Gold vs Stock Market: पिछले कुछ साल में सोना चुपचाप एक ऐसी रैली दिखा चुका है, जिसकी उम्मीद काफी कम ही लोगों ने की थी। 2020 में भारत में सोने की कीमत करीब ₹39,000 प्रति 10 ग्राम थी। आज यह ₹1,15,000 प्रति 10 ग्राम से ऊपर पहुंच चुकी है। यानी सिर्फ पांच साल में सोना लगभग 200% बढ़कर तीन गुना हो गया। अगर इसे कंपाउंडेड तरीके से देखें तो इसका रिटर्न करीब 24% सालाना (CAGR) बैठता है।
अगर इसकी तुलना बेंचमार्क इक्विटी इंडेक्स निफ्टी 50 से करें, तो इसने इसी अवधि में करीब 17% सालाना रिटर्न दिया। यानी जिस सोने को लोग 'सुरक्षित तो है, लेकिन ग्रोथ नहीं देता' मानते थे, वो इक्विटीज से भी काफी बेहतर निकल गया।
Gold vs Stock Market: ₹1 लाख पर रिटर्न
अगर किसी ने साल 2020 में ₹1 लाख का सोना खरीदा होता, तो आज उसकी वैल्यू करीब तीन गुना हो चुकी होती। 2020 में सोने की कीमत ₹39,000 प्रति 10 ग्राम थी। उस समय ₹1 लाख में लगभग 25.6 ग्राम सोना खरीदा जा सकता था। अब 2025 में यही सोना ₹1,15,000 प्रति 10 ग्राम के भाव से करीब ₹2.95 लाख का हो गया है। यानी पांच साल में सोना चुपचाप निवेशकों को तीन गुना रिटर्न दे चुका है।
वहीं, 2020 से 2025 के बीच निफ्टी 50 ने औसतन करीब 17% का सालाना रिटर्न दिया है। इसका मतलब यह हुआ कि अगर किसी ने 2020 में निफ्टी में ₹1 लाख लगाए होते, तो यह रकम पांच साल में लगभग ₹2.2 लाख तक पहुंच जाती।
कई लोग गोल्ड रैली से क्यों चूक गए?
ज्यादातर निवेशक गोल्ड रैली के इस मौके को पकड़ नहीं पाए। कुछ निवेशक बार-बार कीमत गिरने का इंतजार करते रहे, लेकिन करेक्शन आया ही नहीं। कुछ ने सोने को पुरानी सोच वाली एसेट मानकर नजरअंदाज कर दिया, क्योंकि उनकी नजर स्टॉक्स, स्टार्टअप्स और क्रिप्टो पर थी। नतीजा यह हुआ कि सोने की रैली से फायदा वही उठा पाए, जिन्होंने इसे चुपचाप पकड़कर रखा था।
आज जब सोना रिकॉर्ड ऊंचाई पर है और परिवारों को अपने जेवर और सिक्कों की असली कीमत का एहसास हो रहा है, तभी जाकर लोग समझ रहे हैं कि उन्होंने कितना बड़ा मौका गंवा दिया।
आखिर सोना इतना क्यों बढ़ा?
अगर वजहों को ध्यान से देखें, तो साफ पता चलता है कि सोने की कीमत क्यों उड़ी। और इसके पीछे एक या दो नहीं, बल्कि कई कारण हैं।
महंगाई और रुपये की कमजोरी: महामारी और बाद के दौर में रोजमर्रा की चीजें महंगी हुईं और रुपया डॉलर के मुकाबले लगातार कमजोर हुआ। सोना दुनिया भर में डॉलर में तय होता है, तो जैसे-जैसे रुपया गिरा, वैसे-वैसे भारतीय खरीदारों को ज्यादा रुपये देने पड़े।
सुरक्षित निवेश की मांग: कोरोना महामारी, रूस-यूक्रेन युद्ध और सप्लाई चेन की समस्याओं ने निवेशकों को असुरक्षित महसूस कराया। हर संकट के समय सोना 'सेफ हेवन' की तरह काम करता है, और लोग दौड़कर इसमें निवेश करने लगे।
केंद्रीय बैंकों की खरीद: इस दौरान दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों ने बड़ी मात्रा में सोना खरीदा। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के मुताबिक, यह खरीद कई दशकों के उच्च स्तर पर रही। यह भरोसे का संकेत था कि सबसे बड़े फाइनेंशियल संस्थान भी सोने को सुरक्षित मानते हैं।
कम ब्याज दरों का दौर: महामारी में केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरें घटाईं। इससे बॉन्ड और फिक्स्ड डिपॉजिट जैसे विकल्प कमजोर हो गए। ऐसे में सोना तुलनात्मक रूप से ज्यादा आकर्षक हो गया, क्योंकि यह ब्याज के भरोसे नहीं रहता।
यानी सोने के लिए हर दिशा से हवा अनुकूल रही। नतीजा यह हुआ कि सोना सिर्फ सुरक्षा का साधन नहीं रहा, बल्कि वह दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली एसेट क्लास बन गया।
किसे सबसे ज्यादा फायदा हुआ?
