Kaal Bhairav Jayanti 2025 Katha: आज भैरव अष्टमी पर जरूर करें इस कथा का पाठ, जानें संध्या पूजन का मुहूर्त और उनके रूपों की विशेषता

Kaal Bhairav Jayanti 2025 Katha: आज 12 नवंबर के दिन भगवान काल भैरव की जयंति मनाई जा रही है। इस दिन काल भैरव कथा का पाठ करना बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन को कालाष्टमी या भैरव अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। आइए जानें इस दिन संध्या पूजा का क्या मुहूर्त है?

अपडेटेड Nov 12, 2025 पर 10:56 AM
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इस दिन भगवान कालभैरव की आराधना से भय, रोग और संकटों से मुक्ति मिलती है।

Kaal Bhairav Jayanti 2025 Katha: काल भैरव को भगवान शिव का उग्र रूप माना जाता है। इनके इस रूप से बड़े से बड़ा दोष डरता है। हर साल मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव जयंति मनाई जाती है। माना जाता है कि मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान शिव के क्रोधाग्नि से प्रकट हुए कालभैरव देव ने ब्रह्मांड में संतुलन और न्याय की स्थापना की थी। इस दिन भगवान कालभैरव की आराधना से भय, रोग और संकटों से मुक्ति मिलती है। इस साल यह पूजा आज यानी 12 नवंबर के दिन की जाएगी। इस दिन काल भैरव की पूजा करने के साथ ही कुछ भक्त उपवास भी करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, आज के दिन संध्या पूजा और काल भैरव की कथा सुनने का बहुत महत्व है। आइए जानें संध्या पूजा का मुहूर्त और काल भैरव की कथा क्या है ?

काल भैरव पूजा मुहूर्त

विजय मुहूर्त : दोपहर 1 बजकर 53 मिनट से 2 बजकर 36 मिनट तक

गोधूलि मुहूर्त : शाम 5 बजकर 29 मिनट से 5 बजकर 55 मिनट तक

ये रूप भी हैं भगवान भैरव के

धार्मिक ग्रंथों में भगवान भैरव के कई स्वरूप बताए गए हैं, जिनमें असितांग भैरव, रूद्र भैरव, बटुक भैरव और काल भैरव आदि का नाम शामिल है। बटुक भैरव और काल भैरव की पूजा और ध्यान सर्वोत्तम है। बटुक भैरव भगवान का बाल रूप हैं, इन्हें आनंद भैरव भी कहते हैं। इस सौम्य स्वरूप की आराधना शीघ्र फलदायी होती है। काल भैरव इनका युवा रूप है, जिनकी पूजा से शत्रु से मुक्ति, संकट, कोर्ट-कचहरी में विजय मिलती है।


काल भैरव की पूजा विधि

काल भैरव जयंती के दिन संध्या काल में भैरव जी की पूजा की जाती है। इनके सामने एक बड़े से दीपक में सरसों के तेल का दीपक जलाएं। फिर, उड़द की बनी हुई या दूध की बनी हुई चीजें प्रसाद के रूप अर्पित करें। प्रसाद अर्पित करने के बाद भैरव जी के मंत्रों का जाप करें।

काल भैरव कथा

पौराणिक कथाओं में वर्णन मिलता है कि एक बार सभी देवताओं के बीच यह चर्चा हुई कि त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और महेश में सबसे श्रेष्ठ कौन हैं। इस प्रश्न पर जब मतभेद उत्पन्न हुआ, तब ब्रह्मा जी ने स्वयं को सर्वोच्च बताया और अहंकारवश भगवान शिव के प्रति कुछ अपमानजनक वचन कहने लगे। उनके इन वचनों से भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो उठे और भगवान शिव के तीसरे नेत्र से प्रचंड अग्नि प्रकट हुई जिससे भगवान कालभैरव का जन्म हुआ। भगवान कालभैरव के जन्म ब्रह्मा जी के अहंकार का विनाश और सृष्टि में संतुलन की पुनर्स्थापना के लिए हुआ था। कहा जाता है कि जब ब्रह्मा जी ने शिवजी के विरोध में अपना क्रोध व्यक्त किया, तब कालभैरव ने अपने त्रिशूल से उनके पांच में से एक सिर को धड़ से अलग कर दिया। इस घटना के बाद ब्रह्मांड में भय और श्रद्धा का अद्भुत संतुलन स्थापित हुआ। जिस दिन भगवान कालभैरव प्रकट हुए, वह दिन मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि थी, और तभी से यह दिन कालभैरव जयंती के रूप में श्रद्धा और भक्ति से मनाया जाता है।

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