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Bihar Election 2025: क्या खतरे में है 'सुशासन बाबू' का सिंहासन? नीतीश कुमार का ये सबसे मुश्किल चुनाव

Bihar Chunav 2025: नीतीश कुमार का राजनीतिक सफर जयप्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया के समाजवादी आंदोलनों से शुरू हुआ। वे 2005 में पहली बार सत्ता में आए और बिहार में "जंगल राज" की स्थिति को खत्म किया, जिसे NDA अक्सर RJD पर हमले के लिए एक हथियार की तरह इस्तेमाल करता है। उन्होंने कानून व्यवस्था बहाल की और भारी मात्रा में बुनियादी ढांचा विकसित किया

Shubham Sharmaअपडेटेड Oct 31, 2025 पर 6:52 PM
Bihar Election 2025: क्या खतरे में है 'सुशासन बाबू' का सिंहासन? नीतीश कुमार का ये सबसे मुश्किल चुनाव
Bihar Election 2025: क्या खतरे में है 'सुशासन बाबू' का सिंहासन? नीतीश कुमार का ये सबसे मुश्किल चुनाव

बिहार में अगले महीने विधानसभा चुनाव होने वाला है और राज्य के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे नीतीश कुमार की राजनीतिक किस्मत फिर से सवालों के घेरे में है। उन्हें प्यार से "सुशासन बाबू" कहा जाता है। इस बार वे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के नेतृत्व में चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन अपने करीब दो दशक लंबे कार्यकाल और राजनीतिक उतार-चढ़ाव की वजह से उन्हें कई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ रहा है। यह चुनाव उनके लंबे और जटिल राजनीतिक सफर का एक महत्वपूर्ण पड़ाव माना जा रहा है।

नीतीश कुमार का राजनीतिक सफर जयप्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया के समाजवादी आंदोलनों से शुरू हुआ। वे 2005 में पहली बार सत्ता में आए और बिहार में "जंगल राज" की स्थिति को खत्म किया, जिसे NDA अक्सर RJD पर हमले के लिए एक हथियार की तरह इस्तेमाल करता है। उन्होंने कानून व्यवस्था बहाल की और भारी मात्रा में बुनियादी ढांचा विकसित किया।

उनके कई महत्वपूर्ण काम जैसे सड़कों का निर्माण, लगभग सभी जगह बिजली पहुंचाना, मुख्यमंत्री साइकिल योजना जैसी कल्याणकारी योजनाएं और शराबबंदी ने उन्हें "सुशासन बाबू" की छवि दी। उनकी इन कोशिशों ने महिलाओं, दलितों और अत्यंत पिछड़ी जातियों (EBC) के बीच उन्हें खास लोकप्रियता दिलाई। उन्होंने स्थानीय निकायों और सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए हिस्सेदारी बढ़ाकर महिलाओं का भरपूर समर्थन हासिल किया।

फिर भी, इस चुनाव में उनके लंबे कार्यकाल की कई कमजोरियां और खामियां सामने आ गई हैं। इसमें सबसे बड़ा कारण वोटरों का उनसे ऊब जाना, साथ ही राज्य में बढ़ी बेरोजगारी और मजदूरों के बड़े पैमाने पर पलायन की समस्याएं हैं, जिनका समाधान उनकी योजनाएं पूरी तरह नहीं कर सकीं।

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