इस रैली से तीन वर्गों को सबसे बड़ा फायदा मिला - ज्वेलर्स, भारतीय परिवार और निवेशक।
ज्वेलर्स: सोने की बढ़ती कीमत ने ज्वेलर्स की संपत्ति कई गुना कर दी। Hurun India Rich List 2025 के अनुसार, सिर्फ इसी साल ज्वेलरी सेक्टर में 25 नए अरबपति बने। जॉय अलुक्कास (Joy Alukkas) जैसे ज्वेलरी दिग्गजों की नेटवर्थ ₹88,430 करोड़ तक पहुंच गई। यानी सोने ने छोटे कारोबारियों की छवि बदलकर उन्हें बड़े बिजनेस टाइकून बना दिया।
भारतीय परिवार: भारत दुनिया का सबसे बड़ा निजी सोना रखने वाला देश है। अनुमान है कि भारतीय परिवारों के पास करीब 25,000 टन सोना है। घरों में रखा यह सोना चुपचाप दोगुना हो गया। कई परिवारों को तब इसका एहसास हुआ जब शादी या लोन के लिए जेवर का री-वैल्यूएशन किया गया। अचानक लोगों को समझ आया कि उनके गहने और सिक्के कितनी बड़ी संपत्ति बन चुके हैं।
निवेशक: पहले जो युवा निवेशक सोना खरीदने से कतराते थे, उन्होंने ETFs और Sovereign Gold Bonds के जरिए इसमें निवेश शुरू किया। डिजिटल गोल्ड और पेपर गोल्ड जैसे नए विकल्पों ने उन्हें सुविधा दी। गोल्ड लोन कंपनियों को भी फायदा हुआ क्योंकि अब लोग ज्यादा रकम के लिए अपने गहनों को गिरवी रख पा रहे थे।
गोल्ड रैली से चूके लोगों के लिए सबक
सोने की यह रैली उन लोगों को कई अहम सबक देती है, जो गोल्ड रैली का फायदा उठाने से चूक गए। इसने पोर्टफोलियो के डायवर्सिफिकेशन की अहमियत को फिर सामने ला दिया।
इन बातों का भी ध्यान रखें निवेशक
सोना हमारे लिए सिर्फ गहना या परंपरा नहीं है, बल्कि असली वित्तीय सुरक्षा भी है। पिछले चार सालों में सोने ने दिखा दिया कि यह सिर्फ सुरक्षित ही नहीं, बल्कि ताकतवर एसेट भी है।
अगर आपके पोर्टफोलियो में सोना 5% से कम है, तो धीरे-धीरे इसमें निवेश शुरू करें। लेकिन अगर 20% से ज्यादा हिस्सा सोने में है, तो सावधान हो जाइए क्योंकि इससे आप ग्रोथ वाली एसेट्स, जैसे इक्विटीज, से चूक सकते हैं।
गोल्ड रैली का सबक साफ है- सोने को नजरअंदाज न करें, लेकिन उस पर पूरी तरह निर्भर भी न हों। बैलेंस बनाकर चलें।
Disclaimer: यहां मुहैया जानकारी सिर्फ सूचना के लिए दी जा रही है। यहां बताना जरूरी है कि मार्केट में निवेश बाजार जोखिमों के अधीन है। निवेशक के तौर पर पैसा लगाने से पहले हमेशा एक्सपर्ट से सलाह लें। मनीकंट्रोल की तरफ से किसी को भी पैसा लगाने की यहां कभी भी सलाह नहीं दी जाती है।
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