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Shardiya Navratri 2025: पौराणिक कथाओं में देवी दुर्गा की उत्पत्ति का रहस्य, त्रेता युग में रावण से युद्ध के पहले श्रीराम ने की थी मां की पूजा

Shardiya Navratri 2025: हिंदू धर्म में नवरात्र के त्योहार का बहुत महत्व माना गया। लेकिन कभी सोचा है कि ये पर्व आखिर शुरू कैसे हुआ, देवी का नाम दुर्गा कैसे पड़ा और सबसे पहली बार किसने मां दुर्गा की पूजा की थी ? आप भी इन सवालों के जवाब जानना चाहते हैं तो यहां पढ़ें।

MoneyControl Newsअपडेटेड Sep 22, 2025 पर 6:58 PM
Shardiya Navratri 2025: पौराणिक कथाओं में देवी दुर्गा की उत्पत्ति का रहस्य, त्रेता युग में रावण से युद्ध के पहले श्रीराम ने की थी मां की पूजा
युद्ध में बहुत भंयकर और दुर्गम होने के कारण इनका नाम शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा पड़ा।

Shardiya Navratri 2025: अश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्र शुरू हो जाते हैं। इस दौरान मां दुर्गा के उपासक उनके नौ रूपों यानी उसमें समायी नौ शक्तियों की पूजा करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। हिंदू धर्म में इस त्योहार का बहुत महत्व माना गया। नवरात्र का समय शुरू होने के साथ ही घर, बाजार, पड़ोस चारों तरफ त्योहारों की चहल-पहल शुरू हो जाती है। आस्था, उल्लास और उत्सव का माहौल रहता है, मां के जयकारे गूंजते हैं और हवा में धूप, नैवेद्य और लोबान की खुशबू महसूस होने लगती है। लेकिन कभी सोचा है कि ये पर्व आखिर शुरू कैसे हुआ, देवी का नाम दुर्गा कैसे पड़ा और सबसे पहली बार किसने मां दुर्गा की पूजा की थी ? आप भी इन सवालों के जवाब जानना चाहते हैं तो यहां पढ़ें।

ब्रह्मा जी के वरदान से अजेय बना महिषासुर  

पौराणिक कथाओं के अनुसार असुरों के राजा रंभ के पुत्र महिषासुर के वध से हुई है मां दुर्गा की उत्‍पत्ति की कहानी। राक्षसराज महिषासुर ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कठाकर तप किया। उसकी आस्था देख ब्रह्मा जी ने उसे मनचाहा वरदान मांगने को कहा। महिषासुर ने उनसे वरदान मांगा कि वो जब चाहे तब विकराल भैंसे का रूप धारण कर सके। कोई भी देवता या दानव उसे युद्ध में हरा नहीं पाएगा। वरदान मिलने से महिषासुर बलशाली होने के साथ ही अंहकारी भी हो गया था। उसने स्वर्ग पर हमला किया और देवताओं को हराकर कब्जा कर लिया था। भगवान शिव और भगवान विष्णु भी उसकी शक्तियों के आगे परास्त हो गए।

महिषासुर के अंत के लिए देवताओं के तेज से प्रकट हुई शक्ति

महिषासुर के अत्याचार बढ़ने लगे, उसमें अपराजेय होने का अहंकार आ गया। उसके आतंक से तीनों लोकों में त्राहि-त्राहि होने लगी। तब भगवान शिव और भगवान विष्णु ने सभी देवताओं से सलाह की और महिषासुर का वध करने के उद्देश्य से एक शक्ति को प्रकट करने की योजना बनाई। तब भगवान शिव-विष्णु और सभी देवी-देवताओं के तेज से एक दिव्य शक्ति प्रकट हुई। सभी देवताओं की शक्तियों को एकसाथ एक जगह इकट्ठा करने से एक आकृति की उत्‍पत्ति हुई।

समस्त देवताओं से मिली शक्ति के कारण आदिशक्ति कहलाईं

समस्त देवताओं के इस तेज को शिवजी ने त्रिशुल, विष्णु जी ने चक्र, ब्रह्मा जी ने कमल का फूल, वायु देवता से नाक व कान, पर्वतराज हिमालय से कपड़े और शेर मिला। यमराज के तेज से मां शक्ति के केश बने, सूर्य के तेज से पैरों की अंगुलियां, प्रजापति से दांत और अग्रिदेव से आंखें मिली। इसके साथ ही देवी भगवती को समुद्र से दिव्य वस्त्र, चूड़ामणि, हार, कंगन, पैरों के नूपुर, दो कुंडल और अंगुठियां प्राप्त हुईं। जैसे ही मां ने इन सभी अस्त्र-शस्त्र और अन्य दिव्य वस्तुओं को धारण किया, उनका स्वरूप असुरों में भय पैदा करने वाला था। मां के पास ऐसी शक्तियां थी, जो किसी दूसरे के पास नहीं थी। इन अपार शक्तियों की वजह से ही वह आदिशक्ति कहलाईं। उनके पास वो शक्तियां थीं जिसका कोई अंत नहीं दिखाई पड़ रहा था।

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