
लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद भाजपा ने एक बार फिर मजबूत वापसी की है। आम चुनावों के बाद हुए राज्यों के चुनावों में पार्टी ने लगातार जीत दर्ज की है। महाराष्ट्र और दिल्ली में बड़ी जीत मिली, वहीं हरियाणा में भी अप्रत्याशित सफलता हासिल हुई। अब बिहार में भी भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। बिहार में भाजपा ने एक 101 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें से उसने 50 सीटों पर जीत हासिल कर ली है और 41 सीटों पर आगे चल रही है। कुल मिलाकर बिहार में भाजपा के खाते में 91 सीटें जा रही है।
बिहार में जीत के मायने
बिहार में मिली बढ़त भाजपा के लिए बहुत महत्वपूर्ण मानी जा रही है, क्योंकि यह देश का तीसरा सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है और संसद में बड़ी संख्या में सांसद भेजता है। इस राज्य पर मजबूत पकड़ किसी भी दल की हिंदी पट्टी में स्थिति को और मजबूत बनाती है और राष्ट्रीय राजनीति की दिशा पर भी असर डालती है। चुनाव आयोग के शुरुआती रुझानों के मुताबिक, एनडीए comfortably आगे है, जिससे यह संकेत मिलता है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इस बार अपने राजनीतिक करियर की सबसे बड़ी जीत मिल सकती है।
लोकसभा चुनाव के बाद बदले हालात
लोकसभा चुनाव में भाजपा को भरोसा था कि 2019 की 303 सीटों से भी बड़ा जनादेश मिलेगा और इसी विश्वास के साथ "अबकी बार, 400 पार" का नारा दिया गया था। लेकिन नतीजे उम्मीद से अलग रहे। पार्टी के कुछ समर्थक नाराज़ दिखे, और कई मतदाता विपक्ष के उस नारे से प्रभावित हुए जिसमें कहा जा रहा था कि भाजपा के “अहंकार” के चलते संविधान खतरे में है। इसका असर यह हुआ कि भाजपा अकेले बहुमत से दूर रह गई, हालांकि उसके नेतृत्व वाला एनडीए 543 में से 294 सीटें जीतकर आराम से सरकार बनाने की स्थिति में रहा। वहीं, कांग्रेस ने भी 99 सीटें जीतकर अपने लिए एक बड़ा बदलाव महसूस किया और माना कि लंबे समय के बाद उसकी स्थिति फिर से सुधर सकती है।
लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में भाजपा को भारी नुकसान हुआ और वह उत्तर प्रदेश के बाद देश के दूसरे सबसे बड़े राजनीतिक राज्य में अपना प्रभाव बनाए नहीं रख सकी। हरियाणा में भी उसकी सीटें 10 से घटकर सिर्फ 5 रह गईं। इन नतीजों के बाद राजनीतिक हलकों में यह चर्चा तेज हो गई है कि जिन राज्यों को भाजपा ने लंबे समय तक अपना मजबूत गढ़ बनाया था, वहां आने वाले विधानसभा चुनावों में पार्टी की राह मुश्किल हो सकती है।
हरियाणा चुनाव में बदला खेल
लोकसभा चुनावों में मिली बड़ी हार के बाद भी भाजपा के लिए महिला वोटर सबसे मजबूत समर्थन बनकर सामने आई हैं। महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली की तरह बिहार में भी पार्टी ने महिलाओं पर खास ध्यान दिया। प्रधानमंत्री मोदी ने सितंबर में एक रोजगार योजना के तहत लाखों महिलाओं को 7,500 करोड़ रुपये की सहायता दी, जिसे बिहार चुनाव में भाजपा के लिए सबसे प्रभावी वोट जुटाने वाला कदम माना जा रहा है।
महिला बनी मजबूत वोटर
पिछले दस सालों में देशभर में महिला मतदाताओं की संख्या लगातार बढ़ी है, जिससे अब मतदान में पुरुषों का दबदबा पहले जैसा नहीं रहा। इसी वजह से सभी राजनीतिक पार्टियां महिलाओं को आकर्षित करने के लिए खास रणनीतियाँ बना रही हैं। हाल ही में आए वोटवाइब सर्वे के अनुसार, मोदी के नेतृत्व वाले गठबंधन को 48.5% महिलाओं का समर्थन मिला, जो मुख्य विपक्षी दल से करीब 10% अधिक है। भाजपा की यह "महिला रणनीति" सबसे पहले मध्य प्रदेश में दिखी और बाद में हरियाणा व महाराष्ट्र जैसे राज्यों में भी अपनाई गई।
हरियाणा में भाजपा ने महिलाओं को हर महीने 2,100 रुपये देने का वादा किया था। लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा और कांग्रेस, दोनों ने यहां पाँच-पाँच सीटें जीती थीं, जिससे कांग्रेस को लगा कि अगला विधानसभा चुनाव उसके लिए आसान रहेगा। लेकिन नतीजे उलट निकले—भाजपा आगे निकल गई और कांग्रेस की 37 सीटों के मुकाबले 48 सीटें जीतकर बढ़त बना ली।
