Stock Market Tips: दिग्गज निवेशक अनिल कुमार गोएल (Anil Kumar Goel) ने अपनी कारोबारी जिंदगी स्टील ट्रेडर के रूप में शुरू किया था जिसके चलते कमोडिटी कंपनियों के शेयरों को लेकर वह हमेशा नरम रहे हैं। कमोडिटी कंपनियों के डिमांड-सप्लाई डायनेमिक्स और साइकिल्स को वे अच्छे से समझते हैं। मौजूदा परिस्थितियों में उनका भरोसा शुगर और टेक्सटाइल कंपनियों पर है जबकि स्टील कंपनियों को लेकर वह बियरिश हैं। मनीकंट्रोल से बातचीत में उन्होंने बताया कि शुगर और टेक्सटाइल शेयरों को लेकर वह बुलिश क्यों हैं और स्टील को लेकर बियरिश क्यों हैं?
Ethanol Policy के दम पर Sugar Stocks में आएगी तेजी
अनिल कुमार गोएल के पोर्टफोलियो में शुगर स्टॉक्स का वजन अच्छा-खासा है। इसे लेकर उनका कहना है कि एथेनॉल पॉलिसी के चलते शुगर इंडस्ट्री अब साइक्लिकल नहीं रह गई है। जल्द ही ऐसा समय आने वाला है जब शुगर कंपनियां जैसा भाव मिलेगा, उसके हिसाब से या तो चीनी बनाएंगी या एथेनॉल। अनिल के मुताबिक जब एथेनॉल बनना शुरू हुआ था तो उस समय सिर्फ 50 लाख टन चीनी से ही एथेनॉल बनाया जाता था। अब अनिल का मानना है कि 2025-26 तक 70 लाख टन चीनी एथेनॉल बनाने के लिए उपलब्ध हो जाएगी और तब चीनी और एथेनॉल के उत्पादन में संतुलन हो जाएगा।
अब अगर चीनी की कीमतें अधिक होती हैं, तो यह बनेगी और अगर एथेनॉल की कीमतें अधिक होंगी तो इसे बनाया जाएगा। अनिल के मुताबिक यह मॉडल ब्राजील में सफल हो चुका है और यहां कंपनियां 30 फीसदी चीनी और 70 फीसदी एथेनॉल बना सकती हैं। कीमत के मुताबिक कभी-कभी यह 50-50 हो जाता है। अनिल के मुताबिक राजनीतिक रूप से यह काफी संवेदनशील सेक्टर है और इसमें बार-बार नीतिगत बदलाव की संभावना रहती है।
पांच साल के लिए और कौन-सा सेक्टर है दमदार
शुगर के अलावा निवेश के लिए बाकी सेक्टर की बात करें तो अनिल लॉन्ग टर्म के लिए स्पिनिंग मिल्स यानी कताई मिल और टेक्सटाइल्स पर दांव लगा रहे हैं। इसकी वजह ये है कि भारत दुनिया के सबसे बड़े कॉटन उत्पादकों में शुमार है। इसके अलावा अब कई वजहों से चीन से लोग खरीदारी नहीं कर रहे हैं तो इसका फायदा भारत को मिलेगा। हालांकि टेक्सटाइल सेक्टर काफी बड़ा है लेकिन इसमें भी अनिल का भरोसा स्पिनिंग यानी कताई पर अधिक है क्योंकि यहां कमोडिटी बदली जाती है। यहां कपास से सूत बनता है तो यहां दुनिया में सबसे सस्ता कपास मिलता है। चीन में लेबर कॉस्ट अधिक हो रही है और कताई में श्रम अधिक लगता है। भारत में लेबर कॉस्ट चीन की तुलना में करीब एक-तिहाई है। इस प्रकार इस सेक्टर में यहां काफी संभावनाएं हैं।
Steel Sector को लेकर निगेटिव रुझान क्यों?
अनिल का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों से स्टील को लेकर वह गलत साबित हुए हैं। वैश्विक स्टील का करीब 55 फीसदी चीन से आता है और स्टील 540 डॉलर के भाव पर है। वहीं भारत में स्टील कंपनियां 630-640 डॉलर के भाव पर बेच रही हैं। चीन में स्टील कारोबार इतना तेज क्यों बढ़ा तो अनिल के मुताबित इसकी वजह वहां का ऑर्टिफिशियल रियल एस्टेट बबल है। 2008 की वैश्विक मंदी के बाद चीन ने रियल एस्टेट और इंफ्रास्ट्रक्चर में गैर-जरूरी एग्रेसिव ग्रोथ के रास्ते पर पैर रखा। यहां सीमेंट की भी बड़ी मात्रा में खपत होने लगी। हालांकि अब वे ऐसी स्थिति में आ गए हैं, जहां से इस ऑर्टिफिशियल ग्रोथ को जारी नहीं रखा जा सकता है। अधिकतर रियल एस्टेट दिग्गज या तो दिवालिया हो गए हैं या वित्तीय दिक्कतों से जूझ रहे हैं।
अब सवाल ये उठता है कि भारत में स्टील कंपनियां कह रही हैं कि यहां स्टील की मांग मजबूत है तो फिर स्टील स्टॉक्स में दम क्यों नहीं है? इस पर अनिल का कहना है कि चीन से स्टील मंगाने पर 8 फीसदी की ड्यूटी लगेगी लेकिन कुछ शर्तों के साथ बिना ड्यूटी के भी इंडोनेशिया, नेपाल और दक्षिण कोरिया से स्टील खरीद सकते हैं। ऐसे में अनिल को नहीं लग रहा है कि आने वाले समय में भारत में स्टील कंपनियों का कारोबार अच्छा रहेगा।
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