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Loksabha Election: हर बूथ का वोटिंग डेटा जारी करने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का फिलहाल आदेश देने से इनकार

सुप्रीम कोर्ट ने बूथ के हिसाब से वोटिंग डेटा की मांग करने वाली याचिका पर तत्काल आदेश जारी करने से मना कर दिया है। यह याचिका एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने जारी की है। इस एनजीओ ने मांग की थी कि चुनाव आयोग को लोकसभा चुनाव के हर चरण में मतदान खत्म होने के 48 घंटे के भीतर हर बूथ पर मतदान प्रतिशत के बारे में जानकारी वेबसाइट पर डालने का निर्देश दिया जाए

MoneyControl Newsअपडेटेड May 24, 2024 पर 3:33 PM
Loksabha Election: हर बूथ का वोटिंग डेटा जारी करने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का फिलहाल आदेश देने से इनकार
चुनाव आयोग ने सर्वोच्च अदालत को बताया कि सभी मतदान केंद्रों पर दर्ज वोटों की जानकारी वेबसाइट पर अपलोड करने से चुनावी प्रक्रिया में अराजकता की स्थिति पैदा हो जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट ने बूथ के हिसाब से वोटिंग डेटा की मांग करने वाली याचिका पर तत्काल आदेश जारी करने से मना कर दिया है। यह याचिका एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने जारी की है। इस एनजीओ ने मांग की थी कि चुनाव आयोग को लोकसभा चुनाव के हर चरण में मतदान खत्म होने के 48 घंटे के भीतर हर बूथ पर मतदान प्रतिशत के बारे में जानकारी वेबसाइट पर डालने का निर्देश दिया जाए।

अदालत ने 2019 की याचिका पर सुनवाई टाल दी। उसका कहना था कि अंतरिम याचिका में मुख्य याचिका जैसी ही मांग की गई थी, लिराजा इसे किसी और तारीख तक के लिए स्थगित कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि इस याचिका में आदेश का मतलब मुख्य याचिका के लिए आदेश जारी करने जैसी होगा। कोर्ट का कहना था कि चुनाव अब आखिरी चरण में है और ऐसे में इसको लेकर तत्काल इस तरह का निर्देश जारी करना उचित नहीं होगा।

जस्टिस दीपांकर दत्ता और एस.सी. शर्मा की बेंच ने इस याचिका पर सुनवाई की। चुनाव आयोग ने सर्वोच्च अदालत को बताया कि सभी मतदान केंद्रों पर दर्ज वोटों की जानकारी वेबसाइट पर अपलोड करने से चुनावी प्रक्रिया में अराजकता की स्थिति पैदा हो जाएगी। चुनाव आयोग के वकील मनिंदर सिंह ने कहा था कि याचिकाकर्ता ADR का मकसद वोटर को भ्रमित करना है। ADR की मंशा पर सवाल उठाते हुए SC ने एक याचिका 26 अप्रैल को ही खारिज की थी।

सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग के वकील ने कहा कि फॉर्म 17C को स्ट्रॉन्ग रूम में रखा जाता है। आरोप लगाया गया है कि फाइनल डेटा में 5 से 6 प्रतिशत का फर्क है। यह आरोप पूरी तरह से गलत है। चुनाव को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है।

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