एक पिता ने पूर्वजों से मिली पारिवारिक जमीन को बेच दिया। उसके बच्चों ने जमीन बेचने का विरोध किया। करीब 31 साल चले इस मामने पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला पिता के फेवर में दिया। यह मामला एक संयुक्त हिंदू परिवार की पैतृक जमीन को लेकर था, जो बेंगलुरु के पास स्थित थी। तीन भाइयों में से एक भाई ने अपने पिता की जमीन का एक हिस्सा बेच दिया, जिस पर उसके चार बच्चों ने आपत्ति जताई। बच्चों का कहना था कि चूंकि यह जमीन उनके दादा की थी, इसलिए वे ‘कॉपार्सनर’ यानी जन्म से इस संपत्ति में हकदार हैं और बिना उनकी मंजूरी के यह संपत्ति बेची नहीं जा सकती। लेकिन पिता का कहना था कि उन्होंने यह जमीन अपने भाई से खरीदी थी, और यह उनका स्वयं अर्जित (self-acquired) हिस्सा था। इस तर्क के आधार पर उन्होंने इसे बेचने का पूरा हक होने की बात कही। सुप्रीम कोर्ट ने 22 अप्रैल 2025 को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिससे हजारों पारिवारिक संपत्ति विवादों में दिशा मिल सकती है।