिम संस्कार हिंदू रीति रिवाजों से हुआ? और क्यों आबादी बढ़ाने के लिए कुदरत के करिश्में का इंतजार है। पढ़िए और सुनिए यह दिल छू लेने वाला पॉडकास्ट।

ब्रजेश कुमार सिंह:  देश के सबसे बड़े औद्योगिक समूह टाटा ग्रुप की लंबे समय तक अगुवाई करने वाले रतन टाटा नहीं रहे। 9 अक्टूबर की देर शाम उनका निधन हो गया। रतन टाटा उस समुदाय से आते थे जो इस देश की सबसे छोटी माइनॉरिटी है यानि पारसी समुदाय। पारसी समुदाय के लोगों की तादाद इस देश में 50,000 से भी कम है। लेकिन अगर उनके कंट्रीब्यूशन की बात करें तो इस देश में आबादी के हिसाब से देखा जाए तो सबसे बड़ा कंट्रीब्यूशन है। पिछले 150 वर्षों में समाज के अलग-अलग हिस्सों में चाहे एजुकेशन हो, हेल्थ हो, टेक्नोलॉजी हो, साइंस हो, पारसी समुदाय ने बड़ी भूमिका अदा की है। और पारसी समुदाय के इस सबसे बड़े औद्योगिक समूह टाटा समूह की भूमिका तो बहुत बड़ी रही। रतन टाटा के निधन के बाद अब टाटा ट्रस्ट की चेयरमैनशिप उनके सौतेले भाई नोयल टाटा के पास आ गई। टाटा ट्रस्ट इसलिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि टाटा संस जो कि टाटा ग्रुप की होल्डिंग कंपनी है उसमें 66% स्टेक टाटा ट्रस्ट की है। यानी कि एक तरह से टाटा ग्रुप की मेजोरिटी शेयर होल्डर टाटा ट्रस्ट है। रतन टाटा अपने पीछे कोई संपत्ति किसी अपने नाते रिश्तेदार के लिए नहीं छोड़ गए। उनके पास टाटा संस का एक भी शेयर नहीं था। यह कैरेक्टर रहा है टाटा ग्रुप का और यही कैरेक्टर है पारसी समुदाय का, जिसमें दान करना, समाज के लिए काम करना DNA में शामिल है।

हमारे साथ है राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के उपाध्यक्ष केरसी कैखुशरू देबू। ये खुद उस नवसारी से आते हैं जिस नवसारी में टाटा ग्रुप के संस्थापक फाउंडर जमशेदजी नसरवानजी टाटा का जन्म हुआ था। केरसी देबू खुद पारसी समुदाय से आते हैं। मनीकंट्रोल संवाद की इस कड़ी में केरसी देबू से बातचीत करेंगे और इस देश में पारसी समुदाय के योगदान और खास तौर पर उद्योगपतियों की भूमिका उनके विशिष्ट रीति रिवाजों की चर्चा और इतिहास की दृष्टि से अभी तक का विकास क्रम और क्या है भविष्य की तस्वीर यह सब जानने की कोशिश करेंगे।

अभी रतन टाटा का देहांत हुआ उसके बाद से सबकी निगाहें एक बार फिर पारसी समुदाय पर आ गई हैं। केरसी भाई आपसे मैं ये जानना चाहता हूं भारत के विकास में इस समुदाय का योगदान कितना बड़ा रहा है? इंडिया की एकमात्र एक तरह सकते हैं कि रियल माइनॉरिटी, जिसकी तादाद 1 लाख भी नहीं है। 1 लाख कौन कहे, आज की तारीख में शायद 50,000 भी ना हो। यह समुदाय लंबे समय तक समाज में अपना कंट्रीब्यूशन देता रहे इसके लिए जरूरी है कि इसकी आबादी भी बची रहे। क्या कर रहे हैं आप लोग कम्युनिटी की तरफ से या राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की तरफ से इसके लिए? क्या पारसी समुदाय में इसको लेकर कोई चिंता नहीं है?

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