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मंदी की आशंका से गिरे शेयर बाजार में क्या आपको लगाना चाहिए पैसा? जानिए क्या हो इस समय निवेश की रणनीति

लॉन्ग-टर्म निवेशकों के लिए, मंदी शेयर बाजार में डिस्काउंट पर शेयर खरीदने का मौका होता है, लेकिन यह निवेश लंबी अवधि के लिए किया जाना चाहिए और अच्छी रणनीति के साथ किया जाना चाहिए

MoneyControl Newsअपडेटेड Jul 28, 2022 पर 9:28 PM
मंदी की आशंका से गिरे शेयर बाजार में क्या आपको लगाना चाहिए पैसा? जानिए क्या हो इस समय निवेश की रणनीति
मंदी खत्म होने की कोई तारीख नहीं होती है, यह महीनों या सालों तक चल सकता है

शेयर बाजार आमतौर पर मंदी के दौरान एक बीयर फेज में चला जाता है, जहां स्टॉक लगातार गिर रहे होते हैं या पहले से ही अपने निचले स्तर पर होते हैं। निवेशक आमतौर पर ऐसे बाजार में नया निवेश करने को लेकर सतर्क रहते हैं क्योंकि स्टॉक कीमतों में और गिरावट की संभावना बनी रहती है। ऐसे में कई निवेशक बाजार से दूरी भी बना लेते हैं। इससे भी निराशाजनक स्थिति को जो चीज जटिल बनाती है, वह यह है कि मंदी खत्म होने की कोई तारीख नहीं होती है। यह कुछ महीनों तक भी जारी रह सकती है या कई सालों तक भी खींच सकती है।

बीयर मार्केट को देखने का एक और नजरिया यह है कि इस समय ऐसे शेयरों की तरफ देखा जाए, जो अपनी वाजिब वैल्यूशएन से कम कीमत पर उपलब्ध है। हालांकि यहां ध्यान रखना चाहिए कि बाजार में डिस्काउंट पर मिल रही हर चीज अच्छी नहीं होती है। निवेशकों को सिर्फ इस वजह से शेयर खरीदने से बचना चाहिए कि वह सस्ता है। हालांकि अगर मंदी के दौर में निवेशक सही रणनीति बनाकर डिस्काउंट पर मिल रहे क्वालिटी शेयरों को खरीदते हैं, तो वह लंबी अवधि में उनके लिए एक शानदार मुनाफे का सौदा हो सकता है।

मंदी में शेयर क्यों गिरते हैं?

आमतौर पर, मंदी के दौरान आर्थिक गतिविधियां कम हो जाती है। आमदनी में सुस्ती के चलते कंपनियां अपना प्रॉफिट नहीं बढ़ा पाती हैं। साथ ही लोग इस समय खर्च की तुलना में बचत करना पसंद करते हैं, जिससे कंपनियों के उत्पादों की मांग कम हो जाती है। कंपनियां ऐसे समय में अपने उत्पादन क्षमता के विस्तार करने की योजनाएं रद्द कर देती हैं या फिर उनके पास अधिशेष बचना शुरू हो जाता है। इसके चलते इंडस्ट्री में नई नौकरियां निकलना बंद हो जाती है और यहां तक ​​​​कि छंटनी भी शुरू हो जाती है। लोगों के खर्च कम करने से सरकार को टैक्स के रूप में मिलने वाला रेवेन्यू भी कम हो जाता है, जिससे वह विभिन्न परियोजनाओं पर अपने खर्च को कम कर सकती हैं। कुल मिलाकर, अर्थव्यवस्था कम उत्पादन और कमजोर मांग के नकारात्मक जोन में चली जाती है।

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