Amethi Loksabha Election: अमेठी से पर्दा नहीं उठा रही कांग्रेस, स्मृति ईरानी के सामने राहुल गांधी नहीं तो कौन?
Amethi Loksabha Election: ये इलाका गांधी परिवार के कारण बहुत चर्चित है और आज भी इसे खास नजरिए से देखा जाता है। कभी गांधी परिवार को इस क्षेत्र में बहुत नाज था और अमेठी वालों को भी इस बात का फक्र था कि वे गांधी परिवार के सदस्य को चुनकर लोकसभा भेजते हैं। वास्तव में राहुल गांधी अमेठी से चुनाव लड़ेंगे इसका जवाब अभी तक नहीं मिल रहा है।
Amethi Loksabha Election: अमेठी में स्मृति ईरानी के सामने राहुल गांधी ने तो कौन?
Amethi Loksabha Election: गांधी परिवार का सबसे मजबूत क्षेत्र माना जाने वाला अमेठी (Amethi)। कांग्रेस कार्यकर्ता परेशान हैं कि इस सीट से कौन लड़ेगा। राहुल गांधी (Rahul Gandhi) मैदान में उतरेंगे या नहीं। इस सवाल का कोई जवाब भी नहीं मिल रहा है। पिछले चुनाव में कांग्रेस का यह किला छिन चुका है। सवाल बड़ा है कि क्या गांधी परिवार इस गढ़ को वापस पा सकेगा? राजनीति की चर्चाएं यहां पर गली नुक्कड़ में चलती हैं। गांधी परिवार से यहां के लोगों को काफी लगाव रहा है।
सूफी मलिक मोहम्मद जायसी की यह धरती है। जायसी ने राजा रत्नसेन और रानी पद्मावती की प्रेम कथा का वर्णन किया है। इस महाकाव्य को जायसी ने ऐतिहासिक और काल्पनिक दो पक्षों को दर्शाया है, जिसमें प्रेम ही शिखर पर हैं। कहते हैं कि नंद महार धाम में श्री कृष्ण, बलराम और नंद बाबा ने विश्राम किया था, इसलिए इस धाम का बहुत महत्व है। पास ही गढ़ी माफी में शिव परिवार और हनुमान जी की मूर्तियां हैं और बड़ी संख्या में लोग यहां दर्शन करने आते हैं।
यहीं पर 1842 में जब अमेठी राज्य को अंग्रेजों ने विलय करने का प्रयास किया, तो यहां के राजा विशेश्वर बख्श सिंह ने इसका विरोध किया था, जिसमें वह मारे गए। बाद में रानी भी उन्हीं के साथ चिता पर बैठ गई थीं। महिलाएं यहां पर अपनी कामना पूरी करने के लिए दुरदूरियां खाती हैं।
वक्त ने खाया ऐसा पलटा
वास्तव में ये इलाका गांधी परिवार के कारण बहुत चर्चित है और आज भी इसे खास नजरिए से देखा जाता है। कभी गांधी परिवार को इस क्षेत्र में बहुत नाज था और अमेठी वालों को भी इस बात का फक्र था कि वे गांधी परिवार के सदस्य को चुनकर लोकसभा भेजते हैं। लेकिन वक्त ने ऐसा पलटा खाया कि 2019 के लोकसभा चुनाव (Loksabha Elections 2024) में राहुल गांधी चुनाव हार गए।
बीजेपी की स्मृति ईरानी ने उन्हें हराकर सनसनी फैला दी। यह विश्वास करना मुश्किल था कि राहुल गांधी अमेठी से हार भी सकते हैं और इसके बाद राहुल गांधी की अमेठी से ऐसी दूरी बनीं कि अब यह सवाल उठते हैं कि क्या वो अमेठी से चुनाव लड़ेंगे भी या नहीं। वह यहां पर बहुत कम आते हैं और केरल की वायनाड सीट के ही होकर रह गए।
अब एक बार फिर स्मृति ईरानी को BJP ने अपना प्रत्याशी बना दिया है कांग्रेसी लगातार यह मांग कर रहे हैं कि राहुल गांधी को एक बार फिर इसी क्षेत्र से प्रत्याशी बनाया जाए। वह उन्हें चुनाव जिता कर भेजेंगे, लेकिन यहां से कौन चुनाव लड़ेगा इसका जवाब कोई नहीं दे रहा है। कांग्रेस के स्थानीय नेता भी यह दावा करते रहते हैं कि राहुल गांधी अमेठी से ही लोकसभा चुनाव लड़ेंगे।
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय भी यह कहते रहते हैं कि चुनावी तैयारी हो रही है और अमेठी से राहुल जी ही आ रहे हैं। वास्तव में राहुल गांधी अमेठी से चुनाव लड़ेंगे इसका जवाब अभी तक नहीं मिल रहा है।
अमेठी में कौन लड़ेगा चुनाव?
