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Modi 3.0: कौन होगा लोकसभा स्पीकर? मंत्री से ज्यादा इस पद के लिए क्यों है खींचतान

Modi 3.0: आंध्र प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष और राजमुंदरी से सांसद दग्गुबाती पुरंदेश्वरी 18वीं लोकसभा में अध्यक्ष पद की दौड़ में सबसे आगे हैं। प्रमुख सहयोगी टीडीपी और जेडीयू को दो-दो मंत्री पद मिले हैं। इनमें एक कैबिनेट रैंक और एक राज्य मंत्री का पद शामिल है

MoneyControl Newsअपडेटेड Jun 10, 2024 पर 7:52 PM
Modi 3.0: कौन होगा लोकसभा स्पीकर? मंत्री से ज्यादा इस पद के लिए क्यों है खींचतान
टीडीपी और जेडीयू दोनों की नजर लोकसभा स्पीकर के पद पर है

लगातार तीसरी बार भारत के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद पीएम नरेंद्र मोदी एक्शन मूड में आ गए हैं। उन्होंने सोमवार (10 जून) को सबसे पहले जिस फाइल पर हस्ताक्षर किया, वह 'पीएम किसान निधि' की 17वीं किस्त जारी करने से संबंधित है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) सरकार बनाने के लिए आवश्यक बहुमत से पीछे रह गई है, इसलिए प्रधानमंत्री के रूप में मोदी के तीसरे कार्यकाल के लिए TDP और JDU का समर्थन महत्वपूर्ण हो गया है। NDA को कुल 293 सीटें मिली हैं, जिनमें से बीजेपी के पास 240 सीटें हैं। 16 सांसदों के साथ TDP एनडीए में दूसरी और 12 सांसदों के साथ जेडीयू तीसरी बड़ी पार्टी है। इस बीच, टीडीपी और जेडीयू दोनों की नजर लोकसभा स्पीकर के पद पर है। वहीं, सूत्रों के हवाले से खबर है कि बीजेपी सहयोगी दलों को स्पीकर पद देने को तैयार नहीं है।

आंध्र प्रदेश बीजेपी प्रमुख दग्गुबाती पुरंदेश्वरी का नाम 18वीं लोकसभा में अध्यक्ष पद के लिए चर्चा में है। पिछली दो लोकसभाओं में सुमित्रा महाजन और ओम बिरला अध्यक्ष रहे थे। कम संख्या होने की वजह से भारतीय जनता पार्टी को समझ में आ गया है कि सरकार बनाने के लिए उन्हें दो करीबी सहयोगियों TDP-JDU पर निर्भर रहना होगा।

आंध्र प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष और राजमुंदरी से सांसद दग्गुबाती पुरंदेश्वरी 18वीं लोकसभा में अध्यक्ष पद की दौड़ में सबसे आगे हैं। प्रमुख सहयोगी टीडीपी और जेडीयू को दो-दो मंत्री पद मिले हैं। इनमें एक कैबिनेट रैंक और एक राज्य मंत्री का पद शामिल है। हालांकि, एक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि लोकसभा स्पीकर का पद किसे मिलेगा? सदन के वरिष्ठ सदस्यों में से राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त एक प्रोटेम स्पीकर नए सांसदों को पद की शपथ दिलाता है।

इतनी सौदेबाजी की शक्ति वाला NDA सहयोगी अध्यक्ष पद पर क्यों जोर देगा? इसका जवाब संविधान की 10वीं अनुसूची में निर्धारित दलबदल विरोधी कानून में जुड़ा है, जिसे 1985 में 52वें संशोधन के माध्यम से पेश किया गया था। इसके तहत कोई सांसद या विधायक जो स्वेच्छा से अपनी राजनीतिक पार्टी की सदस्यता छोड़ देता है या अपनी पार्टी के निर्देशों के खिलाफ वोट देता है, उसे अयोग्य ठहराया जा सकता है।

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