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Krishna Janmashtami 2025: आज कान्हा के लिए सजेंगे पूरे 56 भोग, जानिए इसका महत्व और इतिहास

Krishna Janmashtami 2025: कान्हा को जो छप्पन भोग चढ़ता है, उसमें सिर्फ फल या मिठाई ही नहीं नमकीन और शरबत आदि पेय भी शामिल होते हैं। ये सभी चीजें, बिना लहसुन-प्याज के सात्विक तरीके से बनाई जाती हैं। ये सभी चीजें बिना प्याज-लहसुन के सात्विक तरीके से तैयार की जाती हैं।

MoneyControl Newsअपडेटेड Aug 16, 2025 पर 1:36 PM
Krishna Janmashtami 2025: आज कान्हा के लिए सजेंगे पूरे 56 भोग, जानिए इसका महत्व और इतिहास
सात दिनों से भूखे थे भगवान, भक्तों ने लगा दी 56 व्यंजनों की कतार

Krishna Janmashtami 2025: दुनियाभर में कृष्ण भक्त आज कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार मना रहे हैं। मध्यरात्रि में 12 बजे के बाद श्रीहरि विष्णु का कृष्ण के रूप में सांकेतिक जन्म होगा। धार्मिक मान्यतओं के अनुसार भगवान इस दिन भक्त के घर शिशु रूप में पधारते हैं। माना जाता है कि जग के पालनहार की इस रूप में सेवा से कई सत्कर्मों का पुण्य एक साथ मिलता है। आज पूरा विश्व भगवान श्री कृष्ण का 5252वां जन्मोत्सव मना रहा है। इस खास मौके पर भक्त अपने घरों में श्रीकृष्ण के जन्म की झाकियां सजाते हैं, उनके भजन गाते हैं और उनके पसंद की खाने पीने की चीजें बनाकर उनको भोग स्वरूप चढ़ाते हैं। इनमें माखन मिसरी और 56 भोग का विशेष महत्व है। कान्हा को जो छप्पन भोग चढ़ता है, उसमें सिर्फ फल या मिठाई ही नहीं नमकीन और शरबत आदि पेय भी शामिल होते हैं। ये सभी चीजें, बिना लहसुन-प्याज के सात्विक तरीके से बनाई जाती हैं। लेकिन कभी सोच है कि कृष्ण को 50, 51 या 55 नहीं पूरे 56 व्यंजनों का भोग ही क्यों लगाया जाता है, इसकी परंपरा कहां से और क्यों शुरू हुई? ऐसे तमाम सवालों के जवाब आज हम आपको बताएंगे।

56 भोग में क्या-क्या

माखन-मिश्री, पंचामृत, खीर, पंजीरी, मोहनभोग, जीरा-लड्डू, गोघृत, रसगुल्ला, जलेबी, रबड़ी, मालपुआ, मूंग दाल का हलवा, घेवर, पेड़ा, काजू-बादाम की बर्फी, पिस्ता बर्फी, शक्कर पारा, मठरी, चटनी, मुरब्बा, आम, केला, अंगूर, सेब, आलूबुखारा, किशमिश, पकौड़े, साग, दही, चावल, कढ़ी, चीला, पापड़, खिचड़ी, बैंगन की सब्जी, दूधी की सब्जी, पूड़ी, टिक्की, दलिया, देसी घी, शहद, सफेद-मक्खन, ताजी क्रीम, कचौड़ी, रोटी, नारियल पानी, बादाम का दूध, छाछ, शिकंजी, चना, मीठे चावल, भुजिया, सुपारी, सौंफ, पान और मेवा छप्‍पन भोग में शामिल होते हैं।

कब से है 56 भोग की परंपरा

भगवान श्री कृष्ण को 56 भोग चढ़ाने की परंपरा मथुरा, वृंदावन और द्वारका में खासतौर से देखने को मिलती है। यहां जन्माष्टमी सिर्फ एक पर्व के तौर पर नहीं एक घटना के रूप में मनाई जाती है। हवा में घी और इलायची की खुशबू घुल जाती है। पूरा माहौल कृष्णमय रहता है और घर-घर में लोग कृष्ण जन्म को लेकर ऐसे उत्साहित रहते हैं, जैसे सच में घर में किसी बच्चे का जन्म हुआ हो। कृष्ण को 56 भोग चढ़ाने की परंपरा पौराणिक काल से चली आ रही है।

56 भोग का महत्व

एक बार सारे ब्रजवासी इंद्र देव की पूजा का प्रबंध करने में लगे हुए थे, तब कान्हा ने नंद बाबा से पूछा कि ये पूजा क्यों करते हैं? तब नंद बाबा ने बताया कि ये पूजा देवराज इंद्र को प्रसन्न करने के लिए की जाती है और इससे इंद्र खुश होंगे तो अच्छी बारिश होगी। इस पर छोटे से लड्डू गोपाल ने कहा कि बारिश करना तो इंद्र देव का काम है, फिर इसके लिए खास पूजा क्यों? हमें गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए क्योंकि उसी से हमें अनाज, फल-सब्जियां और पशुओं के लिए चारा मिलता है। भगवान कृष्ण की ये बात ब्रजवासियों ने मान ली और उन्होंने इंद्र की बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा की। इंद्र देव इस बात से गुस्‍सा हो गए और उन्होंने ब्रज में भारी बारिश शुरू कर दी। चारों तरफ पानी-पानी हो गया। ये देखकर कृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और सारे ब्रजवासियों ने उसके नीचे शरण ली। सब कुछ शांत होने में पूरे सात दिन लग गए। सात दिन तक भगवान ने कुछ भी खाया-पिया नहीं था। इसका एहसास जब ब्रजवासियों को हुआ तो उन्होंने सात दिनों से भूखे-प्यासे अपने प्यारे लला के लिए कई तरह के व्यंजन बनाकर प्रस्तुत किए।

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