ब्रिटिश शासन और द्वितीय विश्व युद्ध तक बीड़ी उद्योग ने धीरे-धीरे अपनी पकड़ बनाई। 1899 के गुजरात सूखे ने कई परिवारों को बीड़ी बनाने की ओर मोड़ा, जिससे यह केवल रोजगार का साधन नहीं, बल्कि जीवन जीने की राह बन गई। रेलवे के आने से तंबाकू और बीड़ी आसानी से गांव-शहर तक पहुंचने लगी। बीड़ी ने जाति, धर्म और समाज की परवाह किए बिना हर किसी को धूम्रपान का साधन दिया। यही नहीं, इस छोटे उद्योग ने ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं में जान डाल दी और घर-घर रोजगार पहुंचाया। बीड़ी सिर्फ धुआं नहीं, बल्कि मेहनत, इतिहास और आम जनता की कहानी भी बन गई