इनकम टैक्स रिटर्न (आईटीआर) फाइल करने में कैपिटल गेंस के बारे में सही जानकारी देना जरूरी है। अगर आप शेयर, म्यूचुअल फंड्स या प्रॉपर्टी में निवेश करते हैं तो आईटीआर फाइल करने से पहले आपको कैपिटल गेंस का कैलकुलेशन सही तरीके से कर लेना चाहिए। गलत रिपोर्टिंग से इनकम टैक्स का नोटिस आ सकता है।
शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस
एक्सपर्ट्स का कहना है कि पिछले 4-5 सालों में निवेश खासकर शेयरों में निवेश में लोगों की दिलचस्पी बढ़ी है। लोग शेयरों में निवेश करते हैं और कीमतें चढ़ने पर उन्हें बेच देते हैं। इससे उन्हें कैपिटल गेंस होता है। कैपिटल गेंस को निवेश की अवधि के हिसाब से शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस और लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस में बांटा जाता है। दोनों तरह के गेंस पर टैक्स के रेट्स अलग-अलग हैं। पिछले साल के यूनियन बजट में सरकार के कैपिटल गेंस टैक्स के नियमों में बदलाव किया था।
कैपिटल गेंस के डेटा की मैचिंग
टैक्स एक्सपर्ट्स का कहना है कि Income Tax Department ने कैपिटल गेंस की रिपोर्टिंग की मॉनिटरिंग बढ़ा दी है। इक्विटी, म्यूचुअल फंड्स और यहां तक कि शेयरों के बायबैक से होने वाले गेंस के डेटा की मैचिंग की जा रही है। एनुअल इंफॉर्मेशन स्टेटमेंट में टैक्सपेयर्स के शेयर और म्यूचुअल फंड्स में ट्रांजेक्शन की जानकारी होती है। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट एआईएस के डेटा को आईटीआर के डेटा से मैच कराता है।
जानकारी नहीं देने पर आ सकता है नोटिस
पर्सनल टैक्स एट 1 फाइनेंस की वर्टिकल हेड नियति शाह ने कहा कि जिस तरह से इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की मॉनटरिंग बढ़ी है, उसे देखते हुए सही डॉक्युमेंटेशन और प्रोफेशनल गाइडेंस जरूरी हो गया है। इसकी वजह यह है कि गलत रिपोर्टिंग पर इनकम टैक्स डिपार्टमेंट का नोटिस आ सकता है। इससे टैक्सपेयर्स की मुश्किल बढ़ सकती है। टैक्सपेयर्स के जवाब से संतुष्ट नहीं होने पर डिपार्टमेंट पेनाल्टी भी लगा सकता है।
शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस के रेट अलग-अलग
टैक्सपेयर्स को पहले यह देखना जरूरी है कि उसे वित्त वर्ष के दौरान कितना शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस और कितना लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस हुआ है। अगर शेयर या इक्विटी म्यूचुअल फंड्स की यूनिट्स को खरीदने के 12 महीने से पहले बेच दिया जाता है तो उससे हुए गेंस को शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस कहा जाता है। इस पर 20 फीसदी के रेट से टैक्स लगता है। अगर शेयर या यूनिट्स को 12 महीने के बाद बेचा जाता है तो उससे हुए प्रॉफिट को लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस माना जाता है। उस पर 12.5 फीसदी रेट से टैक्स लगता है।
1.25 लाख रुपये तक के एलटीसीजी पर टैक्स नहीं
टैक्सपेयर्स को कैपिटल गेंस के डेटा के लिए पहले ब्रोकर्स से कैपिटल गेंस का स्टेटमेंट मांगना होगा। फिर, उसे फॉर्म 26एएस और एआईएस के डेटा से मैच कराना होगा। उसके बाद इक्विटी, म्यूचुअल फंड और बायबैक से गेंस की जानकारी शिड्यूल सीजी में देनी होगी। बायबैक इनकम पर टैक्स चुकाने की जिम्मेदारी शेयरहोल्डर्स पर है। इसलिए इसे सीजी में बताना जरूरी है। यह ध्यान में रखना जरूरी है कि शेयरों और म्यूचुअल फंड्स की इक्विटी स्कीम से एक वित्त वर्ष में 1.25 लाख रुपये तक के लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस को टैक्स से छूट हासिल है।