गन्ने की खेती में समय और लागत, दोनों की जरूरत होती है, लेकिन अगर किसान थोड़ी समझदारी और नई तकनीकों को अपनाएं, तो इसी खेत से दोगुनी कमाई कर सकते हैं। सहफसली खेती यानी एक ही खेत में गन्ने के साथ दूसरी फसलें उगाना, जो न सिर्फ लागत घटाएगी बल्कि कम समय में मुनाफा भी बढ़ाएगी। कई किसान अब गन्ने के साथ खीरा, मूली, प्याज और मक्का जैसी फसलें उगाकर अपनी आमदनी को चार गुना तक बढ़ा रहे हैं। इससे न सिर्फ अतिरिक्त कमाई होती है, बल्कि खेत की मिट्टी भी ज्यादा उपजाऊ बनी रहती है।
सहफसली खेती अपनाने से गन्ने की बढ़वार बेहतर होती है, खेत में खरपतवार कम होते हैं और पानी की भी बचत होती है। अगर किसान इस तकनीक को अपनाएं, तो गन्ने की खेती उनके लिए मुनाफे का सौदा बन सकती है।
ट्रेंच विधि से गन्ने और खीरे की साथ खेती
अगर किसान ट्रेंच विधि से गन्ने की बुवाई करते हैं, तो दो पंक्तियों के बीच 4-5 फीट की जगह बचती है। इस खाली स्थान का सही उपयोग करके किसान खीरा, मूली, लोबिया और प्याज जैसी फसलें उगा सकते हैं। बसंत काल में गन्ने की बुवाई करने वाले किसान खीरे की खेती से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।
खीरा एक जल्दी तैयार होने वाली फसल है, जो 50-55 दिनों में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। किसान पीसीयूसी एच-3 और डीसीएच-3 जैसी उन्नत किस्में लगाकर प्रति हेक्टेयर 250-270 क्विंटल तक उत्पादन ले सकते हैं। ये किस्में गर्म और आर्द्र जलवायु के लिए उपयुक्त हैं और इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बेहतर होती है। खीरे की फसल के साथ मक्का या मूली उगाने से भूमि की उर्वरता भी बनी रहती है।
सहफसली खेती से ज्यादा मुनाफा, कम खर्च
सहफसली खेती से किसानों को गन्ने की लागत निकालने में मदद मिलती है। खीरे की खेती में ज्यादा खर्च नहीं होता और ये गन्ने की फसल को नुकसान पहुंचाए बिना अच्छी आमदनी देती है। साथ ही, अगर किसान खीरे की बेलों को जाल पर चढ़ाकर उगाते हैं, तो फसल की गुणवत्ता और उत्पादन दोनों बढ़ जाते हैं। इसके अलावा, सहफसली खेती से खरपतवार कम उगते हैं और मिट्टी की उर्वरता भी बनी रहती है।
अगर किसान गन्ने की खेती के साथ सहफसली खेती अपनाते हैं, तो उन्हें लागत की चिंता नहीं करनी पड़ेगी और मुनाफा भी बढ़ेगा। ये तकनीक न केवल आर्थिक रूप से फायदेमंद है, बल्कि खेती को अधिक उत्पादक और टिकाऊ भी बनाती है।