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RBI: डॉलर के मुकाबले मजबूत रहेगा रुपया, RBI ने डीडॉलराइजेशन के तीन बड़े फैसले लिए

RBI ने रुपये को डॉलर के मुकाबले मजबूत करने के लिए तीन महत्वपूर्ण फैसले लिए हैं, जिनमें पड़ोसी देशों में रुपये में कर्ज देने की अनुमति, विदेशी मुद्रा जोड़ी में भारतीय रुपये के विकल्प बढ़ाना और स्पेशल रुपी वोस्ट्रो अकाउंट्स के निवेश विकल्पों को विस्तार देना शामिल है।

MoneyControl Newsअपडेटेड Oct 02, 2025 पर 7:08 PM
RBI: डॉलर के मुकाबले मजबूत रहेगा रुपया, RBI ने डीडॉलराइजेशन के तीन बड़े फैसले लिए

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने रुपये की वैश्विक पकड़ मजबूत करने के लिए तीन अहम फैसलों की घोषणा की है, जिसका मुख्य उद्देश्य क्षेत्रीय व्यापार में डॉलर पर निर्भरता कम करना और रुपये को एक विश्वसनीय विकल्प के तौर पर स्थापित करना है। आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा कि अब ऑथोराइज्ड डीलर बैंक पड़ोसी देशों में रुपये में कर्ज देने की अनुमति पा चुके हैं, जिससे भारत के निकटवर्ती देशों के साथ आर्थिक लेनदेन में डॉलर का स्थान कम होगा। इसके अलावा, फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट (FEMA) के तहत विदेशी मुद्रा नियमों को आसान बनाकर स्थानीय मुद्राओं में सीधे व्यापार निपटान को बढ़ावा दिया जाएगा।

आरबीआई ने फाइनेंशियल बेंचमार्क्स इंडिया लिमिटेड (FBIL) की बेंचमार्क सूची में और मुद्राओं को शामिल करने का फैसला किया है, जिससे भारतीय बैंक विदेशी मुद्रा जोड़ी को सीधे कोट कर सकेंगे। इससे डॉलर के जरिए व्यापार के दोहरे रूपांतरण और लागत की समस्या कम होगी। उदाहरण के लिए, अब भारतीय कंपनियां थाईलैंड जैसी जगहों पर सीधे रुपये में व्यापार कर सकेंगी, जिससे व्यापार प्रक्रिया सरल और लागत-कुशल बनेगी। यह कदम रुपये को क्षेत्रीय स्तर पर मजबूती देने की दिशा में बड़ी छलांग है।

आरबीआई ने स्पेशल रुपी वोस्ट्रो अकाउंट्स (SRVAs) के तहत जमा राशि को कॉर्पोरेट बॉन्ड और कमर्शियल पेपर्स में निवेश करने की अनुमति भी दे दी है। इससे विदेशी निवेशकों को अधिक विकल्प मिलेंगे और भारत के कॉर्पोरेट बॉन्ड मार्केट में लिक्विडिटी बढ़ेगी। ये सभी उपाय रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण की दिशा में महत्वपूर्ण साबित होंगे।

यह रणनीति वैश्विक बदलते भू-राजनीतिक और आर्थिक माहौल के बीच उठाया गया एक समझदार कदम है। अमेरिका की ओर से BRICS जैसे देश जो डॉलर के विकल्प ढूंढ रहे हैं, उन पर बढ़ते दबाव को ध्यान में रखते हुए RBI ने रुपये को मजबूत करने का रास्ता चुना है। भारतीय रुपया अब धीरे-धीरे क्षेत्रीय व्यापार में डॉलर की जगह ले सकता है और इससे भारत की आर्थिक संप्रभुता बढ़ेगी।

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