बीजेपी ने पत्ते खोल दिए, तो कांग्रेस अपना पत्ता क्यों नहीं खोल रही है। अमेठी के लोग भी यह जानने को बेताब हैं कि आखिर इस बार अमेठी में रोचक लड़ाई देखने को मिलेगी या नहीं। क्या राहुल 2019 का हार का बदला चुकाने के लिए अमेठी आएंगे या नहीं। अमेठी के ही कांग्रेस के नेता सुरेश त्रिवेदी कहते हैं कि राहुल गांधी चुनाव लड़ने के लिए आ रहे हैं, इसमें कोई दो राय नहीं है।
हालांकि, तैयारी कितनी है? इस सवाल पर त्रिवेदी कहते हैं कि अमेठी में कांग्रेस हमेशा तैयार रहती है। सवाल यह भी है कि इस चुनाव में वह सफल होंगे या नहीं। वास्तव में अमेठी की लड़ाई इतनी आसान नहीं है। इसमें कोई दो राय नहीं कि अमेठी के लोगों को गांधी परिवार से बहुत ही प्यार रहा है और उनके प्रति समर्पित भी रहे हैं, लेकिन अब स्थितियों में काफी बदलाव है। स्मृति ईरानी ने पांच साल काफी प्रयास किए हैं और इसका क्या असर होगा इसका आकलन भी जरूरी है।
कांग्रेस नेता भी मान रहे आसान नहीं अमेठी की लड़ाई
स्मृति ईरानी लगातार अमेठी के दौरे करती रही हैं। वहां के लोगों से जुड़ी रही हैं। उनके सुख-दुख में शामिल भी रही हैं। एक महिला होने के नाते, उनकी महिलाओं के बीच भी पैठ काफी है। वे इलाके की नई बहू को मुंह दिखाई का शगुन तक देती नजर आती हैं। महिलाओं से गले मिलती हैं। कई विकास योजनाएं भी शुरू की गई है। इसी लिए अनौपचारिक बातचीत में कांग्रेस नेता यह मान कर चल रहे हैं कि लड़ाई इतनी आसान नहीं है।
असल में यही कारण है कि गांधी परिवार यह निर्णय नहीं कर पा रहा है कि राहुल को अमेठी से लड़ाया जाए या नहीं। जमीनी स्थिति क्या है, इसका आकलन हो रहा है। गौरी गंज के राम सुमेर कहते है की कांग्रेसियों के दावे पर विश्वास कर गांधी परिवार एक बार फिर अपनी प्रतिष्ठा दांव पर नहीं लगाना चाहता। इसीलिए बहुत सोच समझकर रणनीति बनाई जा रही है।
कांग्रेस के एक नेता कहते हैं कि देखिए हम लोग मांग कर रहे हैं कि राहुल गांधी अमेठी से ही चुनाव लड़ें और अगर राहुल जी चुनाव लड़ने आते हैं, तो हम सभी जी जान लगाएंगे। लेकिन मुझे नहीं लगता कि राहुल गांधी चुनाव लड़ने आएंगे। अगर आना होता, तो इसकी तैयारी शुरू कर दी गई होती। अमेठी के कांग्रेस खेमे में कोई खास सक्रियता नहीं दिख रही है। इसलिए लोग संदेह कर रहे हैं कि शायद राहुल चुनाव यहां से न लड़ें।
अगर राहुल गांधी चुनाव लड़ना होता, तो पहले से ही इसकी तैयारी शुरू हो जाती और राहुल के कई दौरे हो जाते। राहुल न्याय यात्रा के दौरान अमेठी जरूर आए थे, लेकिन उन्होंने ऐसा कोई संकेत भी नहीं दिया कि वह अमेठी से चुनाव लड़ेंगे।
अमेठी लोकसभा चुनाव का इतिहास
अमेठी लोकसभा सीट के गठन के बाद से ही यहां कांग्रेस का दबदबा रहा है, लेकिन 1977 में जनता पार्टी की लहर में इस सीट पर रविंद्र प्रताप सिंह ने संजय गांधी को हरा दिया था। 1980 में संजय गांधी ने यह सीट विपक्षियों से छीन ली, लेकिन चुनाव के कुछ महीने बाद ही संजय गांधी का विमान दुर्घटनाग्रस्त होने के कारण उनकी मृत्यु हो गई।
संजय गांधी के निधन के बाद राजीव गांधी राजनीति में आ गए और 1981 में हुए उपचुनाव में राजीव गांधी ने यह सीट जीत ली। राजीव गांधी 1984, 1989 और 1991 का चुनाव जीते, लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण और दुखद था कि जिस समय 1991 में अमेठी लोकसभा सीट की मतगणना चल रही थी, उस समय राजीव गांधी इस दुनिया में नहीं थे।
क्योंकि अमेठी के मतदान के कुछ दिन बाद ही 21 मई 1991 को तमिलनाडु के पेरंबदूर में आत्मघाती हमले में राजीव गांधी का निधन हो गया। 1991 और 1996 के लोकसभा चुनाव में गांधी परिवार के काफी नजदीकी सतीश शर्मा चुनाव जीत गए। लेकिन 1998 के चुनाव में अमेठी के राजा डॉक्टर संजय सिंह, जो कभी संजय और फिर राजीव गांधी के बहुत नजदीक हुआ करते थे, वह भाजपा में शामिल हुए और उन्होंने चुनाव जीत लिया।
सोनिया गांधी ने राहुल गांधी के लिए छोड़ी सीट
इसके बाद 1999 में सोनिया गांधी राजनीति में आ गईं और वह अमेठी से ही चुनाव मैदान मे उतरीं और लोकसभा चुनाव भारी मतों से जीतीं। 2004 के लोकसभा चुनाव में सोनिया गांधी ने चुनाव क्षेत्र बदला और गांधी परिवार के सबसे मजबूत गढ़ रायबरेली से चुनाव लड़ा।
उन्होंने अपने बेटे राहुल गांधी के लिए अमेठी सीट छोड़ दी थी। 2004 ,2009 और 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी अमेठी से चुनाव जीते, लेकिन 2019 में BJP के टिकट पर स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को हरा दिया। इसके बाद से राहुल गांधी ने इस सीट से दूरी बना ली और अमेठी की यात्राएं उनकी लगभग न के बराबर हो गई।
अब एक बार फिर मैदान सज चुका है। इंतजार हो रहा है कि कांग्रेस से मैदान में कौन आएगा। जो भी आए यहां मुकाबला बहुत ही रोचक होगा । अमेठी कांग्रेस का मजबूत क्षेत्र रहा है लेकिन स्मृति ईरानी भी कमजोर नहीं है और उनको हरा पाना भी बहुत आसान नहीं है।