सनातन धर्म में पितृपक्ष के अंतिम दिन को सर्वपितृ अमावस्या के रूप में मनाया जाता है। ये दिन विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है, जिन्होंने किसी कारणवश अपने पूर्वजों का श्राद्ध या तर्पण नहीं कर पाए। पितृपक्ष के दौरान किए गए श्राद्ध से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और उनकी कृपा प्राप्त होती है। इस दिन पिंडदान, तर्पण और विधिपूर्वक श्राद्ध करने की परंपरा है, जो धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पितरों के कल्याण और मोक्ष का मार्ग खोलती है। आमतौर पर लोग इस दिन स्नान, दान और पितरों के लिए भोजन आदि भी करते हैं, ताकि उनका पुण्य लाभ प्राप्त हो।