भाजपा ने अपने मध्यम वर्ग के समर्थकों को मजबूत करने के लिए आयकर और जीएसटी में राहत देने पर खास ध्यान दिया। 2025 की शुरुआत में दिल्ली में पार्टी की वापसी में भी यही रणनीति काफी असरदार साबित हुई। बजट पेश करते समय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मध्यम आय वाले लोगों को बड़ी कर छूट दी। चुनाव से ठीक पहले एक रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने 12 लाख रुपये तक की आय वालों को मिलने वाले नए कर लाभ पर जोर देते हुए कहा था कि आज़ादी के बाद पहली बार इतनी बड़ी राहत दी गई है। इन टैक्स कटौतियों का असर दिल्ली की राजनीति में साफ दिखा, जहां आमतौर पर जाति नहीं बल्कि आर्थिक और सामाजिक मुद्दे चुनाव के केंद्र में रहते हैं।
मध्यम वर्ग को बड़ा भरोसा
भाजपा ने अपने मध्यम वर्ग के समर्थकों को मजबूत करने के लिए आयकर और जीएसटी में राहत देने पर खास ध्यान दिया। 2025 की शुरुआत में दिल्ली में पार्टी की वापसी में भी यही रणनीति काफी असरदार साबित हुई। बजट पेश करते समय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मध्यम आय वाले लोगों को बड़ी कर छूट दी। चुनाव से ठीक पहले एक रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने 12 लाख रुपये तक की आय वालों को मिलने वाले नए कर लाभ पर जोर देते हुए कहा था कि आज़ादी के बाद पहली बार इतनी बड़ी राहत दी गई है। इन टैक्स कटौतियों का असर दिल्ली की राजनीति में साफ दिखा, जहां आमतौर पर जाति नहीं बल्कि आर्थिक और सामाजिक मुद्दे चुनाव के केंद्र में रहते हैं।
बिहार चुनाव से ठीक पहले जीएसटी परिषद ने टैक्स ढांचे में बड़ा बदलाव करते हुए ज्यादातर सामान और सेवाओं के लिए दो-स्लैब वाली आसान प्रणाली को मंजूरी दे दी। वहीं, लग्जरी और हानिकारक मानी जाने वाली वस्तुओं पर ज्यादा टैक्स लगाने का फैसला हुआ। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि इस बदलाव से खासकर मध्यम वर्ग द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली चीज़ों पर टैक्स काफी कम हो जाएगा, जिससे लोगों को सीधी राहत मिलेगी।
मोदी का जादू बरकरार
2014 से ही प्रधानमंत्री मोदी भाजपा की जीत की सबसे बड़ी वजह माने जाते रहे हैं, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद ऐसा लगा था कि उनकी लोकप्रियता कम हो रही है। हालांकि, हाल में मिली लगातार बड़ी जीतों ने फिर दिखा दिया है कि भाजपा की चुनावी सफलता में "मोदी फैक्टर" अब भी बहुत असरदार है और पार्टी की रणनीति को मजबूती देता है।
पूरा चुनाव अभियान इस बात का संकेत देता रहा कि प्रधानमंत्री मोदी और नीतीश कुमार की एकजुटता ने गठबंधन को मज़बूती दी है। दोनों नेताओं ने कल्याणकारी योजनाओं, विकास कार्यों, सामाजिक सुरक्षा और स्थिर प्रशासन को अपनी सबसे बड़ी ताकत के रूप में पेश किया।
मोदी की देशभर में लोकप्रिय छवि और नीतीश कुमार की बिहार में मजबूत पकड़—इन दोनों का साथ मिलकर एक ऐसा चुनावी समीकरण बना, जिसने एनडीए को भारी बढ़त दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई। जैसे-जैसे नतीजे सामने आते गए, यह साफ होता गया कि मोदी–नीतीश की यह साझेदारी बिहार विधानसभा चुनाव का सबसे असरदार कारक साबित हुई।
गठबंधन की राजनीति
महाराष्ट्र और बिहार जैसे राज्यों में भाजपा ने अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़े और ज्यादातर सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई। दूसरी ओर, महागठबंधन पहले ही अंदरूनी मतभेदों से कमजोर था, और बिहार में सीटों के बंटवारे को लेकर बढ़े विवाद ने इसे और नुकसान पहुँचाया। हालात इतने बिगड़ गए कि झामुमो और पशुपति पारस की रालोजपा जैसे दो बड़े साथी दल गठबंधन से अलग हो गए, जिससे महागठबंधन की स्थिति और कमजोर हो गई।
बिहार की 243 सीटों में से राजद ने 144, कांग्रेस ने 60, भाकपा-माले ने 20 और वीआईपी ने 15 प्रत्याशी उतारे। इस बार भाकपा और माकपा ने भी पिछले चुनाव की तुलना में अधिक उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। सीटों के बंटवारे में तालमेल न होने के कारण लालगंज, वैशाली, राजापाकर और बिहारशरीफ जैसी करीब दर्जन भर सीटों पर सहयोगी दलों के बीच आपसी मुकाबला देखने को मिला, जिसे “दोस्ताना लड़ाई” कहा जा रहा है।
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