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क्या CBSE से बेहतर है इंटरनेशनल बोर्ड! हर साल के लिए 30 लाख रुपए हों तभी चुनें IB

आजकल अपने बच्चों को विदेश भेजकर पढ़ाने का चलन बढ़ने लगा है। पेरेंट्स विदेशों में बच्चे पढ़ाने के लिए इंटरनेशनल स्कूलों में पढ़ा रहे हैं। इससे बड़ा सवाल है कि क्या CBSE से बेहतर है इंटरनेशनल बोर्ड। दूसरा, बदलते जियोपॉलिटिकल हालात और अमेरिका की अनिश्चित नीतियों ने कई स्टूडेंट्स का प्लान बदल दिया। तो क्या ऐसे में सालाना 30 लाख रुपये फीस देकर पढ़ाना सही है

Edited By: Sheetalअपडेटेड Nov 10, 2025 पर 2:16 PM
क्या CBSE से बेहतर है इंटरनेशनल बोर्ड! हर साल के लिए 30 लाख रुपए हों तभी चुनें IB
आजकल अपने बच्चों को विदेश भेजकर पढ़ाने का चलन बढ़ने लगा है।

दिल्ली की प्रिया वर्मा (बदला हुआ नाम) ने अपने बेटे को साल 2018 में इंटरनेशनल स्कूल में एडमिशन कराया। ताकि, आगे बेटा अमेरिका में जाकर पढ़ाई करे। अब साल 2025 में बदलते जियोपॉलिटिकल हालात और अमेरिका की अनिश्चित नीतियों ने प्लान ही बदल दिया। ज्योत्सना अपने बेटे को पढ़ाने के लिए अब दूसरी कंट्री जैसे आस्ट्रेलिया या सिंगापुर और देश की अच्छी यूनिवर्सिटी के ऑप्शन तलाश रही हैं। उनके मुताबिक अगर बच्चा विदेश नहीं जा पा रहा हो सालभर में 25 लाख रुपये फीस देना कोई समझदारी वाला कदम नहीं है।

आजकल अपने बच्चों को विदेश भेजकर पढ़ाने का चलन बढ़ने लगा है। पेरेंट्स विदेशों में बच्चे पढ़ाने के लिए इंटरनेशनल स्कूलों में पढ़ा रहे हैं। इससे बड़ा सवाल है कि क्या CBSE से बेहतर है इंटरनेशनल बोर्ड। दूसरा, बदलते जियोपॉलिटिकल हालात और अमेरिका की अनिश्चित नीतियों ने कई स्टूडेंट्स का प्लान बदल दिया। तो क्या ऐसे में सालाना 30 लाख रुपये फीस देकर पढ़ाना सही है। इंटरनेशनल पाठ्यक्रम के मुताबिक पढ़ने से विदेश में पढ़ना आसान हो जाता है लेकिन ये उतना ही महंगा होता है।

इंटरनेशनल स्कूलों का तेजी से बढ़ा रह है चलन

देश में इंटरनेशनल स्कूलों का चलन तेजी से बढ़ रहा है। पहले सिर्फ बड़े शहरों में सीमित संख्या में ये स्कूल होते थे, पर अब ये टियर-2 और टियर-3 शहरों तक पहुंच चुके हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या हर बच्चे के लिए यह सही विकल्प है?

इंटरनेशनल बनाम इंडियन स्कूल

इंटरनेशनल स्कूल्स का कोर्स वैश्विक स्तर पर मान्य होता है, जैसे IB और Cambridge (IGCSE)। वहीं भारतीय स्कूल्स CBSE या ICSE बोर्ड पर आधारित होते हैं, जो भारत की हायर एजूकेशन सिस्टम से मेल खाते हैं। इंटरनेशनल स्कूल्स की पढ़ाने के सिस्टम में लाइफ स्किल्स, रिसर्च, और क्रिटिकल थिंकिंग पर जोर होता है। जबकि भारतीय बोर्ड अब भी सिलेबस और अंकों पर अधिक फोकस करता